‘टूरिस्ट फैमिली‘ माइग्रेशन जैसे संवेदनशील मुद्दे को उठाकर उसे कॉमिक अंदाज में बहुत ही कुशलता से दिखाती है। इस फ़िल्म में कई सीरियस बातों को बेहद दिलचस्प अंदाज़ में दिखाया गया है। फ़िल्म में कई ऐसे दृश्य हैं, जो इसे बेहद इमोशनल बना देते हैं। फैमिली वैल्यूज को फिल्म सबसे ऊपर लेकर चलती है, जो इसकी बेहतरीन बात है।… जियो हॉटस्टार पर है। देख लीजिएगा।
सिने-सोहबत
भारतीय समाज को जोड़ कर रखने के लिए परिवार एक बहुत बड़ा फ़ैक्टर है। अगर किसी की फ़ैमिली लाइफ़ सॉर्टेड है तो इंसान अपनी संघर्ष यात्रा में फ्रंट फ़ुट पर बैटिंग कर सकता है। परिवार का सेफ्टी नेट उसे आश्वस्त रखता है। आज के ‘सिने-सोहबत’ में एक ऐसी ही तमिल फ़िल्म पर चर्चा, जिसकी कहानी में सारा ड्रामा और मेलोड्रामा एक दिलचस्प परिवार के इर्द गिर्द ही है जो हर हाल में दर्शकों के चेहरों पर मुस्कान लाने से नहीं चूकती है। फ़िल्म का नाम है ‘टूरिस्ट फैमिली’ जिसका निर्देशन किया है अभिशन जीविंथ ने। बेहद ख़ुशी की बात है कि ये निर्देशक अभिशन जीविंथ की पहली फ़िल्म है और उन्होंने फ़िल्म जगत में एक शानदार दस्तक दे डाली है।
फ़िल्म की कहानी एक ऐसे परिवार के ईर्द-गिर्द घूमती है जो आर्थिक तंगी और बढ़ती मंहगाई के चलते अपना देश श्रीलंका छोड़कर समुद्र के रास्ते अवैध रूप में भारत में घुस आता है। घुसते ही परिवार का सामना पुलिस से हो जाता है। किसी तरह यह परिवार एक रिश्तेदार की मदद से चेन्नई तक पहुंच जाता है। लेकिन इस सफर के बीच रामेश्वरम में एक बम ब्लास्ट हो जाता है और शक की एक उंगली इस परिवार पर भी उठती है। इस फ़िल्म की कहानी में मुख्य प्लॉट के अलावा कुछ सब प्लॉट्स भी हैं।
दूसरे प्लॉट्स में कहानी कभी परिवार की तरफ तो कभी परिवार के पड़ोसियों की तरफ घूमती रहती है। इसी बीच में कभी बूढ़े पति-पत्नी का किस्सा भी आता है। इनके अलावा इसमें पिता से बेइंतहां नाराज बेटे का एक दिलचस्प सबप्लॉट भी है। आखिर में कहानी उसी बम ब्लास्ट वाले प्लॉट पर पहुंचती है और फिर क्या क्या होता ये जानने के लिए आपको ये फ़िल्म देखनी चाहिए। फ़िलहाल, बस इतना समझ लेना ही काफ़ी है कि इस फ़िल्म ने अपने दर्शकों को भावनात्मक रूप से झकझोर दिया है।
‘टूरिस्ट फैमिली’ माइग्रेशन जैसे संवेदनशील मुद्दे को उठाकर उसे कॉमिक अंदाज में बहुत ही कुशलता से दिखाती है। इस फ़िल्म में कई सीरियस बातों को बेहद दिलचस्प अंदाज़ में दिखाया गया है। फ़िल्म में कई ऐसे दृश्य हैं, जो इसे बेहद इमोशनल बना देते हैं। फैमिली वैल्यूज को फिल्म सबसे ऊपर लेकर चलती है, जो इसकी बेहतरीन बात है। बाप-बेटे का नोक-झोंक वाला रिश्ता जो शायद हर घर में आम है। फिल्म इसकी नस पकड़ती है। इसे सुलझाती भी है और परिवार की खुशियों को लज़ीज़ खाने और कमाल की कोरियोग्राफी वाले डांस के साथ दिखाती भी है। फिल्म में एक से ज्यादा लव स्टोरी भी है, जो समाज के कई वर्गों की धड़कनें बढ़ा देती है।
स्क्रीनप्ले का तरीका फ्रेश है और किसी भी तरह के बंधन से मुक्त। डायरेक्टर ने भी सभी दृश्यों को काफी जमा जमा कर शूट किया है। फिल्म में बारीकियों को किसी मिस्ट्री थ्रिलर की तरह दिखाया गया जो दर्शकों को दो घंटे और 10 मिनट तक लगातार बांधे रखते हैं।
बाज़ार के दबाव में इस तरह की फ़िल्में काफ़ी कम बन पाती हैं, जिन्हें देखते हुए हम अपने दुःख, दर्द, संघर्ष और महीने का खर्च भूल कर सिर्फ़ इंसानी गुडनेस मोड में चले जाते हों। ‘टूरिस्ट फ़ैमिली’ की दुनिया पूरी तरह से प्यारी सी है और इसे देखता हुआ दर्शक भी अपने बेस्ट ह्यूमन फॉर्म को अनुभूत कर पता है। निर्देशक अभिशन जीविंथ की ‘टूरिस्ट फ़ैमिली’ एक ऐसी ही फ़िल्म है जो कहीं कहीं अपने सुविधाजनक लेखन के बावजूद दर्शकों का दिल खुशी से भर देती है।
फ़िल्म का नायक और फैमिली का मुखिया धर्मदास एक अच्छा इंसान है। भले ही वह एक शरणार्थी के रूप में एक नए घर की तलाश में तमिलनाडु में आया है, लेकिन वह एक ऐसे इंसान की मदद करने के लिए रुकता है, जिसे हर कोई नशे में धुत समझता है। धर्मदास और उसके परिवार के सभी सदस्यों में जो सहज अच्छाई दिखती है, वह उनके पड़ोसियों में बदलाव लाती है, क्योंकि खुशी तो संक्रामक होती है। ‘टूरिस्ट फैमिली’ इसी कहावत को चरितार्थ करती है। फिल्म इस विचार को अलग अलग तरीके से बार बार-बार दोहराती है कि इस दुनिया में हर कोई संदेह के साथ व्यवहार करने का हकदार नहीं है।
दरअसल, समाज में हम जिस तरह से बड़े होते हैं हमारे अंदर अपने आप ही ये भावना डाल दी जाती है कि अगर कोई किसी के साथ भी बहुत अच्छा व्यवहार कर रहा है, तो ज़रूर उसके उसके पीछे छिपे कुछ दूसरे इरादे भी होंगे, जिनके बारे में अभी पता नहीं चल पा रहा है। ‘टूरिस्ट फैमिली’ यह साबित करने की पूरी कोशिश करती है कि लोग अच्छे हो सकते हैं, क्योंकि वे ऐसे ही होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे वासंती कहती है कि उसका पति भी ऐसा ही है। यह फिल्म दो बच्चों के माता-पिता के बीच एक खूबसूरत रिश्ते को सहजता से दिखाती हुई बताती है कि कैसे उनका रोमांस अभी भी जिंदा है। यहां तक कि पिता-पुत्र के बीच के संघर्ष को भी संवाद के माध्यम से सुलझाया गया है और युवा कमलेश की बदौलत हास्यपूर्ण तरीके से समाप्त किया गया है।
आलोचना के नज़रिये से देखें तो कहीं कहीं स्क्रीनप्ले बहुत ज़्यादा सुविधाजनक है, जो आपको स्क्रीन पर जो कुछ भी होता है उसे स्वीकार करने के लिए मजबूर करता है। लेकिन, जब भी ऐसा होता है, निर्देशक अभिशन ने इसे मज़ेदार सेटअप से भर दिया है जो आपको ज़ोर से हंसने पर मजबूर कर देता है। फ़िल्म में इमोशंस की कोरियोग्राफी इतनी ख़ूबसूरत है कि ये दर्शकों को कहानी की गहराई से बख़ूबी जोड़ पाने में सफल हो जाती है।
‘टूरिस्ट फैमिली’ में सबसे अच्छी बात यह है कि यह अपने हास्य के साथ सबसे भावनात्मक क्षणों को भी मजेदार बना देती है। शशिकुमार धर्मदास के रूप में बेहतरीन हैं और सिमरन, वासंती के रूप में, अपने अभिनय के माध्यम से खुशी और उदासी दोनों लाती हैं। सिमरन के क्लासिक ‘आलथोट्टा भूपति’ को थोड़ा श्रद्धांजलि देने से फिल्म में एक अच्छा स्पर्श जुड़ गया। मिथुन जय शंकर ने 20 के दशक के एक ऐसे व्यक्ति के रूप में एक सूक्ष्म प्रदर्शन किया, जो वास्तव में अपने संघर्षरत पिता की मदद करना चाहता है। जियो हॉटस्टार पर है। देख लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर पॉप कल्चर कहानीकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, ‘स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरीज़’ के होस्ट हैं।)