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सरकार से सवाल, मतलब साजिश!

यह भारत का इतिहास है। केवल नरेंद्र मोदी ही जिम्मेदार नहीं हैं। आखिर इंदिरा गांधी के जमाने में दुष्यंत कुमार ने लिखा था, ‘मत कहो आकाश में कुहरा घना है, यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है’। तब भी घने कोहरे की शिकायत को किसी की व्यक्तिगत आलोचना मान लिया जाता था। अब तो सच में ऐसी घटनाएं हो रही हैं कि  ज्यादा गर्मी पड़ने की शिकायत करें तो भक्त मंडली लड़ने आ जाती है कि क्या पहले गर्मी नहीं पड़ती थी! तो यह भारत का इतिहास है कि अगर नागरिक ने अपनी पीड़ा व्यक्त की, अपनी तकलीफें बताई तो उसे साजिश मान लिया जाएगा। फर्क इतना है कि पहले की तुलना में अब यह रोजमर्रा का हिस्सा है। पहले कभी कभी ऐसा होता था और अब रोज की कहानी है। अब हर दिन नैरेटिव सेट करने का प्रयास है और जरा भी कहीं उस नैरेटिव से विचलन दिखे तो साजिश का आरोप लगाना और देश विरोधी टूलकिट खोज कर लाना है।

नागरिकों के गुस्से का सामान्य प्रकटीकरण और विपक्ष का सामान्य मुद्दों पर सवाल उठाना भी अब विदेशी साजिश के तौर पर ब्रांड किया जाने लगा है। ताजा मिसाल राहुल गांधी की वोट चोरी के आरोप हैं। भाजपा के प्रवक्ता और उसके इकोसिस्टम ने आरोप लगाया है कि राहुल गांधी जिस समय कर्नाटक की महादेवपुरा सीट पर एक लाख वोट चोरी का प्रजेंटेशन दे रहे थे तब उनके कंप्यूटर पर डाटा म्यांमार से अपलोड हो रहा था। यह आरोप इसलिए है क्योंकि उस समय सिस्टम म्यांमार का टाइमजोन दिखा रहा था। सोचें, साजिश की सोच कहां तक पहुंची है?

किसी ने इतना दिमाग लगाना भी जरूरी नहीं समझा कि अगर संबंधित कंप्यूटर के टाइम जोन को बदला नहीं गया है तो बाई डिफॉल्ट उसमें जो भी टाइम जोन सेट होगा वह दिखाई देगा। लेकिन राहुल ने जिस सिस्टम से प्रजेंटेशन दिया उसमें टाइम जोन म्यांमार का दिख रहा था तो यह बड़ी साजिश की बात हो गई। क्या इससे यह आरोप गलत साबित हो गया कि महादेवपुरा में मतदाता सूची बनाने में गड़बड़ी हुई है? उस टाइम जोन की बेशक सरकार जांच कराए लेकिन उससे पहले मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोपों की तो जांच हो? लेकिन सत्ता के नैरेटिव में ऐसे तार्किक ढंग से कोई बात नहीं सोची जाती है।

तभी किसान आंदोलन हुआ तो किसानों को गद्दार घोषित कर दिया गया। उनको खालिस्तानियों के साथ जोड़ा गया। आतंकवादी कहा गया। ग्रेटा थनबर्ग और रिहाना को विदेशी टूलकिट कहा गया। 20 साल की युवा दिशा रवि को विदेशी साजिश का टूलकिट करार दिया। इतना सब कुछ करने के एक साल बाद सरकार ने अपने बनाए तीनों कानूनों को वापस लिया। एक बार भी सरकार ने अपने बनाए कृषि कानूनों के गुणदोष पर बात नहीं की। यह नहीं  सोचा कि जो कानून सरकार ला रही है उसकी जरुरत किसानों को है या नहीं?

देश के क्रोनी पूंजीवादियों को हो सकता है कि वैसे किसी कानून की जरुरत हो, जिससे वे कृषि उत्पादों के बाजार को कंट्रोल कर सकें लेकिन अंततः यह मामला तो किसानों का था। लेकिन किसानों की जरुरत समझने और उनको समझाने की बजाय सरकार ने उनके लोकतांत्रिक आंदोलन को साजिश साबित करने के सभी उपाय किए। कोई उपाय काम नहीं आया और इस बीच उत्तर प्रदेश का चुनाव नजदीक आ गया तो प्रधानमंत्री ने टेलीविजन पर आकर राष्ट्र को संबोधित किया और तीनों कानून वापस लिए।

उससे पहले नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के खिलाफ आंदोलन हुआ तो वह भी बड़ी साजिश का हिस्सा था। अब मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर का विरोध हो रहा है तो यह भी साजिश है। चुनाव आयोग पर सवाल उठाना साजिश का हिस्सा है। यह प्रचारित किया जा रहा है कि भारत बहुत तेजी से तरक्की कर रहा है इसलिए दुनिया के महाशक्ति देश भारत से जल रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दुनिया के सबसे लोकप्रिय और ताकतवर नेता बन गए हैं इसलिए महाशक्ति देश उनको कमजोर करने के लिए भारत के खिलाफ साजिश कर रहे हैं। लाखों, करोड़ों लोग इस प्रचार पर यकीन कर रहे हैं। उनको लग रहा है कि सचमुच भारत के खिलाफ साजिश हो रही है।

कई बार उनको यह समझाया जाता है कि इस साजिश में देश की विपक्षी पार्टियों के साथ साथ देश का मीडिया और न्यायपालिका भी शामिल है। सब मिल कर भारत को गिराना चाहते हैं लेकिन अकेले मोदी ने सब कुछ थाम रखा है। बार बार मोदी खुद भी कहते हैं कि उनके ऊपर कितने  हमले हो रहे हैं, कितनी गालियां दी जा रही हैं, निजी तौर पर नुकसान पहुंचाने की कोशिश हो रही है लेकिन वे देश पर आंच नहीं आने देंगे। देश की बड़ी आबादी इस नैरेटिव की गिरफ्त में है। वह देश के नाम पर अपने कष्टों से समझौता करने और दूसरे के गुस्से के प्रकटीकरण को साजिश मानने के लिए तैयार बैठा है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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