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20-07-2025 Vol 19

गले में फंसी हड्डी

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थरूर अब गले की हड्डी बन गए हैं। इस वक्त उनके खिलाफ कार्रवाई भाजपा को कांग्रेस पर ‘भारत विरोधी’ होने का इल्जाम लगाने का मौका देगी। लेकिन पार्टी कोई एक्शन नहीं लेती है, तो उसकी सियासत का केंद्रीय बिंदु जख्मी होता रहेगा।

शशि थरूर ऑपरेशन सिंदूर के बहुत पहले से कांग्रेस के लिए असहज स्थितियां पैदा कर रहे थे। कांग्रेस की पूरी राजनीति नरेंद्र मोदी की आलोचना पर केंद्रित है, जबकि थरूर पिछले कई महीनों से मोदी का गुणगान कर रहे हैं। एक मौके पर तो उन्होंने यहां तक कहा कि मोदी जैसे नेता का प्रधानमंत्री होना भारत का सौभाग्य है। संदर्भ यूक्रेन युद्ध का था।

थरूर ने कहा कि उस युद्ध में खुद उन्होंने (और उनकी पार्टी ने भी) सरकार की तटस्थता की आलोचना की थी। मगर डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अंतरराष्ट्रीय सूरत में जो बदलाव आए, उससे मोदी दूरदर्शी नेता साबित हुए हैं। ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के बाद तो थरूर ने मोदी सरकार की इतनी पुरजोर वकालत की है कि भाजपा समर्थक समूहों में उन्हें विदेश मंत्री बना देने का सुझाव दिया जाने लगा है।

थरूर कांग्रेस के लिए संकट क्यों बने

ये सब काफी समय तक सहने के बाद अब आखिरकार ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व का सब्र चूक रहा है। गुरुवार को पार्टी नेता उदित राज ने थरूर को ‘भाजपा का सुपर प्रवक्ता’ बताया, तो उनके इस बयान को पार्टी के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने भी सोशल मीडिया पर शेयर किया।

उन्होंने थरूर के इस बयान का भी प्रतिवाद किया कि 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान पहली बार भारत ने वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार करने की हिम्मत दिखाई। मगर मुद्दा यह है कि अगर कोई नेता पार्टी के लिए लगातार इतनी मुश्किलें खड़ी कर रहा हो, तो कांग्रेस नेतृत्व उसे बर्दाश्त क्यों करता है?

थरूर तो अब गले की हड्डी बन गए हैं। इस वक्त उनके खिलाफ कार्रवाई भाजपा को कांग्रेस पर ‘भारत विरोधी’ होने का इल्जाम लगाने का मौका देगी। लेकिन पार्टी कोई एक्शन नहीं लेती है, तो उसकी सियासत का केंद्रीय बिंदु जख्मी होता रहेगा। कांग्रेस के लिए आत्म-निरीक्षण का विषय है कि उसके लिए ऐसी स्थिति क्यों पैदा होती है? क्या इसका कारण यह है कि कांग्रेस के पास मोदी विरोध के अलावा कोई वैचारिक एजेंडा और ठोस कार्यक्रम नहीं बचा है? थरूर जितने समय पार्टी में बने रहे, ऐसे सवाल और अधिक धार हासिल करते जाएंगे।

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Pic Credit: ANI

NI Editorial

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