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मुहम्मद की जीवनी इस्लाम की कुंजी

जानने के लिए इब्न इशाक का सीरते रसूल अल्लाह’‌ (अंग्रेजी अनुवाद: द लाइफ ऑफ मुहम्मद‘, कराचीः ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) सर्वोत्तम ग्रंथ है। वह घटनाओं से भरी हुई रोचक कथा है। मुहम्मद का सबसे प्रिय काम जिहाद था। हदीस (बुखारी, 9-90-332) के अनुसार, यदि उन का बस चलता तो वे तमाम जिहादियों को इकट्ठे जिहाद लड़ने ले जाते। उन के शब्दों में, “यह बड़ा सुखद होगा कि अल्लाह के लिए शहीद हो जाएं, फिर जीवित उठ खड़े हों, और बार-बार शहीद हों।

मुहम्मद से मुहब्बत?  पहले उन्हें जानें  (1)

क्रिश्चियन चिंतक सेंट ऑगस्टाइन ने कहा है: ‘कोई उसे प्रेम नहीं कर सकता जिसे वह नहीं जानता।’ यह न केवल अपने सहकर्मी, बल्कि ऐतिहासिक हस्तियों के लिए भी सच है। आखिर जिस ने तुलसीदास या जेन ऑस्टिन को नहीं पढ़ा, वह उन से कैसे प्रेम कर सकता है? अथवा, मुस्तफा कमाल या माओ जेदोंग के बारे में न जानने वाला उन से प्रेम या दुराव, कुछ नहीं रख सकता। चाहे भ्रमित भले बना रहे।

सो, मुहम्मद से भी मुहब्बत या दूर से सलाम, उन्हें जानकर ही संभव है।‌ वरना उन्हें चाहने या न चाहने, दोनों दावे अनर्गल रहेंगे। मुहम्मद को जाने बिना उन से मुहब्बत, या दुराव, दोनों अंधविश्वास है।

यहाँ अच्छी बात यह है कि दुनिया की किसी भी ऐतिहासिक हस्ती की तुलना में मुहम्मद के बारे में सब से अधिक विवरण उपलब्ध हैं। उन के जीवन, स्वभाव, विचार, पसंद-नापसंद, खास रुचियाँ, तरह-तरह के लोगों पर उन की और उन पर लोगों की टिप्पणियाँ, और‌ उन के द्वारा किए गये हमले, जीत, ईनाम, सजा, निर्देश, आदि — सब के विवरण मुहम्मद की जीवनी, कुरान (मुहम्मद को हुए इलहाम) और हदीस (मुहम्मद की बातें) — इन तीनों स्त्रोतों से मिल जाते हैं।

वह सब जानने के लिए इब्न इशाक का ‘सीरते रसूल अल्लाह’‌ (अंग्रेजी अनुवाद: ‘द लाइफ ऑफ मुहम्मद’, कराचीः ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस) सर्वोत्तम ग्रंथ है। वह घटनाओं से भरी हुई रोचक कथा है। दुनिया का कोई ईमाम, आलिम, या प्रोफेसर उस से अधिक जानकारी नहीं दे सकता! लगभग 1300 वर्ष पहले लिखा गया यह ग्रंथ न केवल सर्व-मान्य है, बल्कि मुसलमानों के बीच इस की हस्ती पवित्र पुस्तक की है — कुरान की ही तरह। जैसे क्रिश्चियनों के लिए न्यू टेस्टामेंट का ‘गोस्पेल’, वैसे ही मुसलमानों के लिए ‘सीरा’ यानी मुहम्मद की जीवनी है।

इस का विशेष कारण है। इस्लाम में मुहम्मद न केवल प्रोफेट हैं, बल्कि जीवन जीने का सर्वोत्तम नमूना भी। मुसलमान ही नहीं, पूरी मानवता के लिए (कुरान, 34:28, 7:158, 33:21)। यह इस्लाम का दावा है। अतः मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के लिए भी मुहम्मद को जानना आवश्यक है। इस की गंभीरता स्वयं मुहम्मद के कथन से भी स्पष्ट होती है।‌

उन्होंने अपनी पाँच विशेषताएं बताई थीं। यह सब से प्रमाणिक हदीस संग्रह ‘सहीह बुखारी’ (1-7-301) में दर्ज है। मुहम्मद ने कहा था —  ”मुझे पाँच चीजें मिली हैं जो पहले किसी और को नहीं मिली थी: 1. अल्लाह ने आतंक द्वारा मुझे जीत दिलाई, मेरे दुश्मनों को एक महीने की यात्रा की दूरी पर आतंकित करके। 2. सारी दुनिया मेरे लिए और मेरे अनुयायियों के लिए बनाई। 3. लड़ाई में लूटा गया माल मेरे लिए जायज बनाया, जो कि मुझसे पहले किसी और के लिए जायज नहीं था। 4. अखीरत के दिन मुझे (अल्लाह के सामने) दूसरों के लिए बोलने का अधिकार दिया। 5. अब तक हरेक प्रोफेट केवल अपने राष्ट्र के लिए हुआ करता था, पर मुझे सारी मानवजाति का प्रोफेट बनाकर भेजा गया है।”

इस दावे के मद्देनजर, ‘सारी मानवजाति’ को मुहम्मद को सही-सही जानना जरूरी है! वरना वह चकित होती रहेगी, मुसीबत में फँसती रहेगी, और नासमझी में तरह-तरह की बातें और काम करती रहेगी। जिस से किसी का भला न होगा। सो मुहम्मद के बारे में जानना, पूरी मानवजाति का अधिकार भी है! यह हिन्दू नेताओं को खास तौर से समझना चाहिए, जो यह अधिकार प्रतिबंधित करने को उत्साहित रहते हैं।

जबकि मुहम्मद की जीवनी ही इस्लाम समझने की कुंजी है। सारी दुनिया में मुस्लिम नेताओं का व्यवहार लगभग एक-सा दिखने का रहस्य उसी में है। इस्लाम मुसलमानों से अपेक्षा करता है कि वे हर चीज में मुहम्मद का अनुकरण करें। कुरान में कुल 89 आयतें यह ताकीद करती हैं। शरीयत, यानी इस्लामी ‘कानून’ भी उसी से बना है।

सो, मुसलमान वह नहीं जो अल्लाह को मानता और श्रद्धा रखता है — बल्कि वह है जो उसी तरह मानता और श्रद्धा करता है जैसा मुहम्मद करते थे! वरना अल्लाह की पूजा तो अरब में मुहम्मद के पहले सदियों से हो रही थी। पर इस्लाम का ताना-बाना मुहम्मद ने रचा। इस्लाम का लक्ष्य (सारी दुनिया को इस्लामी बनाना) और तरीका (जिहाद) निर्धारित किया। मुहम्मद की जीवनी और मुस्लिम नेताओं, संगठनों , संस्थाओं के क्रियाकलाप दिखाते हैं कि वे मुहम्मद का अनुकरण करते रहे हैं। यही दुनिया में मुसलमानों की अब तक की राजनीतिक सफलता का रहस्य भी है। इस्लामी स्टेट के शब्दों में ‘प्रोफेट मेथडोलॉजी’ ही उन की ताकत है।

इसीलिए जो इस्लाम को समझने के लिए कुरान पढ़ने की कोशिश करते हैं, वे विफल रहते हैं। कुरान समझने में होने वाली उलझन को उस की ‘गहनता’ समझ लिया जाता है। कुछ हिन्दू तो उस में  ”मात्र रूहानी ज्ञान” मान लेते हैं  ”लगभग वही जो हमारे वेदों, संहिताओं में है”। ऐसा भयानक भ्रम फैलाने में हिन्दू नेताओं की अज्ञान भरी लफ्फाजी का भारी योगदान है जो ‘मुहम्मद के बताए मार्ग पर चलने’ के उपदेश देते रहते हैं। यानी, अपने ही विनाश का आह्वान! वे इस्लामी मूल किताबों को उलट कर भी नहीं देखते। गाँधीजी की तरह इस की ‘जरूरत ही नहीं’ समझते! फलत: इस्लामी राजनीति, ‘प्रोफेट मेथडोलॉजी’ के शिकार होते रहते हैं।

पर कुरान न समझ पाने का असल कारण है कि बिना मुहम्मद की जीवनी जाने कुरान स्पष्ट नहीं हो सकती। उस की सारी बातें पूरी तरह मुहम्मद के सामने आने वाली घटनाओं, सवालों, परिस्थितियों के संदर्भ में ही है।

अतः मुहम्मद की जीवनी न केवल अनिवार्य बल्कि इस्लाम समझने का सरल उपाय भी है! यह रोचक एक जीवन-कथा है। इस से एक और दृष्टि मिलती है, कि किसी नए समाज में इस्लाम कैसे प्रवेश करता क्रमशः बढ़ता है। मुहम्मद की जीवनी दिखाती है कि इस्लाम की शुरुआत बिना किसी अनोखेपन से हुई थी। मानो कुछ नया नहीं हुआ। सब कुछ सहज, अन्य विचारों जैसा ही एक और। लगभग मधुरता से। अपने विकास के प्रारंभिक चरण में इस्लाम को क्रिश्चियनिटी से अलग देख सकने में भी कठिनाई होती है।

लेकिन जैसे ही इस्लाम ने शक्ति एकत्र की (अनुयायियों की संख्या बढ़ी), उस ने अपनी माँगे रख कर आतिथेय समाज पर दबाव डालना शुरू कर दिया। फिर यह माँगे स्थानीय संस्कृति पर निर्ममता से, निरंतर, अविराम आती रहीं। इस दावे से कि इस्लाम सही है और आतिथेय संस्कृति गलत। हर बात में इस्लाम की माँगें त्रुटिहीन है और आतिथेय संस्कृति को हर हाल में उसे मानना होगा!

फिर, जब इस्लाम और शक्ति एकत्र कर लेता है तब हिंसा शुरू होती है। पहले यह केवल शाब्दिक होती है, फिर भौतिक रूप भी लेती है। हर तरह का रूप। निर्मम, निस्संकोच, निरपवाद। यह माँग-दबाव-शिकायत और हिंसा का क्रम तब तक नहीं रुकता, जब तक आतिथेय समाज पूरा इस्लामी नहीं हो जाता। यह क्रम व तरीका प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी में ही मिलता है। उन्होंने न केवल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों, बल्कि अदद बौद्धिक आलोचकों तक का चुन-चुन कर खात्मा करवाया। चाहे वह सौ वर्षीय बूढ़ा कवि अबू अफाक हो, या नवजात शिशु की सोई हुई माँ कवियित्री अस्मा बिन मरवान!

मुहम्मद का सबसे प्रिय काम जिहाद था। हदीस (बुखारी, 9-90-332) के अनुसार, यदि उन का बस चलता तो वे तमाम जिहादियों को इकट्ठे जिहाद लड़ने ले जाते। उन के शब्दों में, “यह बड़ा सुखद होगा कि अल्लाह के लिए शहीद हो जाएं, फिर जीवित उठ खड़े हों, और बार-बार शहीद हों।”

इसीलिए, सीरा पेज-दर-पेज हिंसा के वर्णनों से भरी है। हिंसा का पहला रूप शाब्दिक है। मुहम्मद को पहला इलहाम होने के 12 पेज बाद ही पहला झगड़ा हो जाता है, और एक मुसलमान एक काफिर (गैर-मुस्लिम) का खून बहाता है। उस के बाद से लगातार मुहम्मद बहस, हुज्जत करते हैं, धमकी देते हैं, कोसते हैं, प्रचार करते हैं, भर्त्सना करते हैं। संपूर्ण जीवनी की लगभग 98% सामग्री में काफिर के विरुद्ध शाब्दिक हिंसा है। दूसरे शब्दों में, 98%  सामग्री गैर-मुस्लिमों की पीड़ा से भरी है। शान्ति केवल 2% हिस्से में है।

जीवनी में प्रोफेट बन जाने के 281 पेज के बाद जिहाद शुरू हो जाता है, और अगले 409 पेज तक नहीं रुकता। इस तरह, लगभग 72% जीवनी में किसी न किसी प्रकार का जिहाद मिलता है। काफिर के विरुद्ध शाब्दिक प्रहार, हत्याओं, यंत्रणाओं, लूट, स्त्रियों पर बलात्, छल, और छिप कर की गई हत्याओं (एसेसिनेशन) के साथ भी चलता रहता है।

एक गणितज्ञ ने हिसाब लगाया है कि अगर प्रोफेट मुहम्मद की जीवनी पर दो घंटे की फिल्म बनाई जाए, तो यह कुछ इस प्रकार की होगी: –पहला दृश्य जब मुहम्मद को पहला इलहाम होता है। दो मिनट के अंदर पहली लड़ाई हो जाती है। उस के बाद से षड्यंत्र, चिल्लाना, बहस करना, धमकी देना, और प्रचार करना। यहाँ तक कि जब मुहम्मद के घर या शिविर का दृश्य है, तब भी पृष्ठभूमि में काफिर के विरुद्ध लड़ाई ही है। 34 मिनट फिल्म चल चुकने पर पहली हत्या होती है और ये हत्याएं अगले 90 मिनट तक चलती रहती हैं। हथियारबंद हमले, एसेसिनेशन, षड्यंत्र, जासूसी, मृत्युदंड, यंत्रणा, बलात्कार, लड़ाई, आदि आदि। काफिर हार जाते और मरते हैं। मुहम्मद की मृत्यु होती है। इस्लाम जीतता है। फिल्म खत्म।

सो, याद रहे, मुहम्मद की जीवनी केवल ऐतिहासिक विवरण नहीं है, बल्कि इस्लाम का एक पवित्र ग्रंथ भी है जिस में स्थाई अनुकरणीय मॉडल के रूप में प्रोफेट का वर्णन है। छोटी से छोटी बात में भी मुसलमानों से मुहम्मद का अनुकरण करने का आहवान किया गया है। वस्तुत: इस्लाम के तीनों मूल ग्रंथ — कुरान (मुहम्मद की बताई आयतें), हदीस (मुहम्मद के कथन, बातचीत, आदि), और सीरा (मुहम्मद की जीवनी) — अंततः मुहम्मद पर ही आधारित और प्रेरित हैं। मुहम्मद ही इस्लाम हैं। इसीलिए, हाल तक इस्लाम को मुहम्मदवाद (मोहेम्मेडनिज्म) कहा जाता था, जो इस का सही नाम है। (जारी)

By शंकर शरण

हिन्दी लेखक और स्तंभकार। राजनीति शास्त्र प्रोफेसर। कई पुस्तकें प्रकाशित, जिन में कुछ महत्वपूर्ण हैं: 'भारत पर कार्ल मार्क्स और मार्क्सवादी इतिहासलेखन', 'गाँधी अहिंसा और राजनीति', 'इस्लाम और कम्युनिज्म: तीन चेतावनियाँ', और 'संघ परिवार की राजनीति: एक हिन्दू आलोचना'।

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