nayaindia Congress कर्नाटक में नफरत हारी है- सारे देश में नहीं, कांग्रेस सजग रहे...

कर्नाटक में नफरत हारी है- सारे देश में नहीं, कांग्रेस सजग रहे…

भोपाल। मोदी जी और बीजेपी के भारी भरकम चुनाव प्रचार और नफरत के बोल के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की पराजय भी मोदी और शाह की जोड़ी को यह नहीं सीखा पाई है कि भय और आतंक से लोगों के मन को नहीं जीता जाता है। अपनी विजय पर दूसरों को नीचा दिखाने और स्वयं को महाबली बताने का स्वर आज दक्षिण के द्वार से पराजित हो कर निकली पार्टी ने अब मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों का प्रचार करने के लिए तीस दिनी कार्यक्रम की घोषणा करके अपने “काडर” को व्यस्त रखने की जुगत निकाली है।

वैसे तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमेशा दावा करते हैं कि उन्हें मीडिया ने नहीं बनाया है। परंतु आज जिस प्रकार चैनल दिखते और सुनते है उसमे सरकार की विज्ञापन वाली उपलब्धि ही होती है। सोशल मीडिया पर अभी भी देश को दुनिया के सामने अव्वल बताने के दावे किए जा रहे हैं। मोदी जी पहले भी जन सामान्य के सवालों और समस्याओं को कभी भी अपने मन की बात में स्थान नहीं देते थे। वे मन की बात से किसी व्यक्ति की उपलब्धि और अपनी सरकार की घोषणाओं को ही देश को सुनते रहे हैं। अब देश उनकी 100 संबोधनों के बाद शायद कुछ राहत पाये। जिस जबर्दस्ती से बीजेपी शासित राज्यों में क्षेत्रों को इस प्रसारण को अनिवार्य रूप से देखने –सुनने को बाध्य किया गया वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन ही हैं।

कर्नाटक के चुनाव प्रचार में जिस शाही अंदाज़ से मोदी जी ने राइलिया की और भाषण दिया वह चुनाव प्रचार में निषेध विषयों और कथन की स्टाइल का नमूना है। जिस प्रकार उन्होंने बजरंगबली का नाम लेकर बट्टन दबाने की अपील की वह दिल्ली में विधानसभा चुनावों में अमित शाह की अपील जैसा ही था –जिसमे उन्होंने कहा था बटन दबाओ जिससे कि शाहीन बाग तक आवाज़ जाये इस प्रकार के नफरती भाषणों से वोट तो नहीं मिले परंतु नफरत का माहौल जरूर गरम हुआ ! परंतु शायद वह कहावत कि ना सुधरेंगे हम ना बदलेंगे हम की तर्ज पर ही उन्होंने कर्नाटक में भी किया , परंतु वे भूल गए कि इन्हीं कर्मो से बीजेपी दिल्ली विधानसभा चुनाव भी पराजित हुई थी !

राहुल गांधी ने कर्नाटक विजय पर एक ही टिप्पणी की थी अब कर्नाटक में भी मोहब्बत की दुकान खुल गयी है। इस बयान को आशावादी और नैतिक ही कहा जाएगा। परंतु नफरत की पाठशाला के लोगों को तो समाज को बांटने और हिन्दू – मुस्लिम करने का ही उद्देश्य है। कर्नाटक चुनाव में मुस्लिम मतों के एकजुट हो कर काँग्रेस का समर्थन करने को भक्त लोग हिन्दू विरोधी एजेंडा ही बता रहे हैं। हालांकि चुनावी राजनीति में अब भगवा मुख्यमंत्री आदित्यनाथ भी मुसलमानों को ला रहे हैं – रामपुर की स्वर सीट से बीजेपी के मुस्लिम उम्मीदवार की जीत को भगवाधारी मुख्यमंत्री भी पचा रहे हैं। अन्यथा उनकी निगाहों में मुसलमान माफिया और गुंडा ही होता हैं।

कर्नाटक में बोम्मई सरकार पर 40 परसेंट का आरोप कांग्रेस को सिद्ध करना होगा – लोकसभा चुनावों के लिए बोम्मई सरकार में सरकारी भर्ती और निर्माण कार्यो में मंत्रियों और अधिकारियों द्वारा चालीस प्रतिशत कमीशन लिए जाने का आरोप, यूं तो उनके एक मंत्री द्वारा इस्तीफा दिये जाने से ही सिद्ध लगता हैं। परंतु पुलिस में सब इंस्पेक्टरों और शिक्षा विभाग में अध्यापकों की भर्ती में रिश्वतख़ोरी के आरोप मंत्रियों तक पर लगे थे। अब काँग्रेस को भ्रष्टाचारके खिलाफ अपनी पार्टी के काडार की सहायता से राज्यव्यापी मुहिम चलानी होगी, वरना जिस प्रकार मोदी जी का 15 लाख देने का वादा आज झूठ की मिसाल या जुमला बन गया है उसी प्रकार चालीस परसेंट की रिश्वतख़ोरी भी मज़ाक बन के रह जाएगी।

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