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भ्रष्टाचार के आरोपियों से कैसी सहानुभूति!

वैश्य समाज

अगर लोगों के हित में लड़ते हुए नेता जेल जाता है तो उसके प्रति सहानुभूति होती है। भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने वालों के प्रति हमदर्दी नहीं होती है। भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने या केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई झेल रहे नेताओं के नाम देखेंगे तो यह भी पता चलेगा कि एक अरविंद केजरीवाल को छोड़ कर बाकी सभी किसी न किसी राजनीतिक परिवार से जुड़े हैं। यानी भ्रष्टाचार और परिवारवाद दोनों का मामला है। इसलिए भी सहानुभूति की संभावना और कम हो जाती है।

एस. सुनील कहते हैं कि, ‘इतिहास अपने को दोहराता है, पहली बार त्रासदी के रूप में और दूसरी बार तमाशे के रूप में’। यह देखना दुखद है कि 10 साल के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई का इतिहास अपने आप को त्रासदी की शक्ल में दोहरा रहा है। ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ का झंडा उठा कर आंदोलन करने वाले अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार हैं। उनके कई साथी, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में शामिल थे वे पहले से जेल में हैं। यह एक खूबसूरत कल्पना के बिखरने की कहानी है।

लेकिन क्या इस आधार पर केजरीवाल को लोगों की सहानुभूति मिल सकती है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़े थे या विपक्ष में हैं इसलिए उनको परेशान किया जा रहा है या चुनाव के समय क्यों उनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है? यह हैरानी की बात है कि भ्रष्टाचार के मामले में, जिसके खिलाफ भी कार्रवाई हो रही है वह इसी तरह की दलीलें दे रहा है। अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर हो रही कार्रवाई को लोकतंत्र पर हमला बता रहा है, विपक्ष को दबाने की कोशिश कर रहा है और ऊपर से दुर्भाग्य यह है कि उस पर देशी व विदेशी ताकतों का समर्थन जुटाने की कोशिश हो रही है।

एक तरफ यह प्रयास चल रहा है कि किस तरह से केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई को राजनीतिक रंग दिया जाए तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी समूचे विमर्श को दूसरी तरफ मोड़ देने का दांव चला है। पिछले दिनों वे पश्चिम बंगाल की कृष्णानगर सीट से चुनाव लड़ रहीं भाजपा की प्रत्याशी अमृता रॉय से बात कर रहे थे तो उन्होंने कहा कि केंद्रीय एजेंसी ईडी ने पश्चिम बंगाल में भ्रष्टाचार के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई में जो तीन हजार करोड़ रुपया जब्त किया हैI

उसे वे उन लोगों को लौटाने का रास्ता तलाश रहे हैं, जिनसे यह रकम लूटी गई है। इसका मतलब है कि सांस्थायिक भ्रष्टाचार की वजह से जिन लोगों को नुकसान हुआ है या किसी न किसी रूप में जिन लोगों ने इसे भुगता है उनकी तकलीफों की कुछ भरपाई करने के उपाय खोजे जाएंगे। प्रधानमंत्री ने यह नहीं कहा कि वे सीधे गरीबों को पैसे दे देंगे। उन्होंने कहा कि इसके कानूनी और प्रशासनिक उपाय खोजे जाएंगे ताकि उनको पैसा लौटाया जा सके।

कृष्णानगर में यह बात कहने का एक और संदर्भ यह है कि वहां से तृणमूल कांग्रेस की टिकट पर महुआ मोइत्रा चुनाव लड़ रही हैं, जिनके ऊपर 17वीं लोकसभा में पैसे और उपहार लेकर सवाल पूछने के आरोप लगे थे। इन आरोपों की संसद की आचरण समिति ने जांच की थी और उसकी सिफारिश पर उनकी सदस्यता समाप्त कर दी गई थी। उनके खिलाफ लोकपाल में भी शिकायत की गई थी, जिस पर विचार करने के बाद लोकपाल ने सीबीआई को मुकदमा दर्ज करके जांच करने को कहा।

लोकपाल ने यह भी कहा है कि जांच छह महीने में पूरी होनी चाहिए। तभी सीबीआई ने मुकदमा दर्ज करके महुआ मोइत्रा को समन भेजना शुरू किया है। उनको तीन समन भेजे जा चुके हैं लेकिन वे चुनाव में बिजी होने के नाम पर हाजिर नहीं हो रही हैं। उलटे चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी है कि उनका चुनाव प्रचार प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है। यह सही है कि उनको चुनाव लड़ना है लेकिन एजेंसी को भी तो छह महीने के भीतर जांच पूरी करके लोकपाल को रिपोर्ट देनी है!

बहरहाल, प्रधानमंत्री ने लूट का पैसा लौटाने की जो बात कही है वह देश के आम गरीब तक पहुंचने वाली है और इसका विस्तार पश्चिम बंगाल से निकल कर पूरे देश में हो सकता है। यानी देश भर में केंद्रीय एजेंसियां जो पैसा या संपत्ति जब्त कर रही हैं उन्हें उन लोगों को लौटाया जा सकता है, जो इसका शिकार हुए हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने ऐसा नहीं है कि यह बात बिना सोचे विचारे कही होगी। इसके पीछे सोची समझी रणनीति है क्योंकि इसका फायदा दो स्तरों पर होगा। पहला फायदा तो वह है, जो स्पष्ट दिख रहा है। स्पष्ट फायदा यह है कि गरीबों को कुछ पैसे मिल जाएंगे।

लेकिन उससे बड़ा फायदा यह होगा कि विपक्ष के नेताओं के ऊपर लग रहा भ्रष्टाचार का आरोप ज्यादा मजबूती से स्थापित होगा। लोगों को अगर जब्त किए गए पैसे में से कुछ भी मिलने लगेगा तो वे ज्यादा विश्वास के साथ मानने लगेंगे कि विपक्ष के नेताओं ने बहुत लूट की है तभी तो सरकार उनसे जब्त किए गए पैसे बांट रही है। इससे विपक्ष के भ्रष्ट होने की धारणा मजबूत होगी और भाजपा को बड़ा राजनीतिक लाभ हो सकता है। अगर कुछ नेता अपनी जातीय या सामाजिक अस्मिता के नाम पर या पीड़ित होने के नाम पर सहानुभूति हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं उनको भी नाकामी हाथ लगेगी।

वैसे यह भी बहुत दिलचस्प बात है कि इस देश में ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक पारंपरिक नजरिए से राजनीति को देखते हैं और मानते हैं कि चुनाव के समय किसी नेता को गिरफ्तार करने से उसके प्रति सहानुभूति होती है। ऐसा मानने का कारण यह है कि मोरारजी देसाई की सरकार ने 1977 में इंदिरा गांधी को गिरफ्तार कराया था। हालांकि उस समय भी ज्यादातर लोग गिरफ्तारी के पक्ष में नहीं थे लेकिन चौधरी चरण सिंह की जिद की वजह से इंदिरा गांधी की गिरफ्तारी हुई। माना जाता है कि उसके बाद से पूरे देश में माहौल बदला।

इंदिरा के प्रति सहानुभूति हुई और 1980 में कांग्रेस की ज्यादा बड़े बहुमत के साथ वापसी हो गई। लेकिन इसे हर समय की राजनीति के ऊपर लागू नही किया जा सकता है। एक तो पिछले पांच दशक में गंगा-जमुना में पानी बहुत बह गया है और दूसरे इंदिरा गांधी के बारे में सबको पता है कि उन्होंने विपक्ष के नेताओं को जेल में डाला था उसका बदला लेने के लिए उनको जेल में डाला गया था। उनके ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे थे। तभी लोगों की सहानुभूति हुई।

इसके उलट आज जो नेता जेल जा रहे हैं वे सब भ्रष्टाचार के मामले में जेल जा रहे हैं। यह भी हकीकत है कि ज्यादातर नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले केंद्र की मौजूदा सरकार ने नहीं शुरू किए हैं। उनके खिलाफ मामले पहले से चल रहे हैं। लालू प्रसाद को अगर सजा हुई है तो उनके खिलाफ चारा घोटाले का मामला नब्बे के दशक से चल रहा है। रेलवे में नौकरी के बदले जमीन लेने का मामला भी 2004 से 2009 के बीच का है और उसकी शिकायत भी जनता दल यू के नेता ललन सिंह ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले की थी।

पी चिदंबरम के खिलाफ मैक्सिस एयरसेल घोटाले का मामला भी मोदी के पीएम बनने से पहले का है। पश्चिम बंगाल में भी एक दो नए मामलों को छोड़ दें तो नारदा, शारदा आदि के मामले पुराने हैं। हां, दिल्ली की शराब नीति में हुए घोटाले का मामला जरूर नया है। लेकिन यह भी ऐसा मामला नहीं है, जिसमें किसी की गिरफ्तारी से कोई सहानुभूति की लहर पैदा हो जाए।

तभी यह संभव नहीं है कि अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी से कोई सहानुभूति लहर पैदा होगी और वे दिल्ली व पंजाब में भाजपा को हरा देंगे या हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी से ऐसी हमदर्दी की लहर चलेगी कि झारखंड में भाजपा हार जाएगी या के कविता की गिरफ्तारी से तेलंगाना में चंद्रशेखर राव की पार्टी को कोई लाभ हो जाएगा। ये सारे नेता भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार हुए हैं।

जो नहीं गिरफ्तार हुए हैं और अभी अदालतों के चक्कर काट रहे हैं वे भी भ्रष्टाचार के मामले में ही फंसे हैं। किसी के खिलाफ कोई राजनीतिक मामला नहीं है। किसी आंदोलन में शामिल होने का मुकदमा नहीं है। अगर लोगों के हित में लड़ते हुए नेता जेल जाता है तो उसके प्रति सहानुभूति होती है। भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने वालों के प्रति हमदर्दी नहीं होती है। भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने या केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई झेल रहे नेताओं के नाम देखेंगे तो यह भी पता चलेगा कि एक अरविंद केजरीवाल को छोड़ कर बाकी सभी किसी न किसी राजनीतिक परिवार से जुड़े हैं।

यानी भ्रष्टाचार और परिवारवाद दोनों का मामला है। इसलिए भी सहानुभूति की संभावना और कम हो जाती है। उलटे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का यह संकल्प मजबूत होता है कि वे भ्रष्टाचारियों को बख्शेंगे नहीं और उनसे लूट की पाई पाई वसूलेंगे। जनता में यह बात इसलिए भी ज्यादा अपील करेगी क्योंकि भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए ही जनता ने श्री मोदी को जनादेश दिया था।

वे जनता का काम कर रहे हैं इसलिए जनता उनके साथ खड़ी है और इस बार के चुनाव में भाजपा को 370 सीट तक पहुंचाएगी।  (लेखक सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के प्रतिनिधि हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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By Naya India

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