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आम सहमति से होना चाहिए उप राष्ट्रपति चुनाव

आश्चर्य की बात है कि विपक्ष को अपनी शक्ति का अंदाजा होने के बावजूद उसने सिर्फ राजनीति के उद्देश्य से यह चुनाव लड़ने का निर्णय किया। ध्यान रहे लोकसभा स्पीकर का चुनाव विपक्ष नहीं लड़ता है। पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद आम सहमति से लगातार दूसरी बार   ओम बिड़ला का चयन हुआ। इससे पहले की दो लोकसभा में भी स्पीकर का चुनाव आम सहमति से हुआ।

देश को नया उप राष्ट्रपति मिलने वाला है। चुनाव के लिए नामांकन हो गए हैं और अगर 25 अगस्त तक विपक्ष के उम्मीदवार जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी का नाम वापस नहीं होता है तो नौ सितंबर को चुनाव होगा और उसी दिन परिणाम भी आएंगे। भारत में आमतौर पर उप राष्ट्रपति के लिए चुनाव होता है। जो भी पार्टी विपक्ष में होती है वह अपना उम्मीदवार उतारती है। हालांकि आज तक किसी भी विपक्षी पार्टी के उम्मीदवार को जीत नहीं मिली है और न कोई विपक्षी उम्मीदवार चुनाव को बहुत रोमांचक या कांटे का बना सका है। पिछले तीन दशक के इतिहास में जो सबसे नजदीकी मुकाबला हुआ था वह 2002 के चुनाव का था, जब तत्कालीन विपक्ष की ओर से   सुशील कुमार शिंदे को उम्मीदवार बनाया गया था। उनका मुकाबला एनडीए के दिग्गज नेता   भैरोसिंह शेखावत से था। उस समय विपक्ष तमाम प्रयास के बावजूद 40 फीसदी समर्थन जुटा सका था। यानी सबसे नजदीकी मुकाबले में भी विपक्ष के उम्मीदवार की हार 10 प्रतिशत के अंतर से हुई थी।

इससे स्पष्ट है कि चुनाव प्रतीकात्मक होता है और विपक्ष सिर्फ लड़ने के लिए लड़ता है, उसके जीतने की संभावना कभी नहीं होती है। इसका कारण भी प्रत्यक्ष है। कारण यह है कि उप राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज छोटा होता है। उसमें संसद के दोनों सदनों के चुने हुए और मनोनीत सांसद ही मतदान करते हैं और चूंकि जिसका बहुमत होता है वह सत्तापक्ष में होता है इसलिए सत्तापक्ष का ही उम्मीदवार चुनाव जीतता है। राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज बहुत बड़ा होता है और वह उसमें सभी राज्यों के विधानमंडल के सदस्य भी मतदान करते हैं, जिनके मत का मूल्य उस राज्य की आबादी के अनुपात में होता है। इसलिए राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज के मत का मूल्य 10 लाख से ज्यादा होता है। तभी वह चुनाव थोड़ा जटिल होता है। हालांकि उसमें भी सत्तापक्ष के उम्मीदवार के हारने की एक ही मिसाल है, जब 1969 में तत्कालीन राष्ट्रपति   जाकिर हुसैन के निधन के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री  मति इंदिरा गांधी ने अपनी ही पार्टी से बगावत करके पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार   नीलम संजीव रेड्डी के मुकाबले   वीवी गिरी को प्रत्याशी बनवाया और उनकी जीत सुनिश्चित की। हालांकि   नीलम संजीव रेड्डी भी बाद में देश के राष्ट्रपति बने। बहरहाल, उप राष्ट्रपति के चुनाव में इलेक्टोरल कॉलेज 782 सदस्यों का होता है, जिसमें 392 वोट हासिल करने वाले की जीत होती है।

इस बार सत्तापक्ष यानी भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के पास 427 सदस्यों का समर्थन है और हर बार की तरह सत्तापक्ष के उप राष्ट्रपति उम्मीदवार को कुछ अन्य पार्टियां, जो संसद में तटस्थ रुख रखती हैं उनका समर्थन भी मिलेगा। तभी चुनाव से पहले ही नतीजा तय होता है। चुनाव जीतने की निश्चितता के बावजूद भारतीय जनता पार्टी की ओर से उप राष्ट्रपति पद के लिए आम सहमति बनाने का प्रयास किया गया था। भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने  प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी के निर्देश पर विपक्ष के नेताओं से बात की थी। उम्मीदवार के तौर पर थिरू सी. पी. राधाकृष्णन के नाम की घोषणा से पहले भाजपा की ओर से तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके के नेताओं से बात करके सहमति बनाने का प्रयास किया गया था। परंतु हर समय तमिल अस्मिता की बात करने वाले डीएमके नेता संशय में थे और चुनावी राजनीति की बाध्यताओं के तहत उन्होंने स्पष्ट संकेत नहीं दिया। नाम की घोषणा के बाद  प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी ने सभी विपक्षी पार्टियों से थिरू सी. पी. राधाकृष्णन को समर्थन देने और आम सहमति से उप राष्ट्रपति चुनने की अपील की। परंतु ऐसा लग रहा है कि हर मुद्दे पर सरकार से टकराव की राजनीति करने वाला विपक्ष इस अवसर को भी टकराव में बदलने को तैयार था।

विभाजनकारी राजनीति करने वाले विपक्ष का टकराव का रुख हर समय दिखता है। पिछले चुनाव में जब भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए की ओर से   जगदीप धनखड़ को उम्मीदवार बनाया गया तो विपक्ष ने कर्नाटक की नेता  मति मारग्रेट अल्वा को उम्मीदवार बना कर उत्तर बनाम दक्षिण का विवाद बनाने की कोशिश। इस बार जब एनडीए की ओर से तमिलनाडु के थिरू सी. पी. राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाया गया तो विपक्ष ने तमिल बनाम तेलुगू का विवाद बनाने के प्रयास के तहत आंध्र प्रदेश में जन्मे और तेलंगाना के रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया। हालांकि विपक्ष को अपनी इस विभाजनकारी राजनीति में सफलता नहीं मिल रही है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलुगू देशम पार्टी के नेता   चंद्रबाबू नायडू ने स्पष्ट कर दिया है कि उनका समर्थन गठबंधन के उम्मीदवार थिरू सी. पी. राधाकृष्णन के साथ है। विपक्ष ने इस महत्वपूर्ण अवसर पर भी राजनीति करने का और क्षेत्रीय विभाजन बढ़ाने का प्रयास किया, जिसमें उसको कामयाबी नहीं मिली। विपक्ष ने उम्मीदवार के चयन में भी उस मानदंड का पालन नहीं किया, जिसकी अपेक्षा वह सत्तापक्ष से करता है। न्यायपालिका के राजनीतिकरण को लेकर झूठी चिंता जताने वाला विपक्ष सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज को अपनी राजनीतिक लड़ाई में लेकर आ गया।

आश्चर्य की बात है कि विपक्ष को अपनी शक्ति का अंदाजा होने के बावजूद उसने सिर्फ राजनीति के उद्देश्य से यह चुनाव लड़ने का निर्णय किया। ध्यान रहे लोकसभा स्पीकर का चुनाव विपक्ष नहीं लड़ता है। पिछले साल लोकसभा चुनाव के बाद आम सहमति से लगातार दूसरी बार   ओम बिड़ला का चयन हुआ। इससे पहले की दो लोकसभा में भी स्पीकर का चुनाव आम सहमति से हुआ। परंतु उप राष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष उम्मीदवार उतारता है और राजनीति साधने का प्रयास करता है। ध्यान रहे देश का दूसरा सर्वोच्च पद होने के साथ साथ उप राष्ट्रपति की मुख्य जिम्मेदारी राज्यसभा के सभापति की होती है। तभी जैसे लोकसभा के स्पीकर का चुनाव आम सहमति से होता है वैसे ही उच्च सदन यानी राज्यसभा के सभापति का चुनाव भी आम सहमति से हो तो यह एक अच्छी परंपरा होगी क्योंकि उसके बाद सदन में टकराव की संभावना कम रहती है। विपक्ष भी यह भाव रख सकता है कि आसन पर बैठे सभापति के चयन में उसकी भी भूमिका है।

बहरहाल, विपक्ष को न सहमति चाहिए और न सद्भाव। उसे सिर्फ टकराव की राजनीति करनी है। तभी उसने इतने सोच समझ के साथ चुने गए उम्मीदवार के विरोध का निर्णय किया। ध्यान रहे थिरू सी. पी. राधाकृष्णन का सार्वजनिक जीवन पूरी तरह से बेदाग रहा है। वे 16 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और फिर भारतीय जनसंघ से जुड़े और फिर भारतीय जनता पार्टी के सदस्य रहे। दक्षिण की राजनीति में उनको अजातशत्रु माना जाता है। उनको लोग प्यार से तमिलनाडु का अटल बिहारी वाजपेयी कहते हैं। उन्होंने दक्षिण में भारतीय जनता पार्टी को स्थापित करने और उसको राजनीतिक महत्व की पार्टी बनाने में अपना जीवन खपाया है। वे तमिलनाडु के प्रदेश अध्यक्ष रहे और कोयम्बटूर की सीट से दो बार लोकसभा सदस्य चुने गए। संगठन से लेकर विधायी भूमिका में उनका योगदान अतुलनीय है। उन्होंने जीवन भर दक्षिण और उत्तर के बीच सेतु की तरह काम किया। उनको जब संवैधानिक भूमिका मिली तो उसका भी निर्वहन उन्होंने समभाव से किया। वे 2023 से 2024 के बीच करीब डेढ़ साल झारखंड के राज्यपाल रहे और कभी भी उनका रवैया टकराव वाला नहीं रहा। महामहिम राष्ट्रपति  मति द्रौपदी मुर्मू ने झारखंड के राज्यपाल के तौर पर जो परंपरा स्थापित की थी उसे थिरू सी. पी. राधाकृष्णन ने आगे बढ़ाया। महाराष्ट्र के राज्यपाल के तौर पर भी उनका कार्यकाल शांति और सद्भाव वाला रहा।

ध्यान रहे सत्तापक्ष यानी एनडीए के सभी नेताओं ने एक राय से उप राष्ट्रपति के उम्मीदवार का नाम तय करने का उत्तरदायित्व  प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी पर छोड़ा था। उन्होंने बहुत सोच समझ कर थिरू सी. पी. राधाकृष्णन का नाम तय किया क्योंकि उन्होंने इस आवश्यकता को महसूस किया कि देश की लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में देश के सभी हिस्सों का प्रतिनिधित्व होना चाहिए और वह प्रतिनिधित्व ऐसे व्यक्ति के जरिए होना चाहिए, जिसको राजनीति का लंबा अनुभव हो, सार्वजनिक जीवन बेदाग हो, जो आम सहमति की राजनीति करने में सक्षम हो और सबको साथ लेकर चल सकता हो। ध्यान रहे विपक्षी पार्टियां हर समय उत्तर और दक्षिण का विभाजन कराने का प्रयास करती हैं। तमिल और हिंदी का विवाद तो अक्सर ही पैदा किया जाता है। परंतु  प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी ने काशी तमिल संगम के मंच से लेकर मंच पर तमिल के गौरव को स्वीकार किया है। थिरू सी. पी. राधाकृष्णन का देश के दूसरे सर्वोच्च पद के चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर चयन भी  प्रधानमंत्री की इस सोच को दिखाता है। तभी विपक्षी पार्टियों को बड़ा दिल दिखाना चाहिए था और चुनाव की बजाय आम सहमति से उप राष्ट्रपति का चयन करना चाहिए था। परंतु विपक्ष पता नहीं किस भ्रम में हर समय जोर आजमाइश की राजनीति कर रहा है और हर बार उसे मुंह की खानी पड़ रही है। उप राष्ट्रपति पद के चुनाव का परिणाम भी पहले से सबको पता है। तमिलनाडु से आने वाले, बेहतरीन राजनेता और शानदार व्यक्तित्व के इंसान थिरू सी. पी. राधाकृष्णन का उप राष्ट्रपति के रूप में स्वागत करने के लिए देश तैयार है। उनका देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर आसीन होना विपक्ष की विभाजनकारी राजनीति की बड़ी पराजय होगी।

(लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तामंग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेख कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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