delhi election: भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव बहुत बारीक प्रबंधन के साथ लड़ती है। लेकिन हर चुनाव के साथ उसके प्रबंधन का तरीका बदलता जाता है या उसमें कुछ नई चीजें जुड़ती हैं।
विपक्षी पार्टियां चुनाव प्रबंधन के पारंपरिक तरीकों से तो वाकिफ हैं लेकिन नई चीजों को समय रहते नहीं समझ पाती हैं।
जैसे मतदाताओं के नाम जुड़वाने या कटवाने की रणनीति को कांग्रेस या दूसरी विपक्षी पार्टियों के नेता हरियाणा और महाराष्ट्र में नहीं समझ पाए थे।
उन्होंने चुनाव के बाद यह मुद्दा उठाया। ऐसे ही हरियाणा में प्रॉक्सी फाइट की रणनीति को भी कांग्रेस समय रहते नहीं भांप पाई।
बाद में पता चला कि भाजपा के 89 उम्मीदवार कमल के निशान पर लड़ रहे थे लेकिन इनके अलावा दो सौ से ज्यादा उम्मीदवारों का चुनाव भी भाजपा लड़ रही थी।(delhi election)
दिल्ली के चुनाव में अरविंद केजरीवाल भाजपा के इन तमाम दांवपेंच और बारीक प्रबंधन के हिसाब से मुकाबले के लिए तैयार थे लेकिन दिल्ली में भाजपा ने कुछ नई चीजें जोड़ दीं। सो, दोनों के प्रबंधन में डाल-डाल और पात-पात का मुकाबला हो गया।
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हरियाणा और महाराष्ट्र से उलट दिल्ली में केजरीवाल ने पहले से इस बात का मुद्दा बनाना शुरू कर दिया था कि आम आदमी पार्टी के समर्थकों के नाम मतदाता सूची से काटे जा रहे हैं और बाहर से लाकर मतदाताओं के नाम जुड़वाए जा रहे हैं।
नई दिल्ली से, भाजपा के उम्मीदवार परवेश वर्मा के खिलाफ आप ने चुनाव आयोग में शिकायत दर्ज कराई कि उनके पते पर फर्जी नाम जोड़े जा रहे हैं।(delhi election)
केजरीवाल अलर्ट थे। इसके बावजूद भाजपा इस प्रबंधन में काफी हद तक कामयाब रही क्योंकि उसने यह काम कई महीने पहले शुरू कर दिया था।
भाजपा के नेता हर क्षेत्र में कई महीने पहले से नामों की सूची चुनाव आयोग को दे रहे थे। उनकी एक सूची ऐसे नाम हटवाने की होती थी और दूसरी जुड़वाने की।
मतदाता सूची से छेड़छाड़(delhi election)
मतदाता सूची से छेड़छाड़ के खेल को अरविंद केजरीवाल समझ रहे थे इसलिए कह सकते हैं कि इसमें उनकी पार्टी ने भाजपा का पीछा किया लेकिन यह तो एक हिस्सा था भाजपा के चुनाव प्रबंधन का।
एक दूसरा हिस्सा जाति के प्रबंधन का था। आमतौर पर दिल्ली के बारे में कहा जाता है कि महानगर है और जातीय आधार पर मतदाताओं का विभाजन नहीं होता है।
लेकिन यह एक मिथक है। जिस कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाली बस्तियों में आप बड़े अंतर से जीतती है वो बस्तियां सिर्फ आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों का नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से भी पिछड़ों का है।
यानी इन बस्तियों में दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक ज्यादा संख्या में रहते हैं। वैसे तो दिल्ली की हर तरह की बस्तियों में पिछली बार आप को बढ़त मिली थी लेकिन झुग्गी झोपड़ी बस्तियों में वह 97.5 फीसदी बूथों पर जीती थी
रिसेटलमेंट कॉलोनियों में, जहां 12 गज के प्लॉट पर 1960 के दशक में लोग बसाए गए थे वहां भी 90 फीसदी बूथों पर आप जीती थी।(delhi election)
इस बार असली लड़ाई वहां हुई है। आम आदमी पार्टी इन दो तरह की बस्तियों में अपना किला बचाने के लिए लड़ रही थी तो भाजपा सेंध लगाने के लिए।
हाथी के दिखाने वाले दांत
भाजपा ने आरएसएस की मदद से इन बस्तियों की सामाजिक संरचना को समझा। उस हिसाब से प्रबंधन किया। उसने इनको एक वर्ग की तरह ट्रीट नहीं किया, बल्कि अलग अलग जातियों के हिसाब से इनका प्रबंधन किया।
इसके लिए देश भर के ऐसे नेता, बुलाए गए थे, जो अलग अलग जातियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आमतौर पर सबकी नजर 40 स्टार प्रचारकों पर रहती है कि उसमें कितने लोग किस राज्य के हैं और किस जाति हैं।
जैसे भाजपा के स्टार प्रचारकों में बिहार के गिरिराज सिंह और सम्राट चौधरी थे तो उत्तर प्रदेश के योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य।(delhi election)
दिल्ली के सांसद मनोज तिवारी भी प्रवासी वोट के लिए घूम रहे थे। लेकिन ये हाथी के दिखाने वाले दांत थे।
भाजपा ने उत्तर प्रदेश और बिहार के दलित, पिछड़े, अत्यंत पिछड़े समुदाय के नेताओं को अलग अलग बस्तियों में उतारा था। वे सिर्फ उन लोगों के बीच काम कर रहे थे, जिनका प्रतिनिधित्व अपने क्षेत्र में करते हैं।
इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश की संत कबीरनगर सीट के विधायक श्रीराम चौहान दिल्ली की सिर्फ उन बस्तियों में काम कर रहे थे, जहां बेलदार आबादी है।
वे पूर्वी उत्तर प्रदेश में बेलदार अस्मिता का प्रतिनिधित्व करते हैं और दिल्ली के और दिल्ली में रहने वाले उत्तर प्रदेश के बेलदार भी अपने को उनके साथ आइडेंटिफाई करते हैं।(delhi election)
इस तरह से कम आबादी वाली अनेक जातियों के नेताओं को दिल्ली की झुग्गी और रिसेटलमेंट बस्तियों में लगाया गया था।
दलित मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री
इसमें भी भाजपा ने दलित बस्तियों और दलित वोट पर खास ध्यान दिया था। भाजपा को पता था कि यह उसकी कमजोर कड़ी है क्योंकि दिल्ली में उसे पंजाबी और बनियों की पार्टी मान जाता है।(delhi election)
इस बार इस छवि को तोड़ने का प्रयास भाजपा ने किया। दिल्ली का चुनाव प्रबंधन संभाल रहे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कई बार कहा कि अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में दलित उप मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था लेकिन नहीं बनाया।
यह बात उन्होंने करोलबाग से चुनाव लड़ रहे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और दलित नेता दुष्यंत गौतम की सभा में भी कही। इस तरह भाजपा ने दलित मुख्यमंत्री या उप मुख्यमंत्री बनाने का संकेत दिया।
अगर भाजपा की सरकार बनती है तो दुष्यंत गौतम मुख्यमंत्री हो सकते हैं। इस एक दांव से कांग्रेस के जय बापू, जय भीम, जय संविधान के नैरेटिव को जवाब मिलेगा तो अबंडेकर दिए अमित शाह के बयान से भी भाजपा को मुक्ति मिलेगा।(delhi election)
बहरहाल, माइक्रो स्तर पर भाजपा के दलित नेता बस्तियों में काम कर रहे थे लेकिन बड़े स्तर पर अमित शाह ने संदेश दिया। दूसरी ओर केजरीवाल ने दलित वोट संभालने के लिए बहुत ध्यान नहीं दिया।(delhi election)
उनके दो दलित मंत्रियों, राजकुमार आनंद और राजेंद्र पाल गौतम ने पार्टी छोड़ी। गौतम ने हिंदू देवी देवताओं के खिलाफ बयान दिया और जब वे विवादों में घिरे तो केजरीवाल ने उनको बचाने की बजाय उनका इस्तीफा कराया।
आप की वादाखिलाफी(delhi election)
ऐसा नहीं है कि आम आदमी पार्टी इस बात को नहीं समझ रही थी लेकिन जातियों का प्रबंधन करने की बजाय उसका जोर इस बात पर था कि वह बिजली, पानी और महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा दे रही है और महिलाओं के नकद रुपए देने का वादा किया है तो उसको इसका फायदा होगा।
लेकिन इस दांव को भी भाजपा ने बहुत बारीकी से काटने का प्रयास किया। ध्यान रहे दिल्ली की झुग्गियों और रिसेटलमेंट कॉलोनियों में ज्यादातर आबादी बिहार, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड आदि राज्यों की है।(delhi election)
भाजपा ने इन राज्यों के नेताओं को बस्तियों में बैठाया और यह समझाया कि अब मुफ्त की चीजें सिर्फ आप नहीं दे रही है, बल्कि सभी राज्यों में, चाहे जिस पार्टी को सरकार को मुफ्त की चीजें मिल रही हैं।
ऊपर से केजरीवाल ने पिछले साल फरवरी में दिल्ली की महिलाओं को 11 सौ रुपए देने का वादा किया था, जो उन्होंने नहीं दिया।(delhi election)
पंजाब में भी महिलाओं को नकद रुपए देने का वादा तीन साल बाद भी पूरा नहीं किया गया है। भाजपा ने इसको हाईलाइट किया और मध्य प्रदेश की लाड़ली बहना, छत्तीसगढ़ की महतारी वंदन और महाराष्ट्र की लड़की बहिन योजना का जिक्र करके बताया कि भाजपा महिलाओं को नकद रुपए दे रही है।
सो, जिस भी मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को बढ़त मिलने की संभावना थी उस पर भाजपा ने बहुत बारीक प्रबंधन किया। दोनों के बीच अंत समय तक एक दूसरे को काटने के दांवपेंच चलते रहे।(delhi election)