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मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -
  • मोदी का सिक्का, हुआ खोटा!

    मैंने 29 अप्रैल को लिखा था, ‘उम्मीद रखें, समय आ रहा है’! और दो सप्ताह बाद आज क्या तस्वीर? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम के जिस सिक्के से देश चार सौ पार सीटों में खनका हुआ था, वह खोटा हो गया है। वह अपने नाम व दाम से छोटा है और सिक्का बस एक  मुखौटा है। हां, खुद नरेंद्र मोदी के भाषण, शेयर बाजार की खनक और आम चर्चाओं में यह हकीकत आग की तरह फैलते हुए है कि मोदी के सिक्के से अब भाजपा उम्मीदवारों की जीत की गारंटी नहीं है। उम्मीदवारों को अपने बूते, अकेले अपने दम पर...

  • मोदी से लोग लड़ रहे न कि विपक्ष!

    2024 के चुनाव में अजूबा होगा। मैंने पहले भी लिखा था कि मौन लोग विपक्ष की ओर से चुनाव लड़ते हुए हैं। मेरी यह थीसिस मुझे सात मई के मतदान के दिन साक्षात सही दिखी। उस दिन मैं कोई तीन सौ किलोमीटर घूमा होगा। महाराष्ट्र में मुंबई से दूर तीन लोकसभा क्षेत्रों में। कोंकण इलाके में। इनमें एक रायगढ़ की सीट पर मतदान भी था। तीनों जगह नरेंद्र मोदी नजर आए लेकिन उद्धव ठाकरे, शरद पवार, राहुल गांधी का कहीं कोई होर्डिंग, पोस्टर नहीं था। न पार्टियों के एक्टिविस्ट या वोटर इनका नाम बोलते हुए थे। पर हर जगह लोग...

  • मोदी की घबराहट का चरम, अंबानी-अडानी भाषण!

    तमाम तरह की बातें हैं। लेकिन असल बात भाषा है। नरेंद्र मोदी भले दस साल प्रधानमंत्री रह लिए हैं और अंबानी व अडानी दुनिया के टॉप खरबपति हैं मगर तीनों का स्तर कैसा-क्या है? इसे बूझे इन वाक्यों से- अंबानी, अडानी से कितना माल उठाया है? काले धन के कितने बोरे भरकर मारे हैं? आज टेंपो भरकर नोट कांग्रेस के लिए पहुंची है क्या?क्या सौदा हुआ है? आपने रातों रात अंबानी, अडानी को गाली देना बंद कर दिया? जरूर दाल में कुछ काला है? पांच साल तक अंबानी, अडानी को गाली दी और रातों रात गालियां बंद हो गईं। मतलब...

  • बिहार में भाजपा की सीटें ही फंसी

    लोकसभा चुनाव 2024 शुरू होने के बाद आमतौर पर माना जा रहा था कि बिहार में नीतीश कुमार की पार्टी की स्थिति डावांडोल है, जबकि भाजपा बहुत अच्छी स्थिति में है। इस आधार पर अनुमान लगाया जा रहा था कि नीतीश की पार्टी जिन 16 सीटों पर लड़ रही है वहां उनको नुकसान होगा, जबकि भाजपा की 17 सीटें सुरक्षित हैं। एक चुनाव पूर्व सर्वेक्षण ने भाजपा के साथ साथ चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी की सीटें भी सुरक्षित बता दी थीं। यानी उनकी पांच सीटों पर भी कोई खतरा नहीं बताया गया था। लेकिन लोकसभा चुनाव के पहले...

  • उद्धव और शरद के इलाके में सुधरा मतदान

    हालांकि महाराष्ट्र में तीसरे चरण के मतदान में भी पिछली बार के मतदान की बराबरी नहीं हुई लेकिन इतना जरूर हुआ कि मतदान का प्रतिशत 61 से ऊपर चला गया। पहले दो चरण में मतदान इससे कम रहा था। लेकिन तीसरे चरण में जब शरद पवार और उद्धव ठाकरे के गढ़ में मतदान हुआ तो मतदान प्रतिशत 61.4 फीसदी हो गया। इसमें थोड़ी और बढ़ोतरी हो सकती है। यह अंतरिम आंकड़ा है। पिछली बार इन 11 सीटों में 61.7 फीसदी मतदान हुआ था। तीसरे चरण में कोल्हापुर में 70 फीसदी से ऊपर मतदान हुआ। सांगली में 61 फीसदी तो सातारा...

  • कर्नाटक में मतदान बढ़ने का मतलब

    आमतौर पर राजनीति में माना जाता है कि मतदान तभी बढ़ेगा, जब बहुत अच्छी लड़ाई हो या कोई बहुत अच्छा मुद्दा हो। इस बार देश के चुनाव में न तो बहुत अच्छी लड़ाई दिख रही है और न कोई बहुत बड़ा मुद्दा दिख रहा है। यही कारण है कि पूरे देश में लोकसभा की 283 सीटों पर मतदान के बाद भी मत प्रतिशत पिछली बार से कम दिख रहा है। तमाम पार्टियों के प्रयासों के बावजूद मतदान प्रतिशत में इजाफा नहीं हो रहा है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोड़ दें तो हर जगह औसत मतदान हो रहा है। ज्यादातर...

  • मतदाता के बेमन वोट से घबराहट!

    हर सप्ताह, हर दिन अब नरेंद्र मोदी के चौंकाते भाषण हैं। अब की बार 400 सौ पार के जुमले से महिलाओं के मंगलसूत्र छीने जाने, फिर पाकिस्तान और राहुल गांधी के साथ पाकिस्तान को जोड़ते-जोड़ते नरेंद्र मोदी इस सप्ताह अंबानी-अडानी से राहुल को जोड़ बैठे। निश्चित ही यह मतदाताओं की लगातार बेरूखी से बढ़ता पैनिक है। यदि नरेंद्र मोदी की घबराहट, भाव-भंगिमा को पैमाना मानें तो अनुमान टेबल में भाजपा का तब क्या बनेगा? भाजपा का हर नैरेटिव फेल है। मंगलवार को तीसरे चरण के मतदान में मतदाताओं की बेरूखी वापिस जाहिर हुई। इस सप्ताह की टेबल में महाराष्ट्र को...

  • उद्धव, खड़गे, स्टालिन प्रधानमंत्री बनें तो मोदी से कई गुना बेहतर पीएम होंगे!

    जनसभाओं में नरेंद्र मोदी और अमित शाह का डर बोल रहा है। बिहार के झंझारपुर में अमित शाह बोल पड़े कि इंडी गठबंधन जीता तो इसका कौन होगा प्रधानमंत्री? बताइए क्या लालू होंगे, स्टालिन होंगे, राहुल गांधी होंगे? मतलब लायक सिर्फ नरेंद्र मोदी हैं, बाकी सब नालायक! क्या सचमुच? पहली बात, दुनिया जानती है कि लालू यादव सजायाफ्ता हैं। इसलिए वे कानूनन प्रधानमंत्री पद की शपथ के अयोग्य है और वे संसद का चुनाव भी नहीं लड़ रहे हैं। इसलिए उनका नाम लेना झूठ से लोगों को डराना है। अब बुनियादी सवाल है विपक्ष में और कोई जैसे मल्लिकार्जुन खड़गे,...

  • हर राज्य में भाजपा को नुकसान!

    हां, किसी भी राज्य में भाजपा की सीटें नहीं बढ़ेंगी। उसे हर राज्य में नुकसान है। इस नुकसान को प्रति राज्य दो-चार सीट का मानें या आठ-दस सीटों का, कम-ज्यादा सभी राज्यों में है। भाजपा को हर उस राज्य में नुकसान होता हुआ है, जहां 2019 में मोदी की आंधी थी। जैसा मैंने पिछले सप्ताह लिखा, मेरी कसौटी राजस्थान है। मैं वहां भाजपा को चार सीटों का नुकसान बूझ रहा हूं। और राजस्थान में इतना भी नुकसान होना उन सभी राज्यों में भाजपा के लिए खतरे की घंटी है, जहां 2019 में उसकी जीत का वोट मार्जिन कुछ सौ वोटों...

  • किसी भी राज्य में भाजपा का 2019 रिपीट नहीं!

    नरेंद्र मोदी-अमित शाह 2019 की जीत संख्या को फिसलता हुआ बूझ रहे हैं। तभी नरेंद्र मोदी अब यह प्रलाप करते हुए हैं कि राहुल को पीएम बनाने के लिए पाकिस्तान उतावला हो रहा है। सोचें, बीस दिनों में मोदी-शाह के भाषण का सुर कितना और कैसा बदला? इसलिए क्योंकि 2019 में भाजपा ने जो सीटें जीती थीं उनमें हर जगह इन्हें नुकसान होता दिख रहा है। मोदी-शाह ने अबकी बार चार सौ पार का नारा दिया था। लेकिन 2019जितनी सीटों का बचना लगभग असंभव है। हां, मुझे नहीं लगता कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, बिहार, तेलंगाना, झारखंड में 2019...

  • बिहार में भाजपा कितनी सुरक्षित?

    नीतीश कुमार के भाजपा गठबंधन में वापस लौटने के बाद आमतौर पर माना जाता है कि भाजपा के लिए बिहार में2019 रीपिट होगा। ऐसा सोचना इसलिए है क्योंकि पिछले दो लोकसभा चुनावों से भाजपा ज्यादातर सीटों पर बड़े अंतर से जीत रही है। वह 2014 में बिना नीतीश कुमार के लड़ी थी तब23 सीटों पर जीती थी और 2019 में नीतीश के साथ 17 सीटों पर लड़ी तो सभी 17 सीटें जीती। इनमें से भी ज्यादातर सीटों पर जीत का अंतर 10प्रतिशत से ऊपर रहा। भाजपा की जीती हुई 17 सीटों में से सिर्फ दो ही सीट ऐसी है, जिन्हे...

  • झारखंड में पिछड़ा रिकॉर्ड दोहराना मुश्किल

    बिहार की तरह ही झारखंड में भी भाजपा के लिए पिछला प्रदर्शन दोहराना मुश्किल दिख रहा है। पिछली बार भाजपा ने राज्य की 14 में से 11 सीटें जीती थी। एक सीट उसकी सहयोगी पार्टी आजसू ने जीती थी। इस बार भी गिरिडीह सीट पर आजसू चुनाव लड़ रही है और बाकी 13 सीटों पर भाजपा। पिछली बार दो सीटें, सिंहभूम और राजमहल विपक्षी गठबंधन ने जीती थी। सिंहभूम सीट जीतने वाली गीता कोड़ा इस बार भाजपा की टिकट पर लड़ रही हैं। सो, भाजपा को अपनी 12 और आजसू की एक सीट बचानी है। राज्य में चौथे चरण से...

  • मोदी के भाषणों से जाहिर बढ़ता मुकाबला!

    इस सप्ताह दिल्ली में झूठे एलार्म से पैनिक बना तो मोदी अपने भाषणों में पाकिस्तान को ले आए। उन्होने राहुल गांधी के साथ पाकिस्तान को जोड़ दिया। मतलब महिलाओं में मंगलसूत्र छीने जाने का डर बनाते-बनाते नरेंद्र मोदी ने आंतक और पाकिस्तान का राग अपनाया है तो यह निश्चित ही गिरते ग्राफ पर पैनिक है। इसके मायने को क्या अनुमान टेबल में दर्शाए?  जरूरी नहीं है। इसलिए क्योंकि लोगों की बेरूखी भी बोलते हुए है। चुनाव आयोग के मतदान अनुमान भले बढ़े हो लेकिन 2019 जैसा मतदान फिर भी नहीं है। हर नैरेटिव फेल हो रहा है। उलटे हर दिन...

  • उम्मीद रखें, समय आ रहा!

    यों रावण ने भी राम को थका दिया था। वह अजय भाग्य जो पाए हुए था। लेकिन समय के आगे भला अहंकार कितना दीर्घायु होगा? इस सत्य को मैंने बतौर पत्रकार, 12 प्रधानमंत्रियों के आने-जाने के अनुभवों में बारीकी से बूझा है। इसलिए न तो समय पर अविश्वास करना चाहिए और न उम्मीद छोड़नी चाहिए। आज नहीं तो कल, यह नहीं तो वह, और यदि कोई नहीं तब भी परिवर्तन में ही अवसर। इसलिए मैं राष्ट्र राज्य के हर चुनाव के समय नई उम्मीद में (शुरुआत जनता पार्टी की मोरारजी सरकार से) रहा और बार-बार निराशा के बावजूद मैंने इस...

  • एनडीए 257 पर या 400 पार?

    वैसे अब खुद नरेंद्र मोदी ने 400 सीटों की बात करना बंद कर दियाहै। दूसरे चरण के मतदान से पहले की जनसभाओं में एक में भी उन्होने नारा नहीं लगवाया- अबकी बार चार सौ पार। जबकि पहले चरण में राजस्थान के उस चुरू शहर की जनसभा में भी नारा लगवाया था जहां लोग कांटे की टक्कर मान रहे थे। इसलिए इस दफा टेबल में भाजपा/एनडीए के कॉलम को चार सौ सीटों की हवाबाजी केआंकड़ों की जगल जमीनी रिपोर्टिंगके अनुमानों मेंबदल रहा हूं। इस बार कांटे के मुकाबले के सिनेरियो में भाजपा-एनडीए की संभावी सीटों का अनुमान है। भाजपा का तीन...

  • त्रिशंकु लोकसभा के आसार?

    हां, मुझे न चार सौ पार की सुनामी दिख रही है और न किसी एक पार्टी का चार जून को बहुमत होता लगता है। निश्चित ही मोदी के समय यह अनहोनी बात है। मगर ऐसी संभावना खुद नरेंद्र मोदी व अमित शाह अपने हाव-भाव, भाषणों से बतला रहे हैं। नरेंद्र मोदी घबराए हुए हैं। तभी प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक में रख दिया है। वे मतदान के पहले चरण तक अति आत्मविश्वास में बहुत हांक रहे थे। लेकिन 19 अप्रैल को राजस्थान, यूपी, मध्य प्रदेश, बिहार, छतीसगढ़ आदि में कम मतदान का उन्हें अर्थ समझ आया। यह भी पढ़ें:...

  • दूसरा चरण विपक्ष की वापसी का?

    वैसे तो लोकसभा का चुनाव सात चरणों में है, लेकिन जिस तरह से पहले चरण के बाद चुनाव प्रचार का तरीका बदला और काफी हद तक धारणा बदली उसी तरह से दूसरे चरण के मतदान के बाद चुनाव का पूरा नैरेटिव बदल सकता है। पहला चरण विपक्ष के कुछ खास हासिल करने का नहीं था क्योंकि उसमें एनडीए और विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के बीच फिफ्टी-फिफ्टी का मुकाबला था। सीटे बराबरी में बंटी हुई थीं। लेकिन दूसरे चरण में मुकाबला वहां है,जहां पिछली बार भाजपा की छप्पर फाड़ जीत थी। अगर इन सीटों पर, चुनाव के राज्यों में विपक्षी गठबंधन भाजपा...

  • तब बंगाल, यूपी, राजस्थान और अब?

    शुक्रवार को पश्चिम बंगाल की जिन तीन सीटों पर मतदान हुआ वे तीनों सीटें भाजपा की हैं। दूसरे चरण में चुनाव उत्तरी बंगाल से निकल कर मैदानी इलाके में पहुंचा है। उत्तरी बंगाल की एक दार्जिलिंग सीट है और दो अन्य सीटें बालुरघाट और रायगंज हैं। 2019 में तीनों सीटें भाजपा जीत गई थी लेकिन 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी ने इस इलाके में अपने को मजबूत किया है। यहां जम कर मतदान भी हुआ है। ममता अपना वर्चस्व वापस हासिल करना चाहती हैं। यहां भी भाजपा को एक या दो सीट का नुकसान होता है तो...

  • भाजपा फंसी!

    भाजपा फंस गई है। तय मानें 400 पार की सुनामी तो दूर भाजपा की आंधी और हवा भी नहीं है। यदि पहले चरण की 102 सीटों पर हुए मतदान के प्रतिशत व भाजपा के अभेद प्रदेशों में हुई वोटिंग तथा जातीय समीकरणों की फीडबैक को पूरे चुनाव का सैंपल आधार मानें तो लोगों में भाजपा को जिताने का वह जोश कतई नहीं है, जिससे बड़ी जीत की हवा समझ आए। उलटे उन सीटों पर भाजपा को हराने की मौन हलचल है, जहां बड़ी संख्या में भाजपा विरोधी परंपरागत वोट हैं। इसलिए 400 पार की सुनामी तो दूर सामान्य बहुमत के...

  • चुनाव में सस्पेंस क्या?

    सभी बता रहे हैं चुनाव बिना माहौल के है। न रोमांच है, न उत्साह है, न रंग है, न शोर है और न परिणामों को ले कर सवाल है। तब भला चुनाव 2024 का सस्पेंस क्या? हालांकि नरेंद्र मोदी का विशाल ऐलान है कि चार जून को उन्हें 400 पार सीटें मिलेंगी। मेरे हिसाब से नरेंद्र मोदी का यह विश्वास आत्मघाती है क्योंकि मेरा मानना है कि तीन सौ पार हो जाए तो बड़ी बात। दूसरी बात, चार सौ पार का आकंड़ा प्रधानमंत्री पद, पार्टी और भारत तीनों के लिए अपशुकनी है। याद करें राजीव गांधी को। Lok Sabha election...

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