Democracy

  • लोकतंत्र में वंशवादी मानसिकता ठिक नहीं

    लोकतांत्रिक प्रक्रिया और वंशवादी मानसिकता परस्पर विरोधी है। जनतंत्र में ‘जन’ की राय ही सर्वोच्च होती है। किसी ने सही कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और भाजपा के अन्य शीर्ष नेता जनता को अपनी पार्टी के पक्ष में मतदान करने के लिए केवल प्रेरित करते हैं, जबकि राहुल गांधी और उनके छुटभैये नेता जनता को प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को वोट देने पर मजबूर कर देते हैं। गत दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘मृत’ करार दिया। इसपर लोकसभा में नेता-विपक्ष और कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी ‘गदगद’ दिखे और अब देशभर में...

  • दलबदल लोकतंत्र के लिए खतरा: सुप्रीम कोर्ट

    नई दिल्ली। दलबदल को सुप्रीम कोर्ट ने लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने तेलंगाना की मुख्य विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति यानी बीआरएस के विधायकों की अयोग्यता के मामले में विधानसभा स्पीकर को तीन महीने में फैसला करने को कहा है। आमतौर पर स्पीकर ऐसे मामलों में फैसला विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने तक लंबित रखते हैं। लेकिन अदालत ने बीआरएस से दलबदल करने वाले 10 विधायकों के मामले में स्पीकर को आदेश दिया कि वे संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत इन विधायकों को अयोग्य ठहराने की याचिकाओं पर तीन महीने में फैसला...

  • बेमुरव्वत निर्ममता को छू रही पक्षधरता

    क्या आप देश के तक़रीबन 400 समाचार चैनलों में से दो-चार भी ऐसे बता सकते हैं, जो आजकल सरकार के निर्णयों और नीतियों में ख़ामियों को उजागर करना तो दूर, उन की तरफ़ इशारा करने का काम भी करते हों? एक लाख के आसपास अख़बारों-पत्रिकाओं में से क्या सौ-पचास भी ऐेसे हैं, जो केंद्रीय, प्रादेशिक या ज़िला स्तरीय शासन-प्रशासन के कामकाज की समीक्षात्मक रपटें प्रकाशित करते हों? पत्रकारिता के दो अलग-अलग कंगूरे हैं। एक है, जिस ने अपनी दीवार पर ‘मुख्यधारा-मीडिया’ का बोर्ड  अपने आप टांग कर ख़ुद को हम पर थोप दिया है। दूसरा है बे-धारा मीडिया। इसे आप...

  • लोकतंत्र में लाठी का राज

    अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लाठी भांज रहे हैं। उनको परवाह नहीं है कि लाठी अपने दोस्तों को लग रही है या दुश्मनों को। उनके हाथ में उस्तरा है तो वे उसे जैसे तैसे चला रहे हैं। यूरोप के देश हैरान परेशान हैं तो दक्षिण कोरिया और जापान जैसे दोस्त भी परेशान हैं। ट्रंप ने उनके ऊपर भी भारी भरकम टैक्स लगा दिया है। लेकिन यह सिर्फ अमेरिका की परिघटना नहीं है। व्लादिमीर पुतिन के पास भी लाठी है तभी तो उन्होंने एक दिन कहा कि यूक्रेन में रूसी भाषा बोलने वाले इलाकों पर उनका अधिकार है और यूक्रेन पर...

  • भारतीय चित्रकला में लोकतंत्र

    प्रसिद्ध चित्रकार एवम कला समीक्षक अशोक भौमिक ने अपने विचारोत्तेजक व्याख्यान में चित्रकला की दुनिया में एक नई बहस छेड़ दी है। उन्होंने एक नई स्थापना दी कि महान चित्रकार राजा रवि वर्मा से भारतीय चित्रकला में आधुनिकता की शुरुआत नहीं हुई थी, बल्कि रविंद्रनाथ टैगोर और अमृता शेरगिल ने भारतीय चित्रकला में आधुनिकता और लोकतंत्र को स्थापित किया था। जबकि अब तक यही माना जाता रहा कि कला में आधुनिकता की शुरुआत राजा रवि वर्मा से होती है। राजा रवि वर्मा को भारत का पहला आधुनिक चित्रकार माना जाता रहा है। 1848 में जन्मे राजा रवि वर्मा का कद...

  • क्या भारतीय लोकतंत्र आईसीयू में है?

    गांधी शांति प्रतिष्ठान में जेपी की संस्था सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी अपनी स्वर्ण जयंती मना रही है। आज जेपी नहीं हैं। बस उनकी यादें और उनके दिखाए गए रास्ते हैं। जेपी की बनाई संस्था सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी के 50 साल पूरे होने पर एक आयोजन हुआ था। उसकी रिपोर्ट। करीब 50 साल पहले जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में नागरिक समाज की एक संस्था “सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी” की स्थापना की थी क्योंकि तब उन्हें लोकतंत्र को बचाना था और लोकतंत्र को बचाने के लिए ही उन्होंने आपातकाल का विरोध किया था। उसी गांधी शांति प्रतिष्ठान से वे गिरफ्तार...

  • लोकतंत्र के स्तंभों में टकराव…. कितने गहरे घाव….?

    भोपाल। भारतीय प्रजातंत्र का महल तीन स्तंभों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर खड़ा है, चैथा स्वयं भू-स्तंभ खबर पालिका भी इसे सहारा देने का दावा करती रही है। किंतु आज जब हमारा प्रजातंत्र उम्रदराज हो चुका है और आठवें दशक के समापन की ओर बढ़ रहा है, ऐसे में इसके स्तंभों में आपसी टकराव की स्थिति निर्मित हो रही है और इसे कमजोर कर इसे खंडहर में परिवर्तित करने के प्रयास किए जा रहे है, जबकि हमारे संविधान ने पहले से ही स्तंभों के कर्तव्य और अधिकार की सीमा रेखा तय कर रखी है। किंतु अब इन तीनों ही स्तंभों...

  • आपदा से बदहाल होता प्रजातंत्र

    एक अध्ययन में यह खुलासा किया गया है कि आपदा, विशेष तौर पर प्राकृतिक आपदा, के बाद सत्ता की निरंकुशता पहले से अधिक बढ़ जाती है| पहले प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति का समय लंबा था, पर अब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से यह एक वार्षिक और लगातार घटना है| जाहिर है, जलवायु परिवर्तन सत्ता की निरंकुशता और जनता के दमन के लिए जिम्मेदार होती जा रही है|  जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के प्रभाव से दुनिया बदल रही है और आपदाएं भी लगातार हमें जकड़ रही हैं| बाढ़, सूखा, भूस्खलन, हिमस्खलन, तूफान, चक्रवात, इत्यादि अब सामान्य हो चले हैं| हमारे...

  • वोटों की भीख मांगने वाले, वोटर को भिखारी बता रहे…?

    भोपाल। अब इसे हम प्रजातंत्र पद्धति का दोष कहे या हमारे ‘माननीयों’ की समझ की कमी, जो राजनेता हर पांच साल में मतदाताओं से घर-घर जाकर मतों की भीख मांगते है, वे ही कुर्सी पर आसीन हो जाने के बाद कह रहे है कि- ‘‘लोगों को सरकार से भीख मांगने की आदत पड़ गई है।’’ यह किस्सा मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले के सुठालिया ग्राम का है, जहां मध्यप्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री ने जनता के मांग पत्रों को ‘भीख’ की संज्ञा दी, वीरांगना अवंती बाई लोधी की प्रतिमा का अनावरण करने के बाद वहां उपस्थित लोगों को सम्बोधित करते हुए...

  • सदन के सामने से कतराते हमारे जनप्रतिनिधि…!

    parliament session 2025 : आजादी की हीरक जयंति के दौरान देश के इस मसले पर गंभीर चिंतन करना चाहिए कि क्या आजादी के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाले या जानलेवा संघर्ष करने वाले हमारे राष्ट्रभक्त पूर्वजों की मोहक कल्पनाओं पर हम खरे उतर रहे है? या उनके सपनों में रंग भरनेे का तनिक भी प्रयास कर रहे है? यह एक ऐसा मुद्दा है जो हमें निराश ही करने वाला है, क्योंकि देश व देशवासियों को उनकी पारिवारिक उलझनों में उलझा कर स्वार्थ सिद्ध करने वालों का आज बाहुल्य हो गया है, आज की राजनीति का जनसेवा से दूर का...

  • दो लोकतंत्र, एक चिंता !

    Democracy: भारत और हम हिंदुओं का क्या होगा, यह अपनी चिंता है! वही दुनिया इस चिंता में है कि अमेरिका और पश्चिमी सभ्यता का क्या होगा! डोनाल्ड ट्रंप आज शपथ ले रहे हैं और उनके इस मौके पर कनाडा के “हिंसक संघर्षो के अध्येता” होमर-डिक्सन का तीन साल पहले लिखा एक वाक्य मुझे ध्यान आ रहा है। उन्होंने कनाडा के लोगों को चेताया था। उन्होने अखबार ‘ग्लोब एंड मेल’ में लिखा था कि, ‘हमें वह सोचना चाहिए जो आज लग नहीं रहा, दिख नहीं रहा! हमें उन संभावनाओं, सिनेरियो को इसलिए खारिज नहीं करना चाहिए क्योंकि वे हास्यास्पद या कल्पनातीत...

  • बहुकोणीय लड़ाई और लोकतंत्र की चुनौती

    india democracy: भारत में बहुदलीय लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाई गई है। तभी इस बात की शिकायत नहीं की जा सकती है कि बहुत सारी पार्टियां हर दिन बन रही हैं और चुनाव लड़ रही हैं। परंतु इस बात पर नजर रखने की जरुरत है कि बड़ी संख्या में पार्टियों के चुनाव लड़ने से लोकतंत्र के सामने क्या चुनौतियां आ रही हैं। इन चुनौतियों की व्याख्या कई पहलुओं से हो सकती है।(india democracy) लेकिन एक पहलू सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाला है, जिसके आंकड़े हाल में सामने आए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव के आंकड़ों का आकलन करने के बाद एक रिपोर्ट...

  • लोकतंत्र: निर्भीक अदालत जो सत्ता की लगाम हो..!

    Democracy and Judiciary:  शास्त्रीय तौर पर पर तो लोकतंत्र में विधायी संस्था शासन के निकाय पर नियंत्रण रखती है, और इन दोनों के अतिरेक को स्पष्ट करने के लिए ’न्यायपालिका होती है। सुनने में तो यह बहुत अच्छा लगा, लेकिन सभी लोकतंत्र राष्ट्रों में होता इसका उल्टा ही है। प्रजातन्त्र की अवधारणा यूं तो बहुत सत्य लगती हैं, परंतु वास्तविकता के धरातल पर होता उल्टा ही हैं ! यंहा हम यूरोप के अनेक देशों और संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ उदाहरण लेते हैं। अमेरिका में नेता और जनता का यह संवाद बहुत माकूल हैं। जनता के अधिकारों की रक्षा का...

  • न्यायपालिका ही प्रजातंत्र की सही संरक्षक…!

    भोपाल। सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले ने आज पुनः यह सिद्ध कर दिया है कि प्रजातंत्र के चार अंगों- विधायिका, कार्यपालिका, न्याय पालिका और खबर पालिका में न्याय पालिका ही प्रजातंत्र की सही संरक्षक है, कथित अवैध निर्माणों के नाम पर लोगों के घरों को ‘जमींदोज’ कर देने की शासकीय मनमानी पूर्ण प्रक्रिया को सर्वोच्च न्यायालय ने एकदम गैर कानूनी व गलत माना है तथा शासन-प्रशासन को सख्त निर्देश दिए है कि बिना ठोस गैरकानूनी सबूतों के ऐसी कार्यवाही कतई नही की जानी चाहिए। इस तरह आज फिर एक बार यह स्पष्ट हो गया है कि प्रजातंत्र की सही संरक्षक...

  • लोकतंत्र में सामंतवाद

    कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप इस हद तक चढ़ा कि पार्टी की जड़ें कमजोर करने में उसकी प्रमुख भूमिका रही। लेकिन तब जो दल और नेता कांग्रेस को निशाना बनाते थे, मौका मिलते ही वे सियासत में अपना वंश बढ़ाने में जुट गए। वैसे चर्चा पहले से थी, लेकिन अब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने अपने बेटे उदयनिधि मारन को अपना औपचारिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया है। ठीक उसी तरह जैसे उनके पिता एम। करुणानिधि ने स्टालिन को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। करुणानिधि ने अपनी दूसरी संतानों को भी राजनीति में यथासंभव स्थापित करने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाई। उदयनिधि...

  • विपक्ष और कांग्रेस समझदारी से चले

    समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन के पिछले कुछ अनुभव अच्छे नहीं रहे। इसलिए और भी सावधानी बरतनी होगी। क्योंकि अखिलेश यादव में इतना बड़प्पन है कि वे अपनी कटु आलोचक “बुआजी” बहन मायावती से भी संबंध सुधारने में सद्भावना से पहल कर रहे हैं। यही नीति ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार व लालू यादव आदि को भी अपनानी होगी। तभी ये सब दल भारतीय लोकतंत्र को मज़बूत बना पायेंगे। जून 2024 के चुनाव परिणामों के बाद राहुल गांधी का ग्राफ काफ़ी बढ़ गया है। बेशक इसके लिए उन्होंने लम्बा संघर्ष किया और भारत के आधुनिक इतिहास में शायद सबसे...

  • भीड़ है तो बुद्धी संभव ही नहीं!

    सोचना संभव नहीं है पर देखना तो है! और हाल में दिखा क्या बतलाता है? भारत तांबा है सोना नहीं! यदि ओलंपिक में लौह पदक होते तो वे भी हमारे हिस्से ज्यादा आते! चार साल में ओलंपिक, हर वर्ष नोबेल समारोह, हर वर्ष ऑस्कर से लेकर श्रेष्ठ साहित्यिक कृतियों के नामांकन से ले कर विज्ञान अनुसंधान की खोज की उपलब्धियों का जो सालाना लेखाजोखा सुनने को मिलता है तो कम से कम यह भान होना चाहिए कि हमारे स्वर्णिम काल के कहां-क्या लक्षण है? हाल में यह भी सुना था कि बांग्लादेश में हिंदूओं पर हमले हुए, उन्हे जान-माल के...

  • सच्चे संघवाद की समझ कब होगी?

    नासमझी ऐसी कि दुनिया के सामने 'वसुधैव कुटुंबकम्' या 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' की डींग हाँकने वाले विभिन्न राज्यों, बल्कि एक राज्य, समुदाय और दल में भी ईर्ष्या-द्वेष, अविश्वास को हवा देते हैं। मानो, अपने समुदाय या दल के भी सब को अपना नहीं मानते। तब संघ-राज्य संबंध पर हल्केपन का क्या कहना!....कैसी विडम्बना कि अंग्रेजों ने भारतीय समाज को अधिक समझा था! उन्होंने यहाँ विशिष्ट क्षेत्रों, शासकों, समूहों को बिलकुल स्वायत्त रहने दिया था। जबकि वे असंख्य रियासतें मजे से खत्म कर सकते थे। कल्पना कीजिए कि फिल्म निर्माण, और खेलकूद को केंद्रीय विषय बनाकर उसे राजकीय एकाधिकार में ले...

  • लोकतंत्र का परिपक्व होना जरूरी!

    जनसंवाद के कई लाभ होते हैं। एक तो जनता की बात नेता तक पहुँचती है दूसरा ऐसे संवादों से जनता जागरूक होती है। अलबत्ता शासन में जो दल बैठा होता है वो कभी नहीं चाहता कि उसकी नीतियों पर खुली चर्चा हो। इससे माहौल बिगड़ने का खतरा रहता है। हर शासक यही चाहता है कि उसकी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर मतदाता के सामने पेश किया जाए। अभी आम चुनाव का पहला चरण ही पूरा हुआ है पर ऐसा नहीं लगता कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनाव जैसी कोई महत्वपूर्ण घटना घट रही है। चारों ओर एक अजीब सन्नाटा है।...

  • दुनिया सब देखती है

    बुनियादी सवाल यह है कि आज दुनिया को भारत में लोकतंत्र की हालत पर चिंता जताने का मौका क्यों मिल रहा है? भारत ने दुनिया में अपना जो सॉफ्ट पॉवर बनाया था, आज वह अपनी साख क्यों खोने लगा है?  यह निर्विवाद है कि हर देश किसी दूसरे देश की अंदरूनी हालत के बारे में टिप्पणी अपने भू-राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही करता है। इसलिए बहुत-से मामलों पर बहुत-से देश चुप रहते हैं या मद्धम टिप्पणी करते हैँ। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि बाकी दुनिया किसी देश के अंदर क्या हो रहा है, उससे नावाकिफ रहती...

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