nayaindia kisan andolan लोकतंत्र में किसान जैसे दुश्मन सेना!

लोकतंत्र में किसान जैसे दुश्मन सेना!

किसानों के साथ यह कैसा सलूक?  दुश्मन सेनाको रोकने के लिए जैसे राजे-रजवाड़ों के समय किले के बाहर खाइयां खोद दी जाती थी। शहर केदरवाजों पर बड़ी बड़ी कीलें जड़ दी जाती थीं। दीवार पर खौलते हुए तेल कीकड़ाहियां होती थीं। अभी मंगलवार को जब यह लिख रहे हैं तो हरियाणा केशंभू बार्डर पर पुलिस किसानों पर आसूं गैस के गोले दाग रही है। ऊपर आसमानसे ड्रोन से आंसू गैस के गोले फेंके जो रहे हैं। पत्रकारों को करीब 5किलोमीटर दूर रोक दिया गया है।यह क्या दुश्मन से निपटने से कम है?

लोग कहते हैं धर्म का नशा क्या होता है? पाकिस्तान में उन्होंने देखा मगरमतलब यह निकाला कि यह वहीं हो सकता है। मगर आज जब हमारे यहां हो गया तबभी उनकी समझ में पूरी तरह नहीं आ रहा है। जब मार्क्स ने कहा था कि धर्म, अफीम की तरह होता है तब शायद ड्रग्स नहीं बनेथे। अफीम नेचुरल नशा था। पिनक कभी कभी टूटती भी थी। यूरोप में करीब दो सौसाल पहले फ्रांसिसी क्रान्ति के बाद वहां धर्म का नशा टूटने लगा था।पाकिस्तान में अभी इस चुनाव में। जनता वहां जागी। और आर्मी, अमेरिका एवंधार्मिक सत्ताओं की मर्जी के खिलाफ जाकर स्वतंत्र रूप से वोट दिए। जेलमें बंद इमरान के आजाद उम्मीदवारों को बड़ी तादाद में जिता दिया। जनता परधर्म का दबाव कितना कम हो रहा है और इसे वहां के दक्षिणपंथी दल किस तरह

समझ रहे हैं इसकी एक मिसाल है कि धर्म के आधार पर ही राजनीति करने वालीजमाते इस्लामी ने अपने घोषणा पत्र में तीन तलाक खत्म करने का वादा कियाथा। मगर सबसे लेटेस्ट हमारे यहां इसका प्रयोग किया गया। और ड्रग्स के सबसेतेज फार्म में। धर्म के साथ नफरत भी मिला कर उसे जहरीला बना दिया। अब कुछजगह यह धर्म असर करता है और ज्यादातर जगह नफरत। सबके खिलाफ नफरत! जोहमारे साथ नहीं हैं वे सब शत्रु। नष्ट कर देने लायक।

उदाहरण की जरूरत नहीं। किसानों के साथ सलूक हम देख रहे हैं। दुश्मन सेनाको रोकने के लिए जैसे राजे-रजवाड़ों के समय किले के बाहर खाइयां खोद दी जाती थी। शहर केदरवाजों पर बड़ी बड़ी कीलें जड़ दी जाती थीं। दीवार पर खौलते हुए तेल कीकड़ाहियां होती थीं। अभी मंगलवार को जब यह लिख रहे हैं तो हरियाणा के शंभू बार्डर पर पुलिस किसानों पर आसूं गैस के गोले दाग रही है। ऊपर आसमानसे ड्रोन से आंसू गैस के गोले फेंके जो रहे हैं। पत्रकारों को करीब 5किलोमीटर दूर रोक दिया गया है।

यह क्या दुश्मन से निपटने से कम है? जब उसे अन्नदाता कहा जाता था तब भी इस विशेषण से हम ज्यादा सहमत नहीं थे। किसी को भी एक ऊंचा, आकाशीय दर्जादेकर हम उसके मानव के तौर पर दुःख दर्द समझने से बचते हैं। नारी को तुमकेवल श्रद्धा हो। देवी हो कहकर उसके उसके मानवीय अधिकारों से वंचित करतेहैं।

खैर, तो किसान के साथ एक बार फिर शत्रुवत व्यवहार किया जा रहा है। उसेदिल्ली नहीं आने देना है। ट्रेनों की विशेष चेंकिग हो रही है। रात को जोभी किसान जैसा दिखता है उसे बीच स्टेशनों पर उतार लिया जा रहा है। यह कामजाहिर है पुलिस कर रही है। और उसके लिए हर धोती कमीज पहनने वाला किसान हीहै। कर्नाटक एक्सप्रेस से सौ से ज्यादा लोगों को भोपाल में जबर्दस्तीखींच कर उतारा गया। पुलिस पहरे में खुले प्लेटफार्म पर रात भर बिठाए रखागया।

मध्यप्रदेश के जबलपुर में धारा 144 में गिरफ्तार किसान नेताओं को जमानतन देने का एक नया प्रशासनिक तरीका निकाला गया। मजिस्ट्रेट को साइन करनाहोता है। तो वह कुर्सी पर बैठ ही नहीं रहे। वकील पूछ रहे हैं तो जवाब मिलरहा है कि ऊपर से आदेश हैं।

दिल्ली का हर बार्डर सील है। और काहे से? सड़कों पर बड़ी कीलें। सीमेंटके मोटे मोटे बेरिकेट्स। सड़क के दोनों तरफ खाईयां खोदकर पानी भर देना।गांव-गांव माइक द्वारा अनाउंस करना कि जो दिल्ली जाएगा उसका ट्रेक्टर जप्त कर लिया जाएगा। पासपोर्ट केन्सिल हो जाएगा। गिरफ्तारी होगी।

मगर क्यों? दिल्ली जाना अपराध कैसे हो गया? अपनी जायज मांगों के लिएशांतिपूर्ण आन्दोलन तो उस इमरजेन्सी में बंद नहीं हुए थे जिसका जिक्रकरके भाजपा हमेशा कांग्रेस को घेरने की कोशिश करती है। इमरजेन्सी मेंगिरफ्तार लोगों के घरवाले थाने पर जाकर धरने पर बैठते थे। और गिरफ्तारनेता जेल में आन्दोलन करते थे। अनशन करते थे। नारे लगाते थे।

मगर आज कोई पूछने वाला नहीं है। मीडिया एक सवाल नहीं उठा रहा है। उल्टाकिसानों को बदनाम करने की पहले जैसी कोशिश उसने फिर शुरू कर दी। जो दोसाल पहले कर रहा था। न्यायपालिका तो भूल गई की कभी वह सुमोटो ( स्वत: संज्ञान) कार्रवाई करतीथी। आज तो कोई अगर जाता भी है तो सुनवाई नहीं होती। मगर क्या इससे किसान हार जाएंगे। हारे तो वे पहले भी नहीं थे। डेढ़ सालदिल्ली के बार्डर पर बैठे रहे। 750 से ज्यादा लोग मारे गए। मगर उठकर तभीगए जब सरकार ने माफी मांगी। काले कानून वापस लिए।

मगर सवाल यह है कि किसानों से नफरत क्यों? क्या यह नफरत की राजनीति कास्वत: विस्तार है। मशरूम ग्रोथ!  नफरत की राजनीति मुसलमानों के खिलाफशुरू की गई। मगर जैसा कि कहते हैं कि नफरत की आग फिर रूकती नहीं। काबूमें नहीं रहती। तो मुसलमानों से बढ़कर दलित रोहित वेमुला की मौत यादकीजिए, आदिवासी मध्य प्रदेश के सीधी में भाजपा नेता द्वारा उस पर पेशाबकरना, पिछड़ा अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री निवास खाली करवाने के बाद उसेगंगाजल से शुद्ध करवाना, महिला उल्टे महिला पहलवानों को ही मारना,घसीटना, मुकदमे लगाना और आरोपी भाजपा सांसद को बचाना जैसी एक एक ही घटनाहमने लिखी। मगर यह पचासों हैं।

इनके अलावा मजदूरों का अपने गांव सैंकड़ोंमील चलकर पैदल जाना। उन पर लाठियां चलवाना, सैनिकों का खाने पर सवालउठाने पर उल्टा उन्हीं को प्रताड़ित करना, जज लोया की मौत और खुद भाजपामें मुरली मनोहर जोशी जैसे वरिष्ठ नेता को एक कोने में धकेल देना ऐसे नजाने कितने उदाहरण हैं जो बताते हैं कि नफरत बढ़ती चली जाती है। आज यह तोकल वह निशाने पर होता है।

राहुल इसी लिए बार बार मोहब्बत की दुकान की बात करते हैं। वे कहते हैं किडर और नफरत ने भाजपा को अंधा कर दिया है। उसे देश के भविष्य की चिन्तानहीं है। केवल और केवल वोट चाहिए।

यह सच्चाई है। मगर एक ना एक दिन धर्म और नफरत की राजनीति का अंत आता है।अभी ताजा उदाहरण पाकिस्तान का है। वहां तो 75 साल से इसकी खेती हो रहीथी। हमारे यहां तो अभी दस साल ही हुए हैं। जब जनता ने 75 साल की नफरत कीखेती उखाड़ फैंकी तो दस साल की जड़ें तो अभी कमजोर ही हैं।

और यहां हम यह याद दिला दें कि अंग्रेजों के खिलाफ भी शुरूआत किसानआंदोलन से ही हुई थी। नील की खेती के खिलाफ। 1917 में गांधी जी चम्पारणबिहार पहुंचे थे। और फिर इसके बाद फिर वही नेहरू जिन पर सारे आरोप हैं को1921 में अवध किसान आंदोलन में गिरफ्तार कर लिया गया था। इस किसान आंदोलनमें भी साढ़े सात सौ किसान मारे गए थे। अंग्रेजों ने अंधाधुंध गोलियाचलावाई थीं। डेढ़ हजार से ज्यादा घायल हुए थे। इसे छोटा जलियावाला कांडकहा जाता है। यह घटना उसी रायबरेली जिले में हुई थी। जहां अभी 19 फरवरी

को राहुल की यात्रा पहुंचने वाली है। यहीं अखिलेश यादव भी यात्रा मेंशामिल होंगे। अभी भी हर साल मुंशीगंज जिला रायबरेली जहां अंग्रेजों ने 7जनवरी 1921 को गोलियां चलवाईं थी वहां किसान 7 जनवरी को अभी भी इकट्ठाहोकर शहीद किसानों को श्रद्धाजंलि देते हैं।

पता नहीं राहुल की रायबरेली यात्रा में इस जगह को शामिल किया है या नहीं।और जिस सई नदी के किनारे नेहरू को किसानों के बीच आने से रोककर गिरफ्तारकिया गया था उस जगह राहुल के जाने का प्रोग्राम बनाया है या नहीं। अगरप्रोग्राम में शामिल है तो अच्छी बात है और नहीं है तो शामिल किया जानाचाहिए।

राहुल को वहीं से किसानों को संबोधित करना चाहिए।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें