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कुंभ और कांग्रेस

Kumbh and Congress

Kumbh : पिछले कई महीनों से देश में महाकुंभ का नैरेटिव बना। कांग्रेस ने उस पर सोचा ही नहीं। वह चाहती तो इसका हिस्सा बन सकती थी। महाकुंभ भारत की धार्मिकता से ज्यादा संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती है। जैसे पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा संस्कृति का हिस्सा है और तभी धर्म को अफीम मानने वाली कम्यूनिस्ट पार्टियों के नेता भी पूजा पंडालों में जाते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अजमेर शरीफ पर चादर चढ़ाते हैं, दाऊदी वोहरा समुदाय के धार्मिक आयोजन का हिस्सा बनते हैं, मुस्लिम शासकों के गले मिलते हैं, उनको भाई बताते हैं और दिल्ली में जहान ए खुसरो कार्यक्रम में भी शामिल हो रहे हैं। यह सब प्रतीकात्मक होता है लेकिन कांग्रेस ऐसा भी नहीं कर पाती है। (Kumbh)

कांग्रेस देश के करोड़ों लोगों को जोड़ने वाले महाकुंभ का हिस्सा बनती तो वह घर घर पहुंचे विमर्श का भी हिस्सा बन सकती थी। अनेक शंकराचार्य और कथावाचक हैं, जो भाजपा से नहीं जुड़े हैं या दलनिरपेक्ष हैं। उनके साथ कांग्रेस भी जुड़ सकती थी। कांग्रेस अपने अनुषंगी संगठनों जैसे सेवा दल या यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई का शिविर महाकुंभ में लगवा सकती थी। लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं किया। उसकी निष्क्रियता या दूरी की वजह से महाकुंभ का पूरा नैरेटिव भाजपा की ओर मुड़ गया। (Kumbh)

भाजपा ने पूरे विमर्श को कंट्रोल किया और जैसे मन हुआ वैसे उसका इस्तेमाल किया। तभी पूरा श्रेय भी उसको ही मिला। महाकुंभ के बाद भी योगी आदित्यनाथ और उनके दोनों उप मुख्यमंत्री महाकुंभ पहुंचे और साफ सफाई की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ब्लॉग लिखा, जिसको हिंदी और अंग्रेजी के सभी अखबारों ने आलेख के तौर पर छापा। उन्होंने महाकुंभ के सफल आयोजन का श्रेय तो लिया ही साथ ही कमियों के लिए क्षमा प्रार्थना भी की। कांग्रेस इस पूरे नैरेटिव में कहीं नहीं दिखी।(Kumbh)

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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