भारत में उप राष्ट्रपति के इस्तीफे की मिसाल नहीं रही है। दो उप राष्ट्रपतियों वीवी गिरी और आर वेंकटरमन ने इस्तीफा दिया था लेकिन दोनों का इस्तीफा राष्ट्रपति बनने के लिए हुआ था। स्वास्थ्य कारणों से या किसी अन्य कारण से इस्तीफा देने वाले पहले उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ हैं। उनका इस्तीफा मंजूर होने के बाद नए उप राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होगी। दिलचस्प बात यह है कि संविधान में उप राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। जैसे सांसदों और विधायकों को लेकर यह सीमा है कि सामान्य स्थिति में छह महीने के अंदर चुनाव होना चाहिए वैसी कोई बाध्यता उप राष्ट्रपति पद को लेकर नहीं है।
इसका कारण यह है कि उप राष्ट्रपति के नहीं होने पर राज्यसभा का उप सभापति ही सभापति के तौर पर काम करता है। हालांकि उसको उप राष्ट्रपति वाली जिम्मेदारी नहीं मिलती है। राष्ट्रपति के नहीं होने पर उनकी कार्यवाहक भूमिका उप राष्ट्रपति को मिल जाती है और राष्ट्रपति व उप राष्ट्रपति दोनों के पद खाली होने पर चीफ जस्टिस को यह जिम्मेदारी मिलती है। बहरहाल, उप राष्ट्रपति के चुनाव के लिए समय सीमा निर्धारित नहीं होने का फायदा उठा कर क्या सरकार इस चुनाव को भी वैसे ही टाल सकती है, जैसे लोकसभा के उपाध्यक्ष का चुनाव छह साल से टाला हुआ है? उप राष्ट्रपति के मामले में शायद ऐसा नहीं हो। लेकिन जब तक चुनाव की घोषणा नहीं हो जाती है तब तक मामले में सस्पेंस बना रहेगा। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि अगर भाजपा के शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नए उप राष्ट्रपति का नाम तय कर रखा होगा तो चुनाव की घोषणा जल्दी हो सकती है। संसद के मानसून सत्र में ही नए उप राष्ट्रपति के चुनाव का ऐलान हो सकता है।