nayaindia Lok Sabha election मोदीजी मुसलमान छोड़ो! हिन्दू भाईयों का तो भला करो !

मोदीजी मुसलमान छोड़ो! हिन्दू भाईयों का तो भला करो !

मोदीजी मुसलमानों से आपको क्या चाहिए बता दो!मगर हिन्दू भाईयों को तो परेशान करना बंद करो। जब से चुनाव शुरू हुए हैंआपने सौ से ज्यादा बार मुसलमान, मुसलमान कर लिया होगा। मगर एक बार भीनौकरी की बात नहीं की। महंगाई की नहीं की।….अब भले संबित पात्रा कहे कि जबान फिसल गई थी। क्यायह उनका जबान फिसलनाकि भगवानजगन्नाथ भी मोदी जी के भक्त हैं। ….वे पहले नरेन्द्र मोदी को देश के बाप भी कह चुके हैं। मगर वह 2017 था मोदी जी केसाथ पात्रा की गुड्डी भी चढ़ रही थी। लेकिन आज अगर उन्हें जबान फिसलने का बहाना बनानापड़ रहा हैं तो मतलब पतंग कट चुकी है।

 मुसलमान सब कुर्बानी देने को तैयार है। ब्रिगेडियर उस्मान से लेकर हवलदारअब्दुल हमीद तक बहुत उदाहरण हैं। मगर वह लिखना या बताना उद्देश्य नहींहै। कहना यह है कि आज मोदी जी रोज मुसलमानों का नाम लेकर कुछ न कुछ कहरहे हैं। वे क्या कह रहे हैं कैसे रोज पलटते हैं यह बताना भी उद्देश्यनहीं है।

कहना सिर्फ यह है कि मुसलमानों से आप क्या चाहते हैं वह एक बार में बतादें। मुसलमान कर देगा। मगर बस हमारे हिन्दू भाईयों को दुख देना बंद कर दें। आप सोचते हैं कि आपने जो मुसलमानों को इतना टाइट करने का भौकाल मचाया हैउससे मुसलमान परेशान हो गया?  नहीं वह उससे परेशान नहीं हुआ वह परेशान हैअपने हिन्दू भाईयों की परेशानी देखकर।

आपने दस साल में नौकरी बंद कर दीं। हालत उसकी खराब हो गई। जवान लड़केउसके ओवर एज हो गए। यह जो आपने तीन दिन पहले अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसीके पास फूलपुर और प्रयागराज में युवाओं का तूफान देखा था वह सब हिन्दूलड़के ही थे। बेरोजगारी से परेशान। अखिलेश यादव और राहुल गांधी को अपनीतकलीफ सुनाने आए थे। क्या अब आपसे मिलने युवा ऐसे उत्साह से आते हैं?

2014 में तब आ रहे थे जब आप दो करोड़ रोजगार हर साल देने का वादा कर रहे थे। मगर जिस दिन से आपने उन्हें पकौड़े तलने को कहा वे निराश हो गए।तो अभी हमने एक कविता पढ़ी।

“ मैंने एक मुसलमान को, जो पल्लेदार था,

कई लोगों के बीच यह कहते हुए सुना –

नहीं भाई साहब हम मुसलमान परेशान बिल्कुल नहीं हैं,

हमें आदत पड़ गई है

परेशान तो हिन्दू भाई हैं,

हम अगर परेशान हैं तो उनकी परेशानी से परेशान हैं! “

नौकरी तो है नहीं। दूसरे काम धंधे भी खत्म हो गए हैं। बाजार बिल्कुल बैठेहुए हैं। सेठ, मुनीम सब परेशान। मंहगाई रोज बढ़ रही है। इतनी कि लोगों नेअब उसके बारे में बात करना भी बंद कर दी। वह कहते है दुख इतना दिया किदुख का अहसास ही खत्म हो गया। “मुश्किलें इतनी पड़ीं मुझ पर कि आसां होगईं।“ मगर यह पड़ी हुई मुश्किलें नहीं हैं डाली हुई हैं।

नौकरी जो परमानेंट होती थी। जिसे करके एक पीढ़ी पहले तक के लोगों ने अपनेबाल बच्चों को पाला वह तो दी नहीं। बल्कि अग्निवीर नाम की नई योजना ले आएजिसमें चार साल बाद रिटायर कर दे रहे हैं। यह डाली हुई मुश्किल है।गांवों में अग्निवीर लड़कों की शादी नहीं हो रही है। कहां पहले सेना केजवान लड़के के लिए लड़की वालों की लाइन लगी होती थी। आज अग्निवीर लड़केवालों के मां बाप लड़की वालों के यहां लाइन लगाए हुए हैं। मोदी जीचमत्कारी तो हैं। चमत्कार कर दिया। उल्टी गंगा बहा दी।

अब लाख कहें संबित पात्रा बात उलटी पड़ने पर कि जबान फिसल गई थी। मगरक्या कोई मानेगा? संबित पात्रा बीजेपी के प्रमुख प्रवक्ता। शब्दों परकुशल नियंत्रण। उनकी जबान फिसल जाना! नहीं उन्होंने यही कहा था कि भगवानजगन्नाथ भी मोदी जी के भक्त हैं। मगर अभी उनका खुद का चुनाव बचा हुआ है।

पुरी में जहां से वे पिछली बार हारे थे इस बार फिर उम्मीदवार हैं। वहां25 जून को छठे चरण में मतदान होना है। खुद उनका राजनीतिक भविष्य तो दांवपर लगा ही हुआ है उड़ीसा में जहां पहली बार मोदी जी मौजूदा मुख्यमंत्रीनवीन पटनायक पर वह सारे आरोप लगाते हुए जो वे किसी पर भी लगा देते हैं।चुनाव लड़ रहे हैं। मोदी जी की भी राजनीतिक साख दांव पर है। वहां अभीलोकसभा और विधानसभा दोनों की आधी से ज्यादा सीटों पर मतदान होना है। छठेऔर सातवें चरण में। 21 में से 12 लोकसभा सीटों पर और 147 में से 84 विधानसभा सीटों पर।

इसलिए पात्रा को कहना पड़ा कि जबान फिसल गई है। नहीं तो वे पहले तोनरेन्द्र मोदी को देश के बाप भी कह चुके हैं। मगर वह 2017 था मोदी जी केसाथ पात्रा की गुड्डी भी चढ़ रही थी। लेकिन आज अगर उन्हें बहाने बनानापड़ रहे हैं तो मतलब पतंग कट चुकी है।

खैर जैसा कि हमने कहा बताना यह भी नहीं है कि खुद मोदी जी ने अपने बारेमें क्या क्या कहा! अभी कहा गंगा मैया की गोद में खड़े होकर कि मुझे पूरायकीन है कि परमात्मा ने मुझे भेजा है! अरे श्रीमान तो बाकी लोगों कोकिसने भेजा है? सबको उसने ही भेजा है। भाजपा के तो बहुत से नेता उन्हेंअवतार भी घोषित कर चुके हैं। मगर जैसा कहा वह सब कहानी अलग है।

अभी तो हम बस यह कह रहे हैं कि दो चरण बचे हैं। 25 जून को दिल्ली काचुनाव है। यहां की सात सीटें जो जीतता है वह देश पर राज करता है। अभी जोमाहौल है वह तो इंडिया के दिल्ली फतह की कहानी कह रहा है। 2014 और 2019में मोदी जी ने दिल्ली की सातों सीटें जीतकर केन्द्र में सरकार बनाई थी।एक कोशिश तो वे फिर करेंगे दिल्ली जीतने की। और जाहिर है कि उसके लिएदांव उनके पास एक ही है। मुसलमान का। इसीलिए लिख रहे हैं कि वे इसेखेलेंगे मगर इससे हिन्दू भाईयों को फायदा क्या होगा?

दरअसल यह पूरी राजनीति संविधान बदलने की है। आरक्षण खत्म करने की। बीजेपीसंघ के आप किसी नेता से अलग से बात करके देख लीजिए सब आरक्षण के विरोधमें बोलेंगे। मगर वोट दलित और पिछड़ों के चाहिए तो सार्वजनिक रूप से इसकेखिलाफ नहीं बोल सकते।

लेकिन दक्षिणपंथ की, यथास्थितिवाद की पूरी राजनीति दलित पिछड़ों कोसंविधान से मिले अधिकार के खिलाफ ही है। मगर उनका वोट भी चाहिए। औरइसीलिए मुसलमान को टारगेट करके वे धार्मिक ध्रुवीकरण करते हैं।

मुसलमान से क्या ले लेंगे?  क्या है उसके पास ? नौकरी है नहीं! उससे क्यालेना है! लेना तो वह नौकरी हैं जो आरक्षण की वजह से दलित आदिवासी पिछड़ेको मिली है।

भाजपा मुसलमान की आड़ लेती है। इस आड़ में वह शिकार दलित, आदिवासी, पिछड़ोंका करना चाहती है। आड़ इसलिए लेती है कि मुसलमान के नाम पर दलित पिछड़ेको खुद से जोड़े। मुसलमान के खिलाफ नफरत से दलित पिछड़े और बाकी हिन्दूभी अपने सारे रोजमर्रा के इशु भूल जाते हैं। भाजपा का ऐसा मानना है। दस साल का अनुभव इसकी एक हद तक पुष्टि भी करता है। मगर यही दस साल का अनुभवयह भी कहता है कि आज भी देश का पचास प्रतिशत से ज्यादा हिन्दू भाजपा कोवोट नहीं देता है।

इसलिए इस बार हिन्दू मुसलमान और ज्यादा तेज किया गया। मगर मोदी जी यह भूलगए कि मार हिन्दू पर ज्यादा पड़ गई। उसके बच्चों की नौकरी खाकर मोदी जीउसे भक्त नहीं बनाए रख सकते। मुसलमान टाइट, मुसलमान टाइट करते करते वह खुद टाइट हो गया।

भूखे भजन न होई गोपाला! वह देख रहा है कि मुसलमान का क्या गया? उसकी परेशानियां बढ़ीं मगर उससे उसे क्या मिला? तो इसलिए हम कह रहे हैं कि मोदी जी मुसलमानों से आपको क्या चाहिए बता दो! मगर हिन्दू भाईयों को तो परेशान करना बंद करो। जब से चुनाव शुरू हुए हैंआपने सौ से ज्यादा बार मुसलमान, मुसलमान कर लिया होगा। मगर एक बार भीनौकरी की बात नहीं की। महंगाई की नहीं की।

मुसलमान की बात एक बार और कर लो। मगर नौकरी की भी कर लो। युवा बहुत परेशान है। पूरे देश का और वाराणसी का भी। जो इलाहाबाद और फूलपुर आया था तूफान की तरह वह बनारस का भी था।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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