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भाजपा की सुनामी दूर-दूर तक नहीं!

लोकसभा चुनाव

नरेंद्र मोदी अब जनसभाओं में चार सौ पार का नारा पहले की तरह हर जगह लगवाते हुए नहीं हैं। मैंने चार सौ सीटों की सुनामी के भाजपा हल्ले पर पंद्रह दिन पहले राज्यवार सीटों की अनुमानित लिस्ट देना शुरू किया था।

भाजपा की हवाई सुनामी को पहली लिस्ट में डाला तब भी चार सौ सीटों का आंकड़ा नहीं बना। उसके बाद पिछले सप्ताह (29 मार्च 2024) भाजपा-एनडीए की अधिकतम सीटों का अनुमान 358 सीटों का था। जबकि कांटे के मुकाबले के जमीनी सिनेरियो में गैर-एनडीए पार्टियों की सीटों का अनुमान था 248 सीट।

पिछले सात दिनों में माहौल बदला है। राजनीति बदली है। इसके लक्षण? एक, अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी और दिल्ली में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की सभी पार्टियों के नेताओं की रैली। दो, विपक्षी एकता और काडर का जमीनी साझा बनना। तीन, भाजपा के बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र में उम्मीदवार घोषित होना।

चार, पंजाब-हरियाणा-महाराष्ट्र-कर्नाटक-ओडिशा में भाजपा की तैयारियों के अनुसार एलायंस नहीं होना या गड़बड़ाना या पार्टी के भीतर (कर्नाटक) कलह की मुश्किलें। पांच, मोदी राज की वैश्विक बदनामी। छह, मोदी मीडिया की विपक्ष में फूट, दलबदल आदि की तमाम निगेटिव खबरों के बावजूद विपक्षी एलायंस के उम्मीदवारों की चुपचाप एक-एक कर घोषणा होते जाना।

इसलिए कही भी वरिष्ठ पत्रकारों-जमीनी जानकारों से बात करें, मुंबई-नागपुर बात करें या चंडीगढ़ या पटना या हैदराबाद या कोलकाता सभी तरफ से फाइट होते लगने की जानकारी मिल रही है।

एक सुधीजन ने कहा, वह जज ममता के एक नौजवान उम्मीदवार से हारेगा, जिसने इस्तीफा दे कर बेशर्मी से भाजपा का टिकट लिया। या मुंबई के एक वरिष्ठ पत्रकार का यह वाक्य कि मुंबई-ठाणे-कोंकण की 13 लोकसभा सीटों में ही भाजपा के पसीने आ जाने हैं तो पश्चिम महाराष्ट्र, मराठवाड़ा में तो देखिएगा क्या होता है। औरंगाबाद में हर मुसलमान उद्धव ठाकरे की पार्टी को वोट देगा!

बहरहाल, इस सप्ताह के संशोधित अनुमान में गैर-हिंदी प्रदेशों की आबोहवा में भाजपा की कथित सुनामी और पिचकती हुई है। 29 मार्च को भाजपा सहित पूरे एनडीए का कुल अनुमान 358 सीटों का था वह अब 328 पर अटका है। वही गैर-एनडीए पार्टियों के विपक्ष की सीटों का आंकड़ा पिछले सप्ताह जैसा ही 248 सीट का है। साथ की राज्यवार सीट पर गौर करें-

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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