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भारत है तो मुमकिन है!

हे राम! बिना ईंधन स्विच चालू किए ही पायलट ने विमान उड़ा दिया! दुनिया में कभी पहले ऐसा हुआ, यह मैंने नहीं सुना! और वह भी यात्री विमान, जिसमें 260 लोग थे! पायलट ने विमान दौड़ाने के कुछ क्षणों (सेकंड) में ही दूसरे पायलट से पूछा— क्या तुमने फ्यूल स्विच बंद किया है? जवाब था— नहीं तो। और उड़ान 32 सेकंड में क्रैश! यह सत्य कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर से उद्घाटित है! तभी दुनिया में हैरानी है कि इस तरह एयर इंडिया का विमान क्रैश हुआ!

भला कैसे विमान उड़ाने वाले दो मानव पायलट ऐसे बेसुध हो सकते हैं जो आंखों के सामने लगा फ्यूल स्विच भी ऑन न करें और विमान को रनवे पर दौड़ा दें! क्या दोनों पायलटों को भूलने की बीमारी थी? क्या उनके प्रशिक्षण और अनुभव में कमी थी? क्या उन्होंने शराब पी हुई थी या आत्महंता मूड में थे? या यह जुगाड़ सोचा कि उड़ जाएंगे, तब ईंधन का स्विच ऑन करेंगे? अर्थात टेकऑफ लायक ईंधन तो होगा ही!

ईश्वर जाने क्या हुआ लेकिन भारत में ऐसे भी मुमकिन का सत्य दुनिया के आगे मानों बिजली कड़की!

आश्चर्य नहीं जो भारत की एयरलाइन पायलट्स एसोसिएशन मैदान में उतर आई है! उसके अनुसार मानवीय भूल संभव ही नहीं है— तकनीकी खामी थी। सवाल है, टेकऑफ का बटन दबाने से पहले यदि ईंधन का बटन ऑफ (या तकनीकी गड़बड़) था तो पायलट क्या विमान को खड़ा नहीं रहने देते?

सो, मानवीय भूल और तकनीकी खामी को लेकर बहस भारत में तो होगी, मगर दुनिया में नहीं चलेगी। अमेरिकी अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ ने एक विशेषज्ञ के हवाले से दो टूक कहा है कि रिपोर्ट में शामिल सभी बिंदु यह दर्शाते हैं कि विमान में कोई तकनीकी खामी नहीं थी, बल्कि पायलट की चूक थी।

तभी सवाल है: दुनिया के विशेषज्ञ भारतीय पायलटों, जानकारों, भारतीय मीडिया की तरह क्यों नहीं मशीन पर ठीकरा फोड़ रहे हैं, जबकि बोइंग कंपनी को लेकर खुद अमेरिका में पक्ष-विपक्ष है? इसलिए क्योंकि दुनिया जानती है— भारत है तो सब मुमकिन है।

भारत की कार्य संस्कृति में भूलने, छुपाने और दूसरों को जवाबदेह ठहराने की प्रवृत्ति 1947 से है।

फिर चाहे मामला देश को उड़ाने, देश के टेकऑफ का हो या व्यवस्था, मशीनरी के रख रखाव के तकनीकी काम हों या नागरिकों की सवारी उड़ाने के मानवीय नेतृत्व (ड्राइविंग, पायलट, अफसर-नेता) के कौशल और बुद्धि का मामला हो। तभी तो भारत के अस्सी साल दुर्घटनाओं, उन्हें छुपाने, दबाने, भूलने और दूसरों पर ठीकरा फोड़ने के हैं।

ज़रा ताज़ा समय, मई-जून-जुलाई 2025 की भारत घटनाओं पर गौर करें! शायद उम्र के उत्तरार्ध के कारण ऐसा है कि दो-तीन दिन पहले मैं जगुआर फाइटर जेट क्रैश में मृत स्क्वाड्रन लीडर लोकेन्द्र सिंह सिंधु के अंतिम संस्कार में एक महीने के बच्चे को लिए उनकी पत्नी का चेहरा देखकर द्रवित हुआ। तब मेरे दिल-दिमाग में एक तरफ भारत की सुरक्षा के अहंकारी गुमान में नेतृत्व करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल का चेहरा था, वहीं दूसरी ओर भारतीय सेना की बेचारगी पर सोचते हुए मन था।

आपको पता है— इस साल तीन जगुआर विमान क्रैश हुए हैं। और ये सैन्य दुर्घटनाएं नहीं हैं, बल्कि भारत की लापरवाहियों, उत्तरदायित्वहीनता, दबाने, छुपाने, डराने और जुगाड़ की त्रासदियां हैं। चाहे जगुआर क्रैश हो या एयर इंडिया त्रासदी या नौ जून को मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन के करीब सुबह चलती लोकल ट्रेनों पर लटके यात्रियों के गिरने से मौत और घायल होने की विचित्र घटना (विपरीत दिशा में ट्रेनों के नजदीक से गुजरने के समय यात्रियों के बैग टकराने से) हो, सभी निष्कर्ष एक ही है।

और वह यह कि भारत की व्यवस्था और उसके मालिकों का हार्डवेयर हो या सॉफ्टवेयर, मानवीय क्षमता हो या तकनीकी क्षमता— सबमें हम रामभरोसे हैं।

सो, दोषी पायलट नहीं हैं, वायु सेना नहीं है, रेल प्रबंधन नहीं है, बाढ़ प्रबंधन नहीं है, बल्कि हम हिंदू हैं— हम हिंदुओं के भगवान (जैविक-अजैविक दोनों तरह के) हैं। यह मानसिकता है कि लोग  मर गए तो मर गए, क्या हुआ? दुर्घटना हो गई तो हो गई, क्या हुआ? हम दोषी नहीं हैं। मशीन दोषी है या फलां साज़िश है या दुर्घटना ही नहीं है और हम तो असल में विजयी हैं! जो हुआ वह नियति थी! जो मर गए वे पुण्य, मोक्ष को प्राप्त होंगे।

हां, ऐसी बेहूदगी भी स्क्वाड्रन लीडर लोकेन्द्र सिंह सिंधु की अंत्येष्टि के दिन सुनने को मिली। उसी दिन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने चुनौती दी कि क्या किसी के पास है कोई तस्वीर जो दिखाए कि ऑपरेशन सिंदूर में भारत को नुकसान हुआ था!

उफ! और यह है स्वतंत्र भारत का स्थायी सत्व-तत्त्व— कि भारत में ही मुमकिन है जो 1962 में चीन ने अक्साई चिन हड़प लिया और नेहरू और उनके रक्षा मंत्री ने कहा— “हमने हार कर गंवाया क्या? वहां तो घास भी नहीं उगती!”

और इस मई-जून-जुलाई में भारत ने बार-बार मोदी, डोवाल की ज़ुबानी सुना है कि— हमने ऑपरेशन सिंदूर में गंवाया कुछ नहीं, बल्कि इसलिए जीते क्योंकि 22 या 30 सेकेंड में हमने अचूक निशाना साधकर पाकिस्तान के भीतर मिसाइल दागी।

तब भला डोनाल्ड ट्रंप ने पाकिस्तान के जनरल मुनीर को बुलाकर लंच क्यों कराया? चीन की लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनी के शेयर क्यों उछले— जिसके जे-10सी लड़ाकू विमानों ने 22 मिनट के ऑपरेशन सिंदूर में भारत के लड़ाकू विमान गिराए? और सिंगापुर में चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने पत्रकार के आगे यह क्यों माना कि ऑपरेशन सिंदूर के पहले दिन नुकसान हुआ था। कितना नुकसान हुआ यह अहम नहीं है, क्यों नुकसान हुआ यह बड़ा सवाल है। और उसके कारण फिर भारत ने अपनी रणनीति पर सोच-विचार किया और नौ व 10 मई की रात को बड़ी कार्रवाई की। सीडीएस की बात की पुष्टि फिर जकार्ता में भारत के डिफेंस अटैची कैप्टन शिवकुमार ने भी की है।

जबकि अजीत डोविल के बोल हैं, चुनौती है— कोई बताए भारत के नुकसान की तस्वीर!

ध्यान रहे— दुनिया भर के सामरिक विशेषज्ञों, वैश्विक रिपोर्टों, विश्व राजधानियों में यह विचार नहीं है कि भारत को कितना नुकसान हुआ, बल्कि यह चिंता है कि पाकिस्तान के कंधे पर अपने लड़ाकू विमान और उनमें मिसाइलें भरकर भारत के खिलाफ जो उन्नत तकनीक, हथियारों का प्रदर्शन हुआ है वह तो अमेरिका के लिए भी खतरे की घंटी है। चीन निर्मित हथियारों की ऐसी धमक बनी है कि सामरिक जानकार मान रहे हैं— यह अमेरिका (जो अभी नंबर एक शस्त्र निर्यातक है) के लिए खतरे की घंटी है। अब अमेरिका, फ्रांस, रूस से नहीं, बल्कि चीन (जो अभी चौथे नंबर पर है) से दुनिया के देश सस्ते मगर अचूक, उन्नत लड़ाकू विमान, मिसाइलें, रडार और वायु-रक्षा प्रणालियां खरीदेंगे।

ध्यान रहे जिस दिन चीन निर्मित जे-10सी लड़ाकू विमानों द्वारा भारत के विमान गिराए जाने की खबर फैली, उस दिन चीन की विमान निर्माता कंपनी एवीआईसी चेंगदू एयरक्राफ्ट के शेयर तेजी से बढ़े थे। चीन निर्मित जे-10सी एक एकल-इंजन वाला बहुउद्देश्यीय जे-10 लड़ाकू विमान है और इसे बेहतर हथियार प्रणालियों और एवियोनिक्स से लैस 4.5 पीढ़ी का लड़ाकू विमान माना जाता है— राफेल जैसा। इसमें चीन की सबसे आधुनिक पीएल-15 हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें लगी थीं— जिनकी दृश्य-क्षमता से परे मारक सीमा लगभग 200–300 किलोमीटर है। पाकिस्तान को यह विमान 2022 से मिलना शुरू हो गया था।

तभी ऑपरेशन सिंदूर के दिन वैश्विक मीडिया ने फ्रांसीसी रक्षा मंत्रालय के एक सूत्र के हवाले से राफेल के नष्ट होने की खबर छापी, तो दुनिया के कान खड़े हुए। वैश्विक सामरिक विशेषज्ञ जहां चीनी विमान-मिसाइल व्यवस्था की क्षमता आदि की चर्चा करते हुए थे, वहीं चीन के सोशल मीडिया पर चीनी हथियार प्रणालियों की जीत का जश्न था। और ध्यान रहे— चीन अब इससे भी उन्नत जे-10सीई, जेएफ-17 ब्लॉक III में एईएसए (Active Electronically Scanned Array) रडार जैसी तकनीकों से लैस है।

वही भारत की क्या क्षमता है? यह एक कटु तथ्य कि चार महीनों में तीन जगुआर विमान अभ्यास के दौरान क्रैश होना। संसद की स्थायी रक्षा समिति की रिपोर्ट में 2017–2022 की अवधि के दौरान भारतीय वायु सेना में कुल 34 विमान हादसों का उल्लेख है। वजह वही— जो भारत का स्थायी सत्य है: मानव त्रुटियां और तकनीकी खराबियां और दूरदृष्टि, बुद्धि-संकल्प का टोटा।

भारत दुनिया का एकमात्र देश है जो छह स्क्वाड्रनों के साथ Anglo-French twin-engine Jaguar वेरिएंट्स का अभी भी उपयोग कर रहा है, जबकि ब्रिटेन, फ्रांस, ओमान, और नाइजीरिया जैसे देश इन्हें पहले ही रिटायर कर चुके हैं। यह विमान 1960 के दशक में विकसित हुआ और 1970 में भारत ने खरीदा। फिर हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स में इसका स्वदेशी निर्माण शुरू हुआ। भारत के पास क्योंकि अपनी कोई आधुनिक घरेलू तकनीक नहीं है, इसलिए हम मजबूर हैं गुज़रे जमाने के Jaguar, MiG-29, Su-30 से रक्षा का जुगाड़ बनाए हुए हैं।

मोदी सरकार ने फ्रांस से कुछ राफेल ज़रूर खरीदे, पर न तो उसका स्वदेशी निर्माण है, और न तेजस Mk2, राफेल और अन्य मल्टी-रोल फाइटर एयरक्राफ्ट के लिए इंजन या नई खेप ख़रीदने की प्रक्रिया स्पष्ट है। यह सब बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की तरह घसीट रहा है।

और मान लें कि जापान हमारे लिए बुलेट ट्रेन बना दे, राफेल और उससे भी उन्नत लड़ाकू विमानों की नई खेप भी आ जाए— तो क्या गारंटी है कि फिर से ऑपरेशन सिंदूर नहीं होगा? वॉशिंगटन स्थित फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज़के विश्लेषक सिंगलटन ने लिखा है, राफेल आधुनिक विमान हैं, लेकिन युद्ध केवल हाई-प्रोफाइल खरीद का खेल नहीं है, बल्कि यह समन्वय, एकीकरण और जीवित रहने की रणनीति का मामला है। भारत की ग़लतियों ने ही पाकिस्तानी हथियारों को प्रभावी बनाया है।

सोचिए— भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों से लड़ना है (यह अनिवार्य है)। और हमारी तैयारी क्या है? इस बात को पूरी दुनिया ने जान लिया है। और जनाब अजित डोवाल यह भी भारत का वह नुकसान है जो तस्वीर में नहीं विश्व महाशक्तियों के दिमाग में पैठा है। चीन ने तो खैर एक झटके में 22 मिनट के ऑपरेशन सिंदूर से समझ लिया था।

बावजूद इसके भारत के लोगों से छुपाया जा रहा है, झूठ बोला जा रहा है और चुनौती दी जा रही है कि कोई दिखाए भारत के नुकसान की फोटो! हमने पाकिस्तान के भीतर अचूक निशाना साधा! पर क्या कोई फोटो है पहलगाम के किसी आतंकी या पुलवामा के किसी आतंकी के अचूक निशाने में मारे जाने का?

सबसे बड़ी बात कि ऐसा कैसा भारत ने बदला लिया पाकिस्तान में जनरल मुनीर का नसीब खुल गया। वह फील्ड मार्शल बना, अमेरिका की सैनिक परेड में मेहमान और ट्रंप के साथ अकेले राजकीय भोज भी। इसलिए मेरा कहना है भारत है, ऊपर से मोदी राज है तो सब मुमकिन है।

क्या मैं ग़लत हूं?

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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