सवाल है भारत के डेलिगेशन किन लोगों से मिल रहे है? उन देशों के नीतिगत फैसलों में उन लोगों की क्या भूमिका है? यह भी सवाल है कि भारतीय डेलिगेशन का असल मकसद क्या है? यह स्पष्ट नहीं है। भारत के नेता भारतीय दूतावास, उच्चायोग या वाणिज्य दूतावासों की ओर से आयोजित कार्यक्रमों में भाषण दे रहा है। ज्यादातर कार्यक्रम भारत के दूतावासों में ही हो रहे हैं। लगभग सारी मुलाकातें संबंधित देशों के रिटायर नेताओं या थिंकटैंक के साथ हो रही हैं। भारतीय मूल के लोग दूतावासों के कार्यक्रमों में जुट रहे हैं और भारतीय डेलिगेशन के सदस्य भारत का राजदूतों और उच्चायुक्तों की तारीफ में पोस्ट कर रहे हैं।
यानी भारत का डेलिगेशन वहां जाकर प्रवासी भारतीयों को बीच भाषण कर रहा है और सब कुछ सिर्फ भारतीय मीडिया में छप रहा है। मेजबान देश की मीडिया का लगता है कि इससे कोई मतलब नहीं है। गुयाना जैसे देश में जहां भारतीय मूल के राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति हैं वहां की अलग बात है।
ऐसे ही कुछ अन्य छोटे देशों में जरूर महत्वपूर्ण नेता भारतीय डेलिगेशन से मिले लेकिन बड़े देशों में एकाध अपवादों को छोड़ कर कोई बड़ा नेता भारतीय डेलिगेशन से नहीं मिला है। अब भारतीय डेलिगेशन का दौरा पूरा होने वाला है और अभी तक किसी देश ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है। भारत के सदस्य जरूर पाकिस्तान का नाम लेते रहे, लेकिन जिन देशों में भी कोई बयान जारी किया या बातचीत का ब्योरा दिया उनमें से किसी ने पाकिस्तान का नाम नहीं लिया।
भारत के उलट पाकिस्तान के प्रयास को देखने की जरुरत है। पाकिस्तान कंगला और एक विफल देश है। लेकिन भारत की सैन्य कार्रवाई के दौरान उसे कई देशों का समर्थन मिला। इसके बाद जब सीजफायर हो गया तो भारत ने सात भारी भरकम प्रतिनिधिमंडल भेजे, जबकि पाकिस्तान ने चुनिंदा नेताओं को विदेश दौरे पर रवाना किया।
भारत-पाकिस्तान की कूटनीतिक टक्कर
कितनी हैरानी की बात है कि पाकिस्तान ने उन देशों को चुना, जिन देशों ने उसकी मदद की थी। खुल कर उसके समर्थन में उतरे थे। इस पूरे घटनाक्रम के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ 25 मई को तुर्किए की यात्रा पर गए और वहां के राष्ट्रपति एर्दोआन से मिले।
प्रधानमंत्री शरीफ अपने साथ सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को भी ले गए थे। सोचें, पाकिस्तान ने कैसा मैसेज बनवाया? इसी तरह पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार चीन की यात्रा पर गए और वहां उन्होंने चीन के नेताओं से मुलाकात की।
इस मुलाकात के बाद इशाक डार अपने देश लौटे और उधर चीन ने करीब पौने चार अरब डॉलर के कर्ज में पाकिस्तान को डिफॉल्ट होने से बचा लिया। यह पाकिस्तान और चीन की कूटनीति थी, जो अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मुत्ताकी बीजिंग पहुंचे और वहां इशाक डार, वांग यी और मुत्ताकी के मीटिंग के बाद चीन की महत्वाकांक्षी योजना चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर का विस्तार अफगानिस्तान तक करने का फैसला हुआ। गौ
रतलब है कि भारत की सैन्य कार्रवाई के बीच चीन और तुर्किए ने पाकिस्तान की खुल कर मदद की थी। दोनों के दिए हथियारों से पाकिस्तान लड़ा था और दोनों ने नैतिक व कूटनीतिक समर्थन भी उसे दिया। चीन ने तो पाकिस्तान की संप्रभुता की रक्षा का संकल्प जताया।
पाकिस्तान के साथ सैन्य संघर्ष के दौरान किसी देश ने भारत का खुल कर समर्थन नहीं किया। इसलिए भारत के पास ऐसा कोई विकल्प नहीं है कि वह पहले उन देशों की यात्रा करे, जिन्होंने भारत का साथ दिया। इसलिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी 15 सदस्यों देशों के साथ साथ कुल 33 देशों में अपना प्रतिनिधिमंडल भेजा। इसका कुल जमा हासिल यह है कि भारत की कूटनीति सिर्फ दिखावे वाली होकर रह गई, जबकि पाकिस्तान की कूटनीति ने उन देशों के साथ उसकी दोस्ती मजबूत की, जिन्होंने संकट में उसका साथ दिया।
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