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कांग्रेस के संगठन साल में भी संगठन जीरो!

गजब की नकल कर रही है कांग्रेस बीजेपी की। बीजेपी ने जब नया आफिस बनाया तो उसने भी पहले पत्रकारों की एन्ट्री सीमित कर रखी थी। मगर जब कांग्रेस ने उसकी नकल की तो बीजेपी ने एन्ट्री खोल दी। मगर कांग्रेस पता नहीं क्या छुपा रही है, है क्या उसके पास छुपाने के लिए कि वह उस नए मुख्यालय में किसी को आने ही नहीं देती। पत्रकार प्रेस कान्फ्रेंस में जाता है। और उस हाल से सीधा वापस। यह जरूर संगठन में नया काम हुआ है। प्रियंका को भी कोई जिम्मेदारी नहीं!

कांग्रेस ने यह साल संगठन का घोषित किया था। साल जा रहा है क्या संगठन बन गया? कांग्रेस में जिसे करिश्माई नेता कहा जाता था उन प्रियंका गांधी को क्या कोई काम मिला?

बेलगावी कर्नाटक में दिसंबर 2024 के आखिरी दिनों में कांग्रेस ने अपनी सर्वोच्च नीति निर्धारक ईकाई सीडब्ल्यूसी की मीटिंग की थी। वहां जो सबसे मुख्य बात कही गई थी वह यह कि कांग्रेस 2025 को संगठन का साल बनाएगी। कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने कहा था कि 2025 में बिहार चुनाव तक कोई चुनाव नहीं है। बिहार में साल के आखिर में चुनाव होगा। हमारे पास काफी समय है। और यह समय हम संगठन बनाने और उसे मजबूत करने में लगाएंगे।

साल का काफी समय खत्म हो गया। बिहार चुनाव आ गया। राहुल एक यात्रा वहां कर आए हैं। और अगले हफ्ते 24 सितंबर बुधवार को वहां कांग्रेस सीडब्ल्यूसी की मीटिंग करने फिर जा रही है। पटना में होने वाली बिहार केन्द्रित इस मीटिंग में कांग्रेस के सभी बड़े नेता शामिल होंगे। मतलब बिहार चुनाव का ऐलान। चुनाव संभवत: नवबंर में करवा दिए जाएंगे। 20 अक्टूबर को दीवाली है और उसके बाद 27 अक्टूबर को बिहार का सबसे बड़ा त्यौहार छठ।

चुनाव की तारीखें उसके बाद की होंगी। पिछली बार 2020 में 28 अक्टूबर को पहले चरण का 3 नवंबर को दूसरे चरण का और 7 नंवबर को तीसरे और अंतिम चरण का मतदान कराया गया था। रिजल्ट 10 नवंबर को था।

इस बार भी संभावना है कि चुनाव तीन ही चरणों में होगा। इससे कम भी हो सकता है ज्यादा नहीं क्योंकि 2015 में 5 जब चरणों में चुनाव करवाया गया तो भाजपा हार गई थी। नीतिश से अलग होकर लड़ी थी। नंबर एक पार्टी राजद बनी थी। दूसरे नंबर पर नीतीश थे। तीसरे पर भाजपा। राजद ने नीतीश को मुख्यमंत्री बनाया था। फैसले वापस नहीं हो सकते हैं।

लेकिन अगर इस समय राजद अपना मुख्यमंत्री बना लेती तो नीतीश की राजनीति वहीं खत्म हो जाती। लेकिन नीतीश की राजनीति का समय 2025 तक लिखा था इसलिए इस बार कोई जीते नीतीश के मुख्यमंत्री पद का यह फुल स्टाप माना जा रहा है।

तो देखा आपने बात कांग्रेस के इस दावे से शुरू हुई थी कि यह साल 25 संगठन का साल बनाएंगे और बात आखिर बिहार चुनाव पर आ गई। तो यह लिखने के मामले में भी इसलिए हुआ कांग्रेस भी जिस चुनाव से पहले सब करने का दावा कर रही थी वह बिहार चुनाव पर ही आकर रुक गई।

संगठन में क्या हुआ?  यह बताने से पहले हम आपको यह बताते हैं कि संगठन से क्या होता है। बिहार की बात आई हो तो बिहार का ही उदाहरण देकर। एक मित्र ने बताया कि गांव में एक पैसे वाले व्यक्ति के पास एक बुजुर्ग महिला आई और बोली मैथिली में भारत की सबसे मीठी जुबानों में से एक कि आप भी बुढ़े हो गए मैं भी मगर यह कर्जा नहीं हुआ था। इंदिरा जी ने इसे केवल बुढ़ा ही नहीं किया बल्कि मार भी दिया!

अब इसका मतलब समझे आप? थोड़ा सा समयकाल बता देते हैं शायद समझ में आ जाए। यह 1975 की बात है। पुराने लोगों की समझ में कुछ आया होगा। इन्दिरा गांधी ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए निजी साहूकारों द्वारा गरीबों को दिए हुए सारे कर्जें माफ कर दिए थे। ब्याज, चक्रवृद्धि ब्याज ले लेकर साहूकारों ने मूल से जाने कितने गुना ज्यादा पैसा वसूल कर लिया था मगर कर्जा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था। तमाम लोगों की तो कई पीढ़ियों से ब्याज चुकाया जा रहा था मगर कर्जा जैसे का तैसा था।

उस बुजुर्ग औरत ने कहा कि तुम्हारा कर्जा मर गया। अब एक खास बात कि उन दिनों तो गांव में खबर पहुंचने के कोई साधन नहीं होते थे। उस बुजुर्ग अनपढ़ वंचित वर्ग से आने वाली महिला के पास यह खबर पहुंची कैसे?

कांग्रेस के कार्यकर्ताओं द्वारा। जो हर गांव में थे। यह होता है संगठन का प्रभाव। कार्यकर्ता घर घर जाकर पार्टी का संदेश देता है। आज क्या स्थिति है?

खुद कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने हरियाणा और महाराष्ट्र की हार के बाद हुई दिल्ली की सीडब्ल्यूसी में कहा था कि संगठन ही नहीं है विरोधियों को कैसे हराएं! और उसके बाद अगले महीने ही दिसंबर 2024 में बेलगावी में 2025 को संगठन का साल बनाने की घोषणा की थी।

मगर क्या हुआ? क्या इन सब घोषणाओं के बाद कांग्रेस का संगठन बन गया? फरवरी में इसी साल नए बनाए महासचिवों और इंचार्जों की पहली बैठक बुलाई गई। नए बने कांग्रेस मुख्यालय इन्दिरा भवन में। 7 घंटे बैठक चली। 2024 –25 और पिछले कुछ सालों की सबसे लंबी बैठक। पार्टी अध्यक्ष खरगे और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी दोनों मौजूद थे। मगर बाकी लोगों में कौन थे?

केवल दो जनरल सैकेट्री ही नए बाकी सब वही पुराने। बैठक में कुल 30 जनरल सैकेट्री और स्टेट इन्चार्ज शामिल थे। इनमें से दो जनरल सैकेट्री और 9 इन्चार्ज संगठन का साल बनाने की घोषणा के बाद नए बनाए गए थे। बाकी 19 पुराने। जाने कितने सालों से पदों पर बैठे हैं। और बहुमत उन्हीं का है। समझ लीजिए 11 नए और 19 पुराने। फिर इसके बाद अप्रैल में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ गुजरात अहमदाबाद में। वहां सरदार पटेल को याद करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि वे कहते थे कि बिना संगठन कुछ नहीं हो सकता।

तो साल खत्म। कहां है संगठन? खुद खरगे को अगले महीने अध्यक्ष पद पर तीन साल होने जा रहे हैं। आधे से ज्यादा कार्यकाल खत्म। मगर उन्होंने भी दफ्तर में बैठना शुरू नहीं किया। कांग्रेस के दफ्तर में कोई बैठता ही नहीं। और यहां यह भी सवाल की कांग्रेस का दफ्तर है कौन सा। इन्दिरा जी का हमने उदाहरण दिया। कैसे उनका मैसेज गांव गांव तक पहुंच गया। अब इनके नाम पर नया मुख्यलय तो बना लिया इन्दिरा भवन मगर इन्दिरा जी के काम करने का एक भी तरीका पार्टी नहीं अपना रही। इन्दिरा जी जब दिल्ली में होती थीं तो रोज सुबह जनता और कार्यकर्ताओं से मिलती थीं।

यहां उनके नाम पर बने भवन में जनता तो छोड़िए, कांग्रेस के कार्यकर्ता भी नहीं जा सकते। पत्रकार भी नहीं। अभी किसी को एक मौलिक आइडिया आया है कि जैसे जेल में टोकन देकर मुलाकात करवाई जाती है वैसे ही यहां कुछ पत्रकारों को टोकन दिए जाएंगे।

गजब की नकल कर रही है कांग्रेस बीजेपी की। बीजेपी ने जब नया आफिस बनाया तो उसने भी पहले पत्रकारों की एन्ट्री सीमित कर रखी थी। मगर जब कांग्रेस ने उसकी नकल की तो बीजेपी ने एन्ट्री खोल दी। मगर कांग्रेस पता नहीं क्या छुपा रही है, है क्या उसके पास छुपाने के लिए कि वह उस नए मुख्यालय में किसी को आने ही नहीं देती। पत्रकार प्रेस कान्फ्रेंस में जाता है। और उस हाल से सीधा वापस। चाय पीने अगर केन्टिन में जाना चाहे तो वहां नहीं जा सकता। रोक दिया जाता है। एक पदाधिकारी इसके लिए बना दिया गया है।

यह जरूर संगठन में नया काम हुआ है। बाकी जो मुख्य सवाल है हर कांग्रेसी पूछ रहा है कि प्रियंका को कोई जिम्मेदारी क्यों नहीं? प्रियंका गांधी बिना विभाग की महासचिव हैं। करीब दो साल हो गए हैं। उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है।

पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के हिसाब से सबसे करिश्माई व्यक्तित्व। मगर कोई काम नहीं। राहुल की यात्रा में दिख जाती हैं। संसद सत्र होता है तो वहां। या अपने लोकसभा क्षेत्र वायनाड में। बाकी इतने बड़े तुरुप के पत्ते का कोई इस्तेमाल नहीं।

क्यों? इसका जवाब किसी के पास नहीं। कार्यकर्ता और नेता पूछते हैं। संगठन का साल खतम हो रहा है। मगर संगठन एक जिसकी वजह से काफी चमकदार हो सकता गतिशील उसके लिए कोई जगह नहीं!

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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