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01-07-2025 Vol 19

भारत हो रहा हलाल!

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क्या होता है एक राष्ट्र का हलाल होना? अर्थ है सैनिक ताकत, वैश्विक कूटनीतिक सम्मान, हैसियत तथा आर्थिक स्वावलंबन में कमर तोड़ कर देश को आश्रित और बेचारा बना देना! और भारत ऐसा होता हुआ है। वजह समय की लीला है। क्या पता था डोनाल्ड ट्रंप ऐसे टेंटुआ दबाएंगे? क्या पता था कि दुनिया के आगे व्हाइट हाउस में जेलेंस्की से अपमानित होने के बाद वे अपनी कुंठा में भारत-पाकिस्तान में सीजफायर कराने के लिए कूद पड़ेंगे?

क्या पता था कि कतर, सऊदी अरब, ईरान, दुबई आदि के शेखों से मोदी के गले लगने के बावजूद सभी मुस्लिम देश मन ही मन अपनी जमात की शान इस्लामी एटमी ताकत पाकिस्तान की इज्जत धूल में नहीं मिलने देंगे? उसके लिए खडे होंगे और पैसे के भूखे, सौदेबाज ट्रंप को चुटकियों में भारत को दबाने के लिए राजी कर लेंगे?

ट्रंप ने निश्चित ही मौके का फायदा उठाया। रूस-यूक्रेन युद्ध में सीजफायर करवाने में नाकाम ट्रंप ने हमारे बेचारे (या भोले भंडारी) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आदेश दिया और चुटकियों में सीजफायर हुआ। मोदी, डोवाल, जयशंकर किंतु-परंतु कुछ नहीं कर सकते थे। याद रखें पन्नू मामला और उसमें अपनी रॉ और अजित डोवाल से ले कर अडानी ग्रुप के मामले हाशिए में ही सही, अमेरिकी अदालतों में मौजूद हैं!

इसलिए गौर करें डोनाल्ड ट्रंप, कतर और अऱब देशों के शेखों, तुर्की, चीन व रूस सभी के पीछे खड़े होने से पाकिस्तान अब ठाने हुए है कि ज्योंहि भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों की आमने-सामने बात हुई तो वह कश्मीर से ले कर सिंधु जल संधि पर दो टूक बात करेगा। स्वाभाविक है भारत नहीं मानेगा। ऐंठ दिखाएगा। तब अमेरिका फिर पंच बनेगा।

सीधी मध्यस्थता पर उतरेगा। लाख टके का सवाल है क्या मोदी सरकार तब दो टूक कह सकेगी, हमें बात नहीं करनी है? हम सिंधु नदी संधि के फैसले को तब तक नहीं बदलेंगे जब तक पाकिस्तान वादा नहीं करता कि वह कश्मीर, आतंकवाद और आतंकियों की वारदातों में रूख बदलने की गांरटी नहीं देता? या पीओके हमें नहीं दे देता?

क्या भारत ट्रंप के दबाव में झुक रहा है

दिक्कत यह है कि ट्रंप तो दोनों देशों को डिनर करवाने से लेकर ‘हजार साल पुरानी’ कश्मीर समस्या के सुलझाने की बातें दुनिया से इस अंदाज में कह रहे हैं मानों दोनों देश उनके चेले हों।

इस तरह की धारणा पाकिस्तान के लिए बनना नुकसानदायी नहीं है। इसलिए क्योंकि पाकिस्तान को अब हर तरफ भाव मिलता हुआ है। जबकि पहले ट्रंप और अमेरिका ने पाकिस्तान को भुला रखा था। वह फिर वहां तथा पूरी दुनिया में महाशक्ति के रूप में महत्व पाए हुए है। उधर तमाम मुस्लिम देश तुर्की, ईरान से ले कर खाड़ी, अरब देश उसकी कूटनीतिक, आर्थिक मदद करते हुए हैं।

ऐसे में यदि वह चीन की सरपरस्ती के साथ डोनाल्ड ट्रंप का आज्ञाकारी बना रहे तो उससे उसका क्या बिगड़ेगा? मामूली बात नहीं जो पाकिस्तान व बांग्लादेश दोनों को आईएमएफ कर्ज देते हुए है।

उधर यह भी ध्यान रहे कि सात से 10 मई के बीच रूस ने भारत की पहले जैसी दो टूक तरफदारी नहीं की है। मेरा मानना है ऐसा उसने चीन के दबाव में किया। चीन खुद खुले रूप से पाकिस्तान का हौसला बढ़ा रहा है। इतना ही नहीं इस दौरान चीन के ‘ग्लोबल टाइम्स’ ने चीन द्वारा अरूणाचल प्रदेश में 27 जगहों के नाम बदलने की खबर दी।

इन स्थानों में पांच कस्बे, 15 पहाड़ियां, चार दर्रे, दो नदियां और एक झील है। चीन ने हथियार, कूटनीति से लेकर तेवर सबसे जताया है कि वह पाकिस्तान के साथ दमदारी से खड़ा है।

सो, पूरा वाकिया भारत को अकेला और बेचारा बना बैठा है। मेरा मानना है सीजफायर के साथ दोनों पक्षों की किसी तीसरी जगह (कोई आश्चर्य नहीं होगा ट्रंप किसी खाडी देश में मीटिंग रखवाएं) बात होगी तो उससे पहले अमेरिका के साथ भारत का व्यापार समझैता होगा। वह निश्चित ही ट्रंप की शर्तों पर होगा।

यदि ट्रंप का यह कहा सही है कि भारत जीरो प्रतिशत टैरिफ के लिए भी तैयार है तो भारत दस प्रतिशत के बेसलाइन टैरिफ पर अमेरिकी सामान को खरीदने की सहमति मजे से देगा, भले अमेरिका भारत से आयात पर ज्यादा टैरिफ रेट लगाए।

वह भारत का आर्थिक तौर पर हलाल होना होगा। इसलिए भी कि यदि अमेरिका से दस प्रतिशत की टैरिफ रेट पर भारत सामान खरीदने को तैयार है तो यूरोपीय संघ के साथ हो रही व्यापार बातचीत में भी भारत को उन्हीं दरों की सहमति देनी होगी। तब यह भी संभव नहीं है कि भारत आसियान देशों, वियतनाम, खाड़ी देशों से भी अमेरिकी दरों से ज्यादा ऊंची रेट रख कर व्यापार समझौता करे।

ऊपर से चीन का भारत के बाजार में पहले से ही कब्जा है। वह भी और सस्ती रेट पर भारत को सामान बेचेगा। इस बात को भी न भूलें कि ट्रंप एपल को हड़का रहे हैं कि भारत में बंद करो कारखाना। ऐसा हुआ तो सभी बंद कर देंगे भारत में कारखाना लगाना।

तो याद करें (मैं पहले भी चीन की सोच के संदर्भ में लिख चुका हूं) चीन के माओ ने अमेरिकी विदेश मंत्री किसिंजर को क्या समझाया था? छोड़ो भारत को! वह तो एक गाय है, बैलगाड़ी भर जितनी उपयोगी!

एक और संभावना। ट्रंप नया मारक बिल ला रहे हैं, जिससे सर्वाधिक प्रभावित प्रवासी भारतीय होंगे। इससे अमेरिका में रहने वाले भारतीय नागरिकों को अपने घर-परिवार को भारत पैसा भेजना महंगा पड़ेगा, क्‍योंकि उन्‍हें अब इस पर टैक्‍स चुकाना होगा। पांच प्रतिशत टैक्स वसूली होगी।

चूंकि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा रेमिटेंस प्राप्त करने वाला देश है और उसे हर साल कोई अमेरिका से 30 अरब डॉलर से ज्यादा रेमिटेंस आता है तो नए नियम में एनआरआई को एक लाख डॉलर भेजने पर 5,000 डॉलर आईआरएस को आगे टैक्‍स के तौर पर देने होंगे। यानी डेढ़ अरब डॉलर से ज्यादा करीब 15 हजार करोड़ रुपए टैक्स देने होंगे।

सोचें, भारत ट्रंप और वैश्विक ताकतों के कसाईखाने में कैसी लाचारगी की दशा में पहुंचा हुआ है?

और सोचें यह भी कि क्या मैं गलत हूं? क्या इस तरह फंस जाने पर कहीं विचार हुआ होगा?

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Pic Credit: ANI

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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