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15-07-2025 Vol 19

कांग्रेस को लालू से क्या एलर्जी हो गई?

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यह सवाल अपनी जगह है कि कांग्रेस पार्टी बिहार में क्या करना चाहती है? क्योंकि इस साल के अंत में वहां चुनाव हैं और उससे छह महीने पहले प्रदेश अध्यक्ष बदल कर कांग्रेस ने अलग राजनीति शुरू की है। लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि अचानक कांग्रेस को लालू प्रसाद से क्या एलर्जी हो गई? क्या कांग्रेस रणनीति के तहत या दबाव बनाने की योजना के तहत लालू प्रसाद से दूरी बना रही है और उनकी अनदेखी कर रही है? ऐसा होना अस्वाभाविक नहीं है क्योंकि चुनाव से पहले सारी पार्टियां दबाव की राजनीति करती हैं।

लेकिन क्या दबाव की राजनीति में कोई पार्टी अपने सहयोगी के साथ वैसा बरताव कर सकती है, जैसा कांग्रेस अभी राजद और लालू प्रसाद के साथ कर रही है? कहीं ऐसा नहीं हो कि दबाव की राजनीति करके करते कांग्रेस इतनी दूर निकल जाए कि वापसी का रास्ता ही भूल जाए या वापसी हो तो उसका राजनीतिक लाभ नहीं मिले।

राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद चार दिन से दिल्ली एम्स में भर्ती हैं। उससे पहले पटना में उनकी तबियत खराब हुई तो उसकी भी बड़ी चर्चा हुई। वे पटना के एक अस्पताल में भर्ती हुए और फिर वहां से एयर एंबुलेस के जरिए दिल्ली लाए गए। लेकिन न तो पटना में कांग्रेस का कोई नेता लालू प्रसाद का हालचाल जानने पहुंचा और न दिल्ली आकर एम्स में भर्ती होने के बाद किसी ने उनका हालचाल लिया। करीब दो महीने पहले फरवरी के मध्य में कांग्रेस ने कर्नाटक के रहने वाले कृष्णा अलवरू को बिहार का प्रभारी बनाया था।

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लालू से दूरी पर कांग्रेस की रणनीति पर सवाल

मोहन प्रकाश की जगह उनको जिम्मेदारी दी गई लेकिन अभी तक उन्होंने लालू प्रसाद से मुलाकात नहीं की है। पिछले महीने कांग्रेस ने अखिलेश प्रसाद सिंह को हटा कर राजेश राम को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया। लेकिन वे भी लालू प्रसाद से मिलने नहीं गए हैं। सोचें, प्रभारी और प्रदेश अध्यक्ष दोनों की न तो लालू प्रसाद से मुलाकात हुई है और न तेजस्वी यादव से।

इतना जरूर है कि बिहार को लेकर राहुल गांधी ने दिल्ली में एक बैठक की तो उसमें उन्होंने कहा कि कांग्रेस गठबंधन में ही चुनाव लड़ेगी यानी राजद के साथ ही लड़ेगी। सवाल है कि जब राजद के साथ ही लड़ना है फिर यह किस बात का दिखावा हो रहा है? सद्भाव दिखाने की बजाय लालू प्रसाद के प्रति एलर्जी दिखाने का क्या मतलब है? सबको पता है कि कृष्णा अलवरू की कोई हैसियत नहीं है। उन्होंने कभी जमीनी राजनीति नहीं की है और न बिहार या कहीं और की राजनीति के बारे में ज्यादा जानते हैं। उनकी काबिलियत यह है कि वे राहुल गांधी को जानते हैं। तभी यह भी सबको पता है कि जो एलर्जी दिखाई जा रही है वह कृष्णा अलवरू या राजेश राम नहीं दिखा रहे हैं, बल्कि राहुल गांधी दिखा रहे हैं।

सोचें, कुछ दिन पहले लालू प्रसाद के घर जाकर राहुल गांधी मटन पकाना सीख रहे थे। इसी साल जनवरी में पटना गए तो लालू प्रसाद से मिलने उनके घर गए थे। अब अचानक लालू प्रसाद से दूरी दिखाई जाने लगी। इसका फायदा कुछ नहीं होगा लेकिन नुकसान यह हो सकता है कि तालमेल के बावजूद बिहार के यादव मतदाता विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों को हरवा दें।

एक तरफ एनडीए के नेताओं की जिलों में समन्वय बैठकें हो रही हैं और दूसरी ओर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की यह राजनीति है कि लालू प्रसाद को अपमानित किया जाए। इससे न तो ज्यादा सीटें मिलने वाली हैं और चुनाव में कुछ फायदा होने वाला है। अकेले लड़ने के बारे में तो कांग्रेस सोच भी नही सकती है।

Pic credit : ANI

NI Political Desk

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