लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी वक्फ बिल के मुद्दे पर नहीं बोल रहे हैं। उनके कुछ बयान आए भी हैं तो औपचारिकता की तरह हैं। उन्होंने आरएसएस के मुखपत्र ‘ऑर्गेनाइजर’ के लेख के बहाने एक बात कही लेकिन उसका फोकस यह था कि अब संघ और भाजपा की नजर ईसाई संस्थाओं की जमीनों और संपत्तियों पर है। वक्फ बिल पास होने के बाद राहुल गांधी बिहार गए, जहां उनकी सहय़ोगी पार्टी राजद वक्फ के मसले पर नीतीश कुमार और चिराग पासवान को एक्सपोज करने में लगी है लेकिन राहुल गांधी ने इस मामले में कुछ नहीं कहा। ध्यान रहे बिहार में छह महीने में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं लेकिन राहुल ने अभी के सबसे बड़े राजनीतिक मुद्दे पर कुछ नहीं कहा। उनकी बहन और केरल की वायनाड सीट से सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा तो वक्फ बिल पर चर्चा के दौरान देश से ही बाहर रहीं।
राहुल गांधी बुधवार, एक अप्रैल को आधी रात के बाद बिल पर वोट डालने संसद पहुंचे थे लेकिन 12 घंटे से ज्यादा समय की बहस के दौरान बोले नहीं। विपक्ष के पास पांच घंटे से ज्यादा का समय था लेकिन हर समय नहीं बोलने देने का आरोप लगाने वाले राहुल गांधी इस बिल पर नहीं बोले। कांग्रेस की ओर से गौरव गोगोई मुख्य वक्ता थे और अन्य लोग भी बोले। निजी क्षमता से कांग्रेस के नेता इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रहे हैं लेकिन बाकी पार्टियों की तरह कांग्रेस इसके खिलाफ याचिका नहीं दायर कर रही है। यह एक रणनीति के तहत किया जा रहा है। असल में कांग्रेस के नेताओं ने भाजपा और अमित शाह के इस गेम प्लान को भांप लिया कि वक्फ के मसले पर राहुल गांधी से बुलवाना है और फिर अमित शाह का विस्तार से जवाब होगा। इससे स्थायी रूप से हिंदू मुस्लिम नैरेटिव में शाह और राहुल का चेहरा एक दूसरे के कंट्रास्ट में स्थापित होगा। भाजपा को आसानी रहेगी यह स्थापित करने में में राहुल मुस्लिम तुष्टिकरण का चेहरा हैं। लोकसभा में बोली गई राहुल की बात हमेशा के लिए उनके गले से बंध जाती। इसलिए कांग्रेस ने राहुल गांधी को इससे दूर रखा। राहुल अब भी वक्फ बिल से दूरी बनाए हुए हैं। अमित शाह बनाम राहुल गांधी की राजनीति में तू डाल डाल, मैं पात पात का यह खेल चलता रहेगा।