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15-06-2025 Vol 19

देश भर में गांधी का भूत

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राजकुमार संतोषी ने कुछ समय पहले ‘गांधी-गोड़से, एक युद्ध’ नामक फिल्म बनाई थी। संतोषी करीब दस साल बाद इस उत्तेजक विचार के साथ काम पर लौटे थे कि गांधी और गोड़से की बहस करवा दी जाए। वे अपने समय में जो कुछ नहीं कह पाए उसे कह डालें। इसे लिखने में असगर वज़ाहत भी शामिल थे और संगीत एआर रहमान का था। संतोषी ने इसमें अपनी बेटी तनीषा संतोषी को भी पेश किया था, मगर जब तक लोगों को इस फिल्म के बारे में पता चलता तब तक तो यह उतर भी गई। संतोषी को इससे ऐसा झटका लगा कि वे कोई और प्रयोग करने की बजाय, सनी देओल को लेकर ‘घातक’ का सीक्वल बनाने की सोच रहे हैं। देख लीजिए, ‘गदर-2’ के हिट होने का असर कहां तक हो रहा है।

लेकिन गांधी का भी अजीब मामला है। वे रह-रह कर और तरह-तरह से फिल्म वालों के दिमाग में आते हैं। अब एक नए निर्देशक मनीष किशोर ‘द घोस्ट ऑफ गांधी’ लेकर आ रहे हैं। थ्री ऐरोज़ प्रोडक्शन और सीता फिल्म्स की इस पेशकश में शारिब हाशमी, डेज़ी शाह और शरमन जोशी मुख्य भूमिकाओं में हैं। परदे पर शारिब तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उनकी पिछली फिल्म ‘तरला’ थी। शरमन जोशी काफी समय बाद ‘कफ़स’ में लौटे थे जबकि डेज़ी शाह ‘जय हो’ में सलमान खान की हीरोइन थीं। ‘द घोस्ट ऑफ गांधी’ को लिखा भी मनीष किशोर ने है। मूल विचार यह है कि एक दिन देश भर में लोगों को गांधी जी का भूत दिखने लगता है। विभिन्न चीजों में वह लोगों को सलाह और सुझाव देता है, उनकी सहायता करता है और कुछ गलत करने से रोकता है। इसे गांधी के संदेश उनके भूत के जरिये याद दिलाने की कोशिश मानना चाहिए। यह आइडिया मुन्ना भाई वाली फिल्मों से लिया गया लगता है। गांधी यानी उनके भूत के किरदार में सुरेंद्र राजन होंगे जो मुन्नाभाई वाली दोनों फिल्मों में थे और फिर ‘द लीजेंड ऑफ भगत सिंह’ में गांधी बने थे। खास बात यह है कि मुन्ना भाई वाली फिल्मों में केवल मुन्ना यानी संजय दत्त को गांधी नज़र आते थे, लेकिन इसमें वे बहुत से लोगों को दिखेंगे। खास कर भ्रष्ट लोगों को।

पहली बार निर्देशन दे रहे मनीष किशोर ने इसे लिखा भी है। वे कहते हैं कि हम महात्मा गांधी के संदेशों को वापस लेकर आ रहे हैं ताकि लोग जान सकें कि इन संदेशों के जरिये कैसे देश को बेहतर बनाया जा सकता है। आप पूछ सकते हैं कि क्या सचमुच देश के लोग इन संदेशों को जानना चाहते हैं? फिर भी, एक पत्रकार है जो गांधी के भूत की खबरों का पीछा कर रही है, क्योंकि भूत तो कभी कहीं दिखता है कभी कहीं और। निश्चित रूप से यह एक दिलचस्प स्थिति होगी।

सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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