राष्ट्र प्रतीक देश के इतिहास, पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक मूल्यों से जुड़े होते हैं, जो अतीत से वर्तमान तक उनके रहस्यों, उनकी गहराइयों को दर्शाते हैं।अशोक चिह्न भारत का राजकीय प्रतीक है। यह भारत के प्राचीन गौरवमयी इतिहास से जुड़ा हुआ है। इसको सारनाथ में प्राप्त राष्ट्रीय स्तंभ अर्थात अशोक स्तंभ (लाट) से लिया गया है।
जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में हजरतबल दरगाह में अशोक स्तंभ अर्थात चिह्न को तोड़ने की घटना पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। दरगाह के सौंदर्यीकरण के लिए रेनोवेशन का काम पूरा होने के बाद वहां लगाए गए एक बोर्ड पर राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ उकेरा गया था। कुछ लोगों ने इस्लामिक मान्यताओं को हवाला देते हुए विरोध किया और इसे पत्थरों से तोड़ डाला। पुलिस ने इस मामले में बीएनएस की विभिन्न धाराओं और राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम, 1971 के तहत केस दर्ज किया है। इस घटना ने राजनीतिक भौकाल खड़ा कर दिया है। और एक नया प्रश्न उत्पन्न कर दिया है कि धार्मिक स्थलों पर राष्ट्रीय प्रतीकों का उपयोग करना चाहिए अथवा नहीं? वहीं दूसरा बड़ा प्रश्न यह है कि राष्ट्रीय प्रतीक को तोड़ा जाना कानूनन कितना बड़ा अपराध है और इसकी सजा क्या है? भारतीय जनता पार्टी ने इस घटना को राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान बताते हुए दोषियों को सख्त सजा देने की मांग की है। दूसरी ओर उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती का कहना है कि धार्मिक स्थल पर राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल ही क्यों किया गया?
जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि राष्ट्रीय प्रतीक का इस्तेमाल करने से बचा जा सकता था, फिर ये बवाल नहीं होता। कानून के जानकारों का कहना है कि द स्टेट इम्ब्लेम ऑफ इंडिया (प्रोहिबिशन ऑफ इम्प्रॉपर यूज) एक्ट 2005 के अनुसार अशोक स्तंभ का उपयोग भारतीय सरकार, राज्य सरकार और अधिकृत संस्थाएं ही कर सकती हैं। अनधिकृत प्रयोग कानूनन अपराध माना जाता है। व्यापारिक इस्तेमाल, प्राइवेट संस्थाएं या संगठन, ट्रेड लोगो, व्यक्तिगत पहचान या अनधिकृत इस्तेमाल पर रोक है। बिना अनुमति ऐसा करना अपराध की श्रेणी में माना जाएगा। धार्मिक स्थल या अपने भवन पर इसका इस्तेमाल करना भी कानून का उल्लंघन माना जाता है।
अशोक स्तंभ का गैरकानूनी इस्तेमाल करने पर दो वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। साथ ही 5 हजार रुपये तक का जुर्माना भी हो सकता है। बार-बार उल्लंघन करने पर ये सजा बढ़ाई जा सकती है। भारत के राजकीय प्रतीक अशोक चिह्न को नुकसान पहुंचाने अथवा तोड़े जाने की सजा के संबंध में कानून के जानकारों का कहना है कि राष्ट्रीय प्रतीकों की सुरक्षा और सम्मान के लिए भी विशेष कानून बनाए गए हैं। ऐसे मामलों में राष्ट्रीय सम्मान अपमान निवारण अधिनियम 1971 और राष्ट्रीय प्रतीक (अनुचित उपयोग पर रोक) अधिनियम, 2005 दोनों ही लागू होते हैं।
उल्लेखनीय है कि किसी राष्ट्र की पहचान, मूल्यों, इतिहास और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले राष्ट्र प्रतीकों का अपना पृथक व विशिष्ट महत्व है। ये नागरिकों में राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति की भावना तो जगाते ही हैं, उन्हें एकता के सूत्र में भी पिरोते हैं। ये प्रतीक न केवल सांस्कृतिक महत्व रखते हैं, बल्कि राष्ट्र की जैव विविधता, उपलब्धियों और विरासत को भी प्रदर्शित करते हैं। राष्ट्र प्रतीक किसी देश की विशिष्ट पहचान बनाने और विभिन्न पृष्ठभूमि के लोगों को एक साथ लाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं, जिससे राष्ट्रीय एकता, सद्भावना को बढ़ावा मिलता है। ये प्रतीक किसी राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत, प्रचलित परंपराओं और राष्ट्र मूल्यों का सार प्रस्तुत करते हैं।
राष्ट्र प्रतीक देश के इतिहास, पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिक मूल्यों से जुड़े होते हैं, जो अतीत से वर्तमान तक उनके रहस्यों, उनकी गहराइयों को दर्शाते हैं।
अशोक चिह्न भारत का राजकीय प्रतीक है। यह भारत के प्राचीन गौरवमयी इतिहास से जुड़ा हुआ है। इसको सारनाथ में प्राप्त राष्ट्रीय स्तंभ अर्थात अशोक स्तंभ (लाट) से लिया गया है। अशोक का सिंहचतुर्मुख स्तम्भशीर्ष का शीर्ष भाग राष्ट्रीय प्रतिज्ञा चिह्न के रूप में लिया गया है। इसे संविधान सभा के द्वारा 26 जनवरी 1950 को अंगीकृत किया गया है। ऐतिहासिक विवरणियों के अनुसार सारनाथ में निर्मित अशोक स्तंभ के शीर्ष भाग को सिंहचतुर्मुख कहते हैं। इस मूर्ति में चार भारतीय सिंह पीठ से पीठ सटाये खड़े हैं। अशोक स्तंभ अब भी अपने मूल स्थान पर स्थित है, किन्तु उसका यह शीर्ष-भाग सारनाथ (वाराणसी) के संग्रहालय में रखा हुआ है।
यह सिंहचतुर्मुख स्तंभशीर्ष ने ही प्रारूप समिति के द्वारा इसे अपनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसे भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में स्वीकार किया गया है। इसके आधार के मध्यभाग में अशोक चक्र को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में बीच की सफेद पट्टी में रखा गया है। अधिकांश भारतीय मुद्राओं एवं सिक्कों पर अशोक का सिंहचतुर्मुख रहता है। सारनाथ के संग्रहालय में सुरक्षित भारत का राष्ट्रचिह्न सारनाथ स्थित अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति है। इसके मूल स्तंभ में शीर्ष पर चार सिंह हैं, जो चारों दिशाओं की ओर मुंह किए खड़े हैं। अर्थात एक-दूसरे की ओर पीठ किए हुए हैं।
इसके नीचे घंटे के आकार के पद्म के ऊपर एक चिह्न वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी मारता हुआ एक घोड़ा, एक सांड तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं, इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। एक ही पत्थर को काटकर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर क़ानून का चक्र धर्मचक्र रखा हुआ है। 26 जनवरी 1950 को अंगीकृत भारत के राजकीय प्रतीक अशोक स्तंभ अथवा चिह्न में घंटे के आकार के पद्म के ऊपर एक चिह्न वल्लरी में एक हाथी, चौकड़ी मारता हुआ एक घोड़ा, एक सांढ तथा एक सिंह की उभरी हुई मूर्तियां हैं। इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं। फलक के नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र सत्यमेव जयते देवनागरी लिपि में अंकित है, जिसका अर्थ है- सत्य की ही विजय होती है।
दोनों अनुकृतियों के सम्यक दर्शन व समतुल्य अध्ययन से स्पष्ट होता है कि सारनाथ संग्रहालय में सुरक्षित मूल स्तंभ में शीर्ष पर अवस्थित चार सिंह के विपरीत 1950 में अंगीकृत चिह्न में केवल तीन सिंह दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नहीं देता। पट्टी के मध्य में उभरी हुई नक्काशी में चक्र है, जिसके दाईं ओर एक सांढ और बाईं ओर एक घोड़ा है। दाएं तथा बाएं छोरों पर अन्य चक्रों के किनारे हैं। आधार का पद्म छोड़ दिया गया है। अशोक स्तंभ के इस अनुकृति को संविधान सभा के द्वारा 26 जनवरी 1950 को अंगीकृत किया गया है। इसे तोड़ना अथवा नुकसान पहुंचाना राष्ट्र की अस्मिता को ठेस पहुंचाना है। यह देश के गौरवमयी इतिहास को धुंधलाने के समान है।
सम्राट अशोक के बहुत से शिलालेखों पर प्रायः एक चक्र (पहिया) बना हुआ है। इसे अशोक चक्र कहते हैं। यह चक्र धर्मचक्र का प्रतीक है। सारनाथ स्थित सिंह-चतुर्मुख एवं अशोक स्तम्भ पर अशोक चक्र विद्यमान है। भारत के राष्ट्रीय ध्वज में भी अशोक चक्र को स्थान दिया गया है। संविधान सभा के द्वारा 22 जुलाई 1947 को अपनाई गई राष्ट्रीय ध्वज के प्रारूप में देश की ताकत और साहस का परिचायक केसरिया वर्ण शीर्ष में, धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत देती मध्य में अवस्थित श्वेत पट्टी और देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाने वाली हरा वर्ण वाली देश के राष्ट्रध्वज में भी चक्र का प्रारूप सारनाथ में अशोक के सिंहचतुर्मुख स्तंभशीर्ष पर बने चक्र से लिया गया है।
इसका व्यास श्वेत पट्टी की चौड़ाई के लगभग बराबर है और इसमें 24 तीलियां हैं। इसके केंद्र में अवस्थित 24 तीलियों का पहिया अशोक की सिंह राजधानी में वास्तुकला के किनारे पर दिखाई देने वाले चक्र पर आधारित है। अपने शासन के उतुंग काल में बौद्ध धर्म अपना चुके अशोक के धार्मिक प्रचार से कला को बहुत ही प्रोत्साहन मिला। अपने धर्मलेखों के अंकन के लिए अशोक ने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया। जिससे संपूर्ण देश में व्यापक रूप से लेखनकला का प्रचार हुआ। धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपूर्व विकास अशोक के समय में हुआ।
परंपरा के अनुसार तीन वर्ष के अंतर्गत 84,000 स्तूपों का निर्माण कराया गया। इनमें से ऋषिपत्तन (सारनाथ) में उनके द्वारा निर्मित धर्मराजिका स्तूप का भग्नावशेष अब भी दर्शनीय हैं। अशोक ने अगणित चैत्यों और विहारों का निर्माण कराया। देश के विभिन्न भागों में प्रमुख राजपथों और मार्गों पर धर्मस्तंभ स्थापित किए। अपनी मूर्तिकला के कारण ये स्तंभ सबसे अधिक प्रसिद्ध है। स्तंभनिर्माण की कला पुष्ट नियोजन, सूक्ष्म अनुपात, संतुलित कल्पना, निश्चित उद्देश्य की सफलता, सौंदर्यशास्त्रीय उच्चता तथा धार्मिक प्रतीकत्व के लिए अशोक के समय अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी।
इन स्तंभों का उपयोग स्थापत्यात्मक न होकर स्मारकात्मक था। सदियों से अशोक के राजधानी सिंह ने एक महत्वपूर्ण कलात्मक मॉडल के रूप में कार्य किया था। इसने भारत तथा उसके बाहर देशों में भी कई कृतियों को प्रेरित किया। मौर्य काल के बाद कई राजवंशों ने मौर्य वंश के महान बौद्ध सम्राट धम्मशोक (सम्राट अशोक) को समर्पित करने के लिए अशोक सिंहों का निर्माण कराया। ऐतिहासिक विवरणियों के अनुसार अशोक चक्र सम्राट अशोक के समय से ही शिल्प कलाओं के माध्यम से चित्रित, अंकित किया जाता रहा है। धर्म चक्र का अर्थ भगवन बुद्ध ने अपने अनेक प्रवचनों में अविद्या से दुःख तक बारह अवस्थाएं और दुःख से निर्वाण अर्थात जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति की बारह अवस्थाएं बताई है। अशोक चक्र में चौबीस तीलियां मनुष्य के अविद्या से दु:ख बारह तीलियां और दु:ख से निर्वाण बारह तीलियां (बुद्धत्व अर्थात् अरहंत) की अवस्थाओं का प्रतीक है। स्तंभ में उत्कीर्ण चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए चार शेर का भी बौद्ध धर्म में अपना महत्व है।
बौद्ध धर्म में शेर को विश्वगुरु तथागत बुद्ध का पर्याय माना गया है। बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह और नरसिंह भी है। पालि गाथाओं से इसकी पुष्टि होती है। इसी कारण बुद्ध द्वारा उपदेशित धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त को बुद्ध की सिंहगर्जना कहा गया है। ये दहाड़ते हुए सिंह धम्म चक्कप्पवत्तन के रूप में दृष्टिमान हैं। बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर भिक्खुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का आदेश इसिपतन (मृगदाव) में दिया था, जो आज सारनाथ के नाम से विश्विविख्यात है। इस प्रकार राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को तोड़ना, अपमानित करना राष्ट्र का अपमान, देश व धर्म के साथ घात, संविधान का उल्लंघन, इतिहास के साथ खिलवाड़ करने के समान है। ऐसे कुकृत्यों में शामिल लोगों के साथ कानून सम्मत व्यवहार होना ही चाहिए।


