Wednesday

30-04-2025 Vol 19

अब खुश रखना ही बडा काम!

लोकसभा चुनाव के नतीजों ने केंद्र सरकार और भाजपा के कामकाज का तरीका बदला है। लगातार 10 साल तक किसी की परवाह नहीं करने वाले मोदी अब सबकी परवाह कर रहे हैं। अपने नेताओं के साथ साथ सहयोगी पार्टियों को खुश रखने का काम कर रहे हैं। जनता दल यू और टीडीपी के 28 सांसदों के समर्थन से उनकी सरकार बनी है। इन दोनों पार्टियों ने अभी तक सद्भाव दिखाया है और इनकी ओर से किसी तरह का दबाव नहीं दिया गया है। यहां तक कि सरकार के गठन पर जितने मंत्री पद दिए गए और जो मंत्रालय दिए गए उन पर भी इन पार्टियों ने आपत्ति नहीं की। फिर भी सरकार का सारा ध्यान इनको खुश करने में लगा है। बजट में बिहार के लिए 59 हजार करोड़ रुपए और आंध्र प्रदेश के लिए 15 हजार करोड़ रुपए के प्रावधान किए गए, जिसे लेकर विपक्षी पार्टियां आंदोलन कर रही हैं।

बजट में विशेष प्रावधान करने से पहले इन पार्टियों को और तरीके से भी खुश करने का काम हुआ। इस बार एनडीए में शामिल सभी घटक दलों को मंत्रिमंडलीय समितियों में जगह मिली है। जनता दल यू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह आर्थिक मामलों की समिति और संसदीय मामलों की समिति के सदस्य बने हैं तो जीतन राम मांझी और टीडीपी के राममोहन नायडू को राजनीतिक मामलों की कैबिनेट कमेटी का सदस्य बनाया गया है। लोजपा नेता चिराग पासवान को निवेश और विकास की कैबिनेट कमेटी का सदस्य बनाया गया है। जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी भी आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी के सदस्य बने हैं।

इसी तरह नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल का पुनर्गठन किया गया तो उसमें जनता दल यू के राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी, लोजपा के चिराग पासवान, जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी और टीडीपी के राममोहन नायडू को भी सदस्य बनाया गया। पता नहीं इन समितियों में ये नेता कितनी भूमिका निभाएंगे लेकिन इनको अहम मंत्रिमंडलीय समितियों में शामिल करने से यह मैसेज बना है कि सरकार अब भाजपा या नरेंद्र मोदी की नही है, बल्कि एनडीए की है।

इसके बावजूद नीतिगत मसलों पर सहयोगी पार्टियों की बात भी सुननी पड़ रही है। समान नागरिक संहिता और मुस्लिम आरक्षण पर तो कई सहयोगी पार्टियों ने पहले ही अपनी राय साफ कर दी थी और पिछले दिनों कांवड़ यात्रा के रास्ते में दुकानदारों को अपनी दुकानों के आगे नाम लिख कर लगाने के आदेश पर कम से कम तीन सहयोगी पार्टियों ने खुल कर आपत्ति जताई। जनता दल यू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी, लोक जनशक्ति पार्टी के चिराग पासवान और राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी ने इस पर आपत्ति की थी। इसका विरोध किया था और फैसला वापस लेने की मांग की थी।

सहयोगी पार्टियों के साथ साथ भाजपा सांसदों के भी मुंह खुल गए हैं। वे भी अपनी शिकायत सार्वजनिक रूप से करने लगे हैं। झारखंड से भाजपा के राज्यसभा सांसद आदित्य साहू ने संसद में कहा कि सांसदों की सिफारिश पर ट्रेन की टिकट कन्फर्म नहीं हो रही है। उन्होंने हालांकि इससे पहले बड़ी भूमिका बांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की तारीफ की लेकिन बाद में अपनी पीड़ा व्यक्त की। प्रदेश भाजपा के नेता तो यह शिकायत रोज ही कर रहे हैं कि ऐसी शासन व्यवस्था बनी है कि अधिकारी उनकी बात नहीं सुन रहे हैं। सरकार के कामकाज पर नौकरशाही के हावी होने का जो नैरेटिव था वह अब खुल कर सामने आने लगा है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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