संसद सत्र शुरू होने वाला है। और सरकार के पास सच बताने का मौका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद बताना चाहिए कि क्या वह सत्य है जो विश्व मीडिया ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के घटनाक्रम पर लिखा है? अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप लगातार कह रहे हैं कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान में सीजफायर कराया तो वह सत्य है या नहीं? यदि सत्य था तो दो टूक मानना चाहिए कि भारत ने एक मित्र देश से कहा था। और ऐसा करना सही था। जो है उसकी सच्चाई से जवाब होगा तो ट्रंप और मित्र देश आश्वस्त ही होंगे और भारत की मदद में आगे भी खड़े रहेंगे।
ऐसे ही आए दिन वैश्विक मीडिया, सामरिक जानकारों में आपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेना को हुए नुकसान तथा सेना की क्षमता व रणनीतिक चूक का ब्योरा छपता है। जबकि भारत सब कुछ छिपाए हुए है। इसी सप्ताह लंदन के ‘द इकॉनोमिस्ट’ ने आपरेशन सिंदूर पर एक विस्तृत रिपोर्ट में यह लिखा है- “सात मई की सुबह, उत्तर भारत के एक छोटे से गांव अकालिया कलां में लोग चौंककर नींद से जागे। आसमान में तेज़ गर्जना थी—हवा में धमाकों की शृंखला। पास के एयरबेस से लड़ाकू विमान उड़ते देखना तो आम बात थी, लेकिन यह आवाज़ अलग थी, जैसे कोई भटकी हुई आग बरस रही हो। गांववालों ने देखा कि आग का एक गोला उनके सिर के ऊपर से गुज़रा और पास के खेतों में आकर गिरा। मलबा साफ़ तौर पर एक लड़ाकू विमान का था। दो ग्रामीणों की मौके पर मौत हो गई। दो पायलट खेतों में घायल मिले—वे पहले ही विमान से कूद चुके थे”।
पत्रिका ने आगे लिखा- “भारत सरकार ने अभी तक इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है, लेकिन यह भारत और पाकिस्तान के बीच मई में हुए चार दिन के टकराव में मार गिराए गए कई विमानों में से एक था। पाकिस्तान दावा करता है कि उसने छह भारतीय विमानों को मार गिराया—जिसमें तीन फ्रांसीसी राफेल भी थे। भारत इन दावों को खारिज करता है। लेकिन अमेरिकी और अन्य विदेशी सैन्य अधिकारियों का मानना है कि कम से कम पांच भारतीय लड़ाकू विमानों का नुकसान हुआ—और उनमें एक राफेल भी था। अब भारत के सैन्य अधिकारी भी मानने लगे हैं कि कुछ विमान खोए हैं—और यह भी कि शायद यह तकनीकी खामी नहीं, बल्कि भारतीय रणनीतिक चूक का परिणाम था”।..
“…यह स्वीकारोक्ति इसलिए अहम है क्योंकि पाकिस्तान के हथियारों का मुख्य सोर्स अब चीन है। यह पहली बार था जब पश्चिमी और रूसी तकनीक के खिलाफ चीन निर्मित J-10 लड़ाकू विमान और PL-15 मिसाइलें इस्तेमाल हुईं। अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञों ने इसे गंभीरता से इसलिए लिया है, क्योंकि यही हथियार भविष्य में ताइवान युद्ध में इस्तेमाल हो सकते हैं। शुरुआती रिपोर्टों में कहा गया कि पाकिस्तान की वायु श्रेष्ठता में निर्णायक भूमिका उसके चीनी हथियारों की रही—जिसे भारत ने शायद कम आंका। चीन ने न सिर्फ हथियार दिए, बल्कि रियल-टाइम डेटा और पूर्व-सतर्कता सूचना भी दी—जिससे पाकिस्तान की आकाशीय रणनीति मारक हो गई”।
“….जून में जकार्ता में कैप्टन शिव कुमार ने स्वीकार किया कि शुरुआती नुकसान इसलिए हुआ क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने वायु सेना को आदेश दिया था कि वह पाकिस्तान की सैन्य संरचनाओं पर हमला न करे— सिर्फ आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाए। ‘पहले दिन हम सिर्फ सीमित लक्ष्य साध रहे थे’, उन्होंने कहा, ‘लेकिन जब नुकसान हुआ, तब हमने रणनीति बदली और सैन्य ठिकानों को भी निशाना बनाया’। … मई के अंत में भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान ने टेलीविज़न साक्षात्कार में माना कि पहले दिन भारत ने कुछ विमान खोए और ऐसा होना ‘रणनीतिक भूलों’ के कारण हुआ। लेकिन दो दिन के भीतर भारत ने अपनी रणनीति सुधारी—और लंबी दूरी से पाकिस्तान के ठिकानों को भेदा”। “…. विशेषज्ञों का एक मत है कि भारत ने राफेल विमानों पर लंबी दूरी की Meteor मिसाइलें नहीं लगाई थीं, यह सोचकर कि पाकिस्तान की प्रतिक्रिया सीमित होगी। एक अन्य व्याख्या है कि भारतीय विमानों में न तो उपयुक्त इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग सिस्टम था, न अद्यतन सॉफ्टवेयर, और न ही ऐसा मिशन डेटा जो यह बता सके कि पाकिस्तान भारतीय विमानों को कैसे पहचान रहा था और लक्ष्य तक मिसाइल कैसे पहुंचा रहा था।… ….राफेल विमानों ने उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं किया। अन्य आरोप यह हैं कि डसॉल्ट सॉफ़्टवेयर का स्रोत कोड साझा करने को तैयार नहीं है—जिससे भारत उन्हें अपने हिसाब से अनुकूल नहीं बना पा रहा”।
“….चीन इस पूरे घटनाक्रम का कूटनीतिक लाभ उठा रहा है। उसके राजनयिक अन्य देशों को समझा रहे हैं कि राफेल खरीदने से बेहतर चीनी लड़ाकू विमान खरीदना होगा। डसॉल्ट को मिस्र, कतर, इंडोनेशिया और यूएई जैसे देशों को आश्वस्त करना पड़ रहा है। लेकिन कंपनी भारत को नाराज़ करने से भी डर रही है—और स्पष्ट बयान देने से बच रही है। 11 जून को डसॉल्ट के चेयरमैन एरिक ट्रैपियर ने फ्रांसीसी पत्रिका को दिए इंटरव्यू में कहा कि ‘पाकिस्तान का दावा झूठा है, और पूरी सच्चाई सामने आने पर दुनिया हैरान हो सकती है’।… इसी दौरान फ्रांसीसी सांसद मार्क चावेंट ने भी अपनी सरकार से सवाल पूछे हैं कि क्या भारत के राफेल विमानों में लगे Spectra इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम पाकिस्तानी PL-15 मिसाइलों को न तो पहचान सके और न ही ब्लॉक कर सके”?…
‘द इकॉनोमिस्ट’ की रिपोर्ट लंबी है। और मैं असल संकट यह मानता हूं कि सरकार की लीपापोती और सत्य नहीं बताने से भारतीय सेना की क्षमता पर वैश्विक सवाल है। ऐसे में अनुमान लगाए कि इससे पाकिस्तान और चीन की सेना या उसके प्रमुख चौड़ेधाड़े कैसे फूले हुए होंगे? जबकि भारत की सेना और सेनाधिकारी जाबांज हौसले से ऑपरेशन में थे। उसे नुकसान हुआ तो जैसा कि कैप्टन शिव कुमार के कहे का भाव है कि यह विफलता केवल इसलिए हुई क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व ने सैन्य ताक़त के उपयोग को रोक दिया। स्वाभाविक है दोष सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आता है। मतलब प्रधानमंत्री मोदी ने ही उसी ‘नियंत्रित प्रतिक्रिया’ में सेना को आदेश दिया था जो पिछले ऑपरेशन की रणनीति थी। लेकिन इस बार पाकिस्तान तैयारी में था। पाकिस्तान की बदली हुई क्षमताओं (चीन के हथियार, बैकअप) को शायद नजरअंदाज किया गया।
तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसद में दो टूक जो सत्य है उसे बताने का साहस करना चाहिए। ताकि देश-दुनिया में यह विश्वास बना रहे कि राजनीतिक नेतृत्व के कारण रणनीतिक गड़बड़ हुई। और भारतीय सेना को यदि पूरी छूट मिले, वह अपने विवेक से रणनीति व ऑपरेशन बनाए तो पाकिस्तान और चीन के साझे के बावजूद वह अपनी आक्रामकता और सुरक्षा में कमजोर नहीं है।
क्या प्रधानमंत्री मोदी जिम्मेवारी लेंगे? सत्य बताने का साहस करेंगे? या दुनिया में भारत की इमेज, भारतीय सेना के बाहुबल को ले कर वही सोचा, लिखा जाता रहेगा जो दस मई के बाद से लगातार लिखा जा रहा है? ताजा खुलासा ‘द इकॉनोमिस्ट’ में है।