Connect
मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -
  • उम्मीद रखें, समय आ रहा!

    यों रावण ने भी राम को थका दिया था। वह अजय भाग्य जो पाए हुए था। लेकिन समय के आगे भला अहंकार कितना दीर्घायु होगा? इस सत्य को मैंने बतौर पत्रकार, 12 प्रधानमंत्रियों के आने-जाने के अनुभवों में बारीकी से बूझा है। इसलिए न तो समय पर अविश्वास करना चाहिए और न उम्मीद छोड़नी चाहिए। आज नहीं तो कल, यह नहीं तो वह, और यदि कोई नहीं तब भी परिवर्तन में ही अवसर। इसलिए मैं राष्ट्र राज्य के हर चुनाव के समय नई उम्मीद में (शुरुआत जनता पार्टी की मोरारजी सरकार से) रहा और बार-बार निराशा के बावजूद मैंने इस...

  • एनडीए 257 पर या 400 पार?

    वैसे अब खुद नरेंद्र मोदी ने 400 सीटों की बात करना बंद कर दियाहै। दूसरे चरण के मतदान से पहले की जनसभाओं में एक में भी उन्होने नारा नहीं लगवाया- अबकी बार चार सौ पार। जबकि पहले चरण में राजस्थान के उस चुरू शहर की जनसभा में भी नारा लगवाया था जहां लोग कांटे की टक्कर मान रहे थे। इसलिए इस दफा टेबल में भाजपा/एनडीए के कॉलम को चार सौ सीटों की हवाबाजी केआंकड़ों की जगल जमीनी रिपोर्टिंगके अनुमानों मेंबदल रहा हूं। इस बार कांटे के मुकाबले के सिनेरियो में भाजपा-एनडीए की संभावी सीटों का अनुमान है। भाजपा का तीन...

  • त्रिशंकु लोकसभा के आसार?

    हां, मुझे न चार सौ पार की सुनामी दिख रही है और न किसी एक पार्टी का चार जून को बहुमत होता लगता है। निश्चित ही मोदी के समय यह अनहोनी बात है। मगर ऐसी संभावना खुद नरेंद्र मोदी व अमित शाह अपने हाव-भाव, भाषणों से बतला रहे हैं। नरेंद्र मोदी घबराए हुए हैं। तभी प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक में रख दिया है। वे मतदान के पहले चरण तक अति आत्मविश्वास में बहुत हांक रहे थे। लेकिन 19 अप्रैल को राजस्थान, यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, छतीसगढ़ आदि में कम मतदान का उन्हें अर्थ समझ आया। यह भी पढ़ें:...

  • दूसरा चरण विपक्ष की वापसी का?

    वैसे तो लोकसभा का चुनाव सात चरणों में है, लेकिन जिस तरह से पहले चरण के बाद चुनाव प्रचार का तरीका बदला और काफी हद तक धारणा बदली उसी तरह से दूसरे चरण के मतदान के बाद चुनाव का पूरा नैरेटिव बदल सकता है। पहला चरण विपक्ष के कुछ खास हासिल करने का नहीं था क्योंकि उसमें एनडीए और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के बीच फिफ्टी-फिफ्टी का मुकाबला था। सीटे बराबरी में बंटी हुई थीं। लेकिन दूसरे चरण में मुकाबला वहां है,जहां पिछली बार भाजपा की छप्पर फाड़ जीत थी। अगर इन सीटों पर, चुनाव के राज्यों में विपक्षी गठबंधन भाजपा...

  • तब बंगाल, यूपी, राजस्थान और अब?

    शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की जिन तीन सीटों पर मतदान हुआ वे तीनों सीटें भाजपा की हैं। दूसरे चरण में चुनाव उत्तरी बंगाल से निकल कर मैदानी इलाके में पहुंचा है। उत्तरी बंगाल की एक दार्जिलिंग सीट है और दो अन्य सीटें बालुरघाट और रायगंज हैं। 2019 में तीनों सीटें भाजपा जीत गई थी लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने इस इलाके में अपने को मजबूत किया है। यहां जम कर मतदान भी हुआ है। ममता अपना वर्चस्व वापस हासिल करना चाहती हैं। यहां भी भाजपा को एक या दो सीट का नुकसान होता है तो...

  • भाजपा फंसी!

    भाजपा फंस गई है। तय मानें 400 पार की सुनामी तो दूर भाजपा की आंधी और हवा भी नहीं है। यदि पहले चरण की 102 सीटों पर हुए मतदान के प्रतिशत व भाजपा के अभेद प्रदेशों में हुई वोटिंग तथा जातीय समीकरणों की फीडबैक को पूरे चुनाव का सैंपल आधार मानें तो लोगों में भाजपा को जिताने का वह जोश कतई नहीं है, जिससे बड़ी जीत की हवा समझ आए। उलटे उन सीटों पर भाजपा को हराने की मौन हलचल है, जहां बड़ी संख्या में भाजपा विरोधी परंपरागत वोट हैं। इसलिए 400 पार की सुनामी तो दूर सामान्य बहुमत के...

  • चुनाव में सस्पेंस क्या?

    सभी बता रहे हैं चुनाव बिना माहौल के है। न रोमांच है, न उत्साह है, न रंग है, न शोर है और न परिणामों को ले कर सवाल है। तब भला चुनाव 2024 का सस्पेंस क्या? हालांकि नरेंद्र मोदी का विशाल ऐलान है कि चार जून को उन्हें 400 पार सीटें मिलेंगी। मेरे हिसाब से नरेंद्र मोदी का यह विश्वास आत्मघाती है क्योंकि मेरा मानना है कि तीन सौ पार हो जाए तो बड़ी बात। दूसरी बात, चार सौ पार का आकंड़ा प्रधानमंत्री पद, पार्टी और भारत तीनों के लिए अपशुकनी है। याद करें राजीव गांधी को। Lok Sabha election...

  • कोई ग्रैंड नैरेटिव नहीं

    चुनाव 2024 रूटीन की तरह लड़ा जाता दिख रहा है। वजह कई हैं। एक कारण तो यह है कि चुनाव आयोग की बंदिशों और सोशल मीडिया की हर व्यक्ति तक पहुंच ने चुनाव को नीरस बनाया है। अब पहले ही तरह चुनाव एक उत्सव नहीं है। यह सामूहिक काम नहीं बल्कि व्यक्तिगत काम हो गया है। पार्टियां सोशल मीडिया में प्रचार करती हैं और चूंकि हर व्यक्ति के पास मोबाइल फोन है और प्रतिक्रिया देने के लिए एक मंच है तो वह सारी लड़ाई वहीं लड़ता है। Lok sabha lections पार्टियों को शारीरिक रूप से जनता के बीच जाने की...

  • कहां आत्मविश्वास और कहां घबराहट?

    एक सस्पेंस इस बात का भी है कि भाजपा ने अलग अलग क्षेत्रों में या राज्यों में अलग अलग किस्म की रणनीति अपनाई। उसने कहीं बड़ी संख्या में सांसदों की टिकट काट दी तो कहीं पुराने और थके हारे सांसदों को रिपीट कर दिया और कहीं गठबंधन तोड़ दिया तो कहीं नया गठबंधन बना लिया। भाजपा का राजस्थान में हनुमान बेनिवाल की पार्टी से तालमेल टूटा तो हरियाणा में दुष्यंत चौटाला की पार्टी से भी टूट गया और तमिलनाडु में अन्ना डीएमके से भी तालमेल समाप्त हो गया। Lok Sabha election 2024 यह भी पढ़ें: कोई ग्रैंड नैरेटिव नहीं इससे...

  • इतना लंबा चुनावी कार्यक्रम क्यों?

    यह एक बड़ा सस्पेंस है कि आखिर इतना लंबा और इतनी अजीबोगरीब चुनाव शिड्यूल कैसे और क्यों बना? पहले चरण में शुक्रवार को तमिलनाडु की सभी 39 सीटों पर मतदान हो गया लेकिन बिहार की सिर्फ चार और पश्चिम बंगाल की तीन सीट पर मतदान हुआ। ऐसा क्यों? बिहार में क्या सभी सीटों पर एक साथ मतदान नहीं हो सकता था? मध्य प्रदेश की छह और छत्तीसगढ़ की सिर्फ एक सीट पर मतदान हुआ है। Lok Sabha Elections यह भी पढ़ें: कोई ग्रैंड नैरेटिव नहीं पूर्वोत्तर के राज्यों में त्रिपुरा में दो सीटें हैं लेकिन पहले चरण में सिर्फ एक...

  • समय सचमुच अनहोना!

    यह सत्य भारत पर ही नहीं, बल्कि आज की दुनिया पर भी लागू है। इस कॉलम को लिखते समय इजराइल के ईरान पर हमले की खबर है। जबकि हर कोई होनी को टालने की कोशिश में था लेकिन नेतन्याहू बरबाद होते हुए हैं तो पश्चिम एशिया उनके साथ फंसा है। ऐसे ही अनिश्चितताओं से भरा भारत का आम चुनाव है। नरेंद्र मोदी कितना ही आत्मविश्वास दिखाएं, उनकी जनसभाएं 2019 और 2014 जैसी कतई नहीं हैं। सब कुछ बासी कढ़ी जैसा मामला है। Lok sabha election न सभाओं में नौजवानों का मोदी, मोदी हल्ला है और न मोदी के चेहरे या...

  • भगवान श्री मोदी की ‘गारंटी’!

    हिंदुओं के भगवान हिंदुओं को ‘गांरटी’ नहीं देते हैं लेकिन सन् 2024 के चुनाव में हम हिंदुओं को एक ऐसा भगवान मिला है जो ‘गारंटी’ देता है। मतलब मैं भारत को सोने की चिड़िया बना दूंगा, मैं विकसित भारत बना दूंगा आदि, आदि। सोचें, सहस्त्राब्दियों में ब्रह्मा-विष्णु-महेश और राम-कृष्ण हिंदुओं के लिए जो नहीं कर सके वह नरेंद्र मोदी कर देंगे। सतयुग, त्रेता, द्वापर युग के अपने देवी-देवताओं पर सोचें और उनकी तुलना करें मौजूदा कलियुगी भगवान नरेंद्र मोदी से! क्या रामजी ने अयोध्या के लोगों को इस तरह से गारंटी दी थी? श्रीकृष्ण ने महाभारत में कोई गारंटी दी...

  • बेजान, ठंडा चुनाव!

    यह उत्तर भारत का चुनावी सत्य है। जयपुर, भोपाल, रायपुर, लखनऊ कहीं बात करें सभी तरफ फीका, निराकार चुनाव है। न उम्मीदवारों के चेहरे चर्चा में हैं और न पक्ष-विपक्ष का प्रचार दिख रहा है। लोगों के मन में अकेले पैठे नरेंद्र मोदी के चेहरे में सब माने बैठे हैं कि भले गले में भाजपा का पट्टा बंधाए कुत्ता उम्मीदवार हो,  जीतेगा वही। चर्चाओं में जीत-हार की बहस या उम्मीदवारों को लेकर किसी तरह की कोई चख-चख नहीं। 1977 बाद इतना फीका लोकसभा चुनाव (तब मौन क्रांति थी) कभी देखने को नहीं मिला। मगर बेजान चुनाव की यह हकीकत उन्ही...

  • मोदी सुनामी क्षत्रपों से फुस्स!

    गुजरे सप्ताह महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की क्षत्रपता स्थापित हुई। पिछले सप्ताह भी मैंने लिखा था कि राहुल गांधी और शरद पवार ठीक कर रहे हैं, जो उद्धव ठाकरे को बड़ा भाई बना रहे हैं। अब सीटों के बंटवारे (ठाकरे पार्टी को 21, कांग्रेस 17, शरद पवार पार्टी 10 सीट) ने भी महाराष्ट्र की जनता की निगाह में उद्धव ठाकरे बनाम नरेंद्र मोदी की सीधी प्रतिद्वंद्विता बना दी है। इसका अर्थ है लोगों में, समर्थकों में एकनाथ शिंदे और अजित पवार की वोट दुकान खत्म। इनकी वही दशा होनी है जो बिहार में भाजपा के पार्टनर नीतीश, मांझी, पासवान आदि...

  • भाजपा 300 से ऊपर या नीचे?

    12 अप्रैल 2024 का चुनावी अनुमान हाल में आए एक के बाद एक सर्वेक्षणों के बीच है। इनमें मोटा मोटी 350 से 400 पार एनडीए-भाजपा की सीटों के अनुमान है। एक चैनल ने होशियारी दिखाई जो 399 का आंकड़ा दिया। मतलब चार सौ पार और चार सौ से नीचे का आंकड़ा आए तो दोनों हाथों में अपना कहा सही के लड्डू। मगर इन सबसे अलग लोगों के सरोकार के मुद्दों के ताजा सर्वे आंकड़े भी है। इस अनुसार तो 2019 के मुकाबले लोग महंगाई, बेरोजगारी से इतने अधिक परेशान हैं कि राम मंदिर और भक्ति की बात कहीं नहीं है।...

  • महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार भी मुद्दा!

    अब यह सिर्फ राहुल गांधी या विपक्ष के नेता नहीं कह रहे हैं कि महंगाई और बेरोजगारी देश की सबसे बड़ी समस्या है। सीएसडीएस और लोकनीति के सर्वेक्षण में आम लोगों ने स्वीकार किया है कि वे महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार से परेशान हैं। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले हुए इस सर्वेक्षण में देश के 71 फीसदी लोगों ने माना है कि जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ी हैं और इससे परेशानी हो रही है। अगर इस आंकड़े की बारीकी में जाएं तो जो गरीब हैं उनमें से 76 फीसदी ने कहा है कि महंगाई परेशान कर रही है। मुसलमानों और...

  • भाजपा पर भड़के कई राज्यों के राजपूत

    पिछले कुछ समय से ब्राह्मणों के बाद राजपूत भाजपा के लिए सबसे ज्यादा प्रतिबद्ध मतदाता के तौर पर उभरे थे। उन्होंने हिंदी पट्टी के कई राज्यों, जैसे बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में प्रादेशिक पार्टियों के साथ बनाया गया अपना पुल तोड़ दिया था और भाजपा के बड़े जहाज पर सवार हो गए थे। राजस्थान में राजपूत पहले से भाजपा से जुड़े थे और मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह व दिग्विजय सिंह के बाद राजपूत भाजपा के साथ चले गए थे। गुजरात अपवाद था, जहां आज तक माधव सिंह सोलंकी के बनाए खाम समीकरण के हिसाब से क्षत्रिय कांग्रेस के...

  • 2024 के भारत आईने का सत्य!

    वक्त का आईना है राजनीति। नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, योगी आदित्यनाथ, एकनाथ शिंदे, अरविंद केजरीवाल और तमाम तरह के दलबदलू नेताओं से लेकर ममता, स्मृति, कंगना, अडानी, अंबानी मौजूदा समय के वे भारतीय ब्रांड मैनेजर, ब्रांड एंबेसडर हैं, जो 140 करोड़ लोगों के डीएनए, मिजाज, संस्कृति की प्रतिनिधि पैदाइश हैं। ये चेहरे अपने आपमें भारत के समय और राष्ट्र-राज्य के दीन-ईमान के प्रतिनिधि हैं। देश का खुलासा हैं। मतलब हम भारतीयों, खासकर हिंदुओं के आचार-विचार, बुद्धि-ज्ञान, ईमानदारी, सत्यता, नैतिकता और आस्था व मूल्यवत्ता के सत्व-तत्व के ये पर्यायी, ब्रांड चेहरे हैं! यह वैसा ही मामला है जैसे हम दूर के...

  • भाजपा की सुनामी दूर-दूर तक नहीं!

    नरेंद्र मोदी अब जनसभाओं में चार सौ पार का नारा पहले की तरह हर जगह लगवाते हुए नहीं हैं। मैंने चार सौ सीटों की सुनामी के भाजपा हल्ले पर पंद्रह दिन पहले राज्यवार सीटों की अनुमानित लिस्ट देना शुरू किया था। भाजपा की हवाई सुनामी को पहली लिस्ट में डाला तब भी चार सौ सीटों का आंकड़ा नहीं बना। उसके बाद पिछले सप्ताह (29 मार्च 2024) भाजपा-एनडीए की अधिकतम सीटों का अनुमान 358 सीटों का था। जबकि कांटे के मुकाबले के जमीनी सिनेरियो में गैर-एनडीए पार्टियों की सीटों का अनुमान था 248 सीट। पिछले सात दिनों में माहौल बदला है।...

  • विपक्ष का हल्ला, मोदी के दलबदलू!

    पता नहीं मोदी-शाह ने क्या सोच कर अरविंद केजरीवाल को जेल में डाला? ऐसे ही हेमंत सोरेन का सवाल है तो कांग्रेस की चुनावी पैसे की जब्ती का भी मामला है। वजह या तो अंहकार है या तो नरेंद्र मोदी के ग्रह-नक्षत्र खराब हैं या विनाशकाले विपरीत बुद्धि है। नरेंद्र मोदी हिंदी भाषी इलाकों के मन में भले बैठे हों और मुमकिन है उत्तर भारत में छप्पर फाड़ जीतें। लेकिन बावजूद इसके जिस भी चुनावीसीटपर जमीनी हवा-गणित और जात-पांत तथा उम्मीदवार विशेष की दबंगी पर वोटिंग होगी वहां मोदी हवा का पंक्चर होना तय है। और गुजरे सप्ताह का घटनाक्रम...

और लोड करें