ब्लूस्मार्ट और ओला से जुड़े इन विवादों ने ऐसे उद्योगों में ग्राहकों का विश्वास कमजोर किया है। ये कंपनियां, जो कभी सुविधा और नवाचार का प्रतीक थीं, अब वित्तीय कुप्रबंधन और अनैतिक प्रथाओं के लिए जानी जा रही हैं। ग्राहकों के बीच यह धारणा बढ़ रही है कि उनके पैसे का उपयोग न केवल उनकी सेवा में, बल्कि प्रमोटरों के व्यक्तिगत लाभ के लिए भी किया जा रहा है।
भारत का ‘कैब’ उद्योग, जो कुछ वर्षों पहले तक तकनीकी नवाचार और सुविधा का प्रतीक माना जाता था, आज ब्लूस्मार्ट और ओला जैसी प्रमुख कंपनियों पर लग रहे आरोपों से सवाल खड़े किए हुए है। धोखाधड़ी और कर चोरी के आरोपों ने न केवल उनके कारोबारी मॉडल पर सवाल उठाए हैं, बल्कि लाखों ग्राहकों के बीच अविश्वास और निराशा की भावना भी पैदा की है। ये कंपनियां, जो कभी शहरी परिवहन में भरोसेमंद थी अब अपने ग्राहकों को पठगा हुआ महसूस करा रही हैं।
ब्लूस्मार्ट, जो 2019 में एक इलेक्ट्रिक वाहन-आधारित कैब सेवा के रूप में शुरू हुई थी, ने अपनी पर्यावरण-अनुकूल नीतियों और ग्राहक-केंद्रित दृष्टिकोण के कारण तेजी से लोकप्रियता हासिल की। दिल्ली-एनसीआर, बेंगलुरु और मुंबई जैसे शहरों में इसकी सेवाएं शुरू होने के बाद, कंपनी ने कई बड़े निवेशकों से भारी फंडिंग प्राप्त की। हालांकि, अप्रैल 2025 ब्लूस्मार्ट की मूल कंपनी जेनसोल इंजीनियरिंग की वित्तीय प्रथाओं पर गंभीर सवाल खड़े किए।
सेबी ने पाया कि जेनसोल के प्रमोटरों, अनमोल सिंह जग्गी और पुनीत सिंह जग्गी ने कंपनी को दिए गए 977.75 करोड़ रुपये के ऋण का दुरुपयोग किया। यह राशि, जो इलेक्ट्रिक वाहनों की खरीद और बेड़े के विस्तार के लिए थी, कथित तौर पर आलीशान फ्लैट, गोल्फ किट, और अन्य व्यक्तिगत खर्चों पर खर्च की गई। सेबी की जांच के अनुसार, कंपनी ने केवल 4,704 वाहन खरीदे, जबकि 6,400 वाहनों का वादा किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 262.13 करोड़ रुपये ब्लूस्मार्ट की अचानक सेवा बंदी के रूप में सामने आया, जिसने अप्रैल 2025 में इसके संचालन को ही ठप कर दिया।
इस बंदी का असर हजारों ड्राइवरों, लाखों ग्राहकों व इनसे जुड़े कई लोगों पर पड़ा। ड्राइवरों को बिना किसी पूर्व सूचना के बेरोजगार छोड़ दिया गया। जबकि ग्राहकों के वॉलेट में जमा राशि, जो लाखों रुपये में थी, फंस गई। कंपनी ने घोषणा की कि यदि 90 दिनों के भीतर सेवाएं बहाल नहीं हुईं, तो रिफंड शुरू किया जाएगा। हालांकि, इस अनिश्चितता ने ग्राहकों ब्लूस्मार्ट की सुविधा और पर्यावरण-अनुकूल सेवाओं की हमेशा प्रशंसा की थी, लेकिन अब उनके वॉलेट में 4,500 रुपये फंसे हुए हैं और उन्हें रिफंड की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं मिल रही है।
कैब कंपनियों पर भरोसा टूटता दिखा
दूसरी ओर, ओला कैब्स, जो भारत के टैक्सी बाजार में अग्रणी रही है, भी हाल के वर्षों में कई विवादों में उलझी हुई है। हाल में, कंपनी पर कर चोरी और वित्तीय अनियमितताओं के गंभीर आरोप लगे हैं। आयकर विभाग की एक जांच में पता चला कि ओला ने अपने ड्राइवरों के भुगतान और किराए की राशि पर टैक्स की गणना में अनियमितताएं बरतीं। इसके अलावा, कंपनी पर आरोप है कि उसने अपनी सहायक कंपनियों के माध्यम से फंड को गलत तरीके से स्थानांतरित किया, ताकि कर देनदारियों को कम किया जा सके।
गौरतलब है कि ओला कैब्स की मूल कंपनी एएनआई टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड ने भारत में एक अग्रणी इलेक्ट्रिक स्कूटर निर्माता कंपनी ‘ओला इलेक्ट्रिक’ शुरू की। परंतु हाल के वर्षों में अपने ग्राहकों व आपूर्तिकर्ताओं के साथ सप्लायरों ने कंपनी के साथ संबंध तोड़ लिए। बीबीसी की एक रिपोर्ट में पूर्व कर्मचारियों और उद्योग सूत्रों ने खुलासा किया। ओला के खिलाफ दिवालियापन की याचिका भी दायर हुई, जिसे बाद में कंपनी ने सुलझाने का दावा किया।
इसके अलावा, ओला की लागत कम करने की रणनीति, जैसे कि वाहन पंजीकरण एजेंसियों के साथ अनुबंधों की पुन: बातचीत, ने बिक्री और पंजीकरण के आंकड़ों में भारी विसंगति पैदा की। फरवरी 2025 में, ओला ने 25,000 स्कूटर बेचने का दावा किया, लेकिन वाहन पोर्टल पर केवल 8,390 पंजीकृत हुए। इन वित्तीय और परिचालन चुनौतियों ने ओला की बाजार हिस्सेदारी को प्रभावित किया, जो सितंबर 2024 में 27 प्रतिशत तक गिर गई।
ब्लूस्मार्ट और ओला से जुड़े इन विवादों ने ऐसे उद्योगों में ग्राहकों का विश्वास कमजोर किया है। ये कंपनियां, जो कभी सुविधा और नवाचार का प्रतीक थीं, अब वित्तीय कुप्रबंधन और अनैतिक प्रथाओं के लिए जानी जा रही हैं। ग्राहकों के बीच यह धारणा बढ़ रही है कि उनके पैसे का उपयोग न केवल उनकी सेवा में, बल्कि प्रमोटरों के व्यक्तिगत लाभ के लिए भी किया जा रहा है।
इन घोटालों से भारत में ऐसे उद्योगों के लिए सख्त नियामक ढांचे की आवश्यकता को उजागर किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने और ग्राहकों व इनसे जुड़े अन्य लोगों के हितों की रक्षा के लिए कड़े नियम लागू करने चाहिए। आयकर विभाग और सेबी जैसे नियामक निकायों को ऐसी कंपनियों की निगरानी बढ़ानी चाहिए, जो बड़े पैमाने पर फंडिंग जुटाती हैं और लाखों ग्राहकों की निर्भरता का हिस्सा हैं।
इसके साथ ही, उपभोक्ता संरक्षण कानूनों को और सशक्त करने की आवश्यकता है, ताकि ग्राहकों को रिफंड और मुआवजे के लिए लंबी कानूनी प्रक्रियाओं से न गुजरना पड़े। इस स्थिति को सुधारने के लिए, कंपनियों को अपनी वित्तीय प्रथाओं में पारदर्शिता लानी होगी और नियामक निकायों को कड़े कदम उठाने होंगे। जब तक ऐसा नहीं होता, ग्राहकों और ऐसी कंपनियों से जुड़े अन्य लोगों का विश्वास जीतना इन कंपनियों के लिए एक बड़ी चुनौती बना रहेगा।
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