nayaindia Lok sabha Election चुनाव बेरोजगारी और महंगाई पर होगा

चुनाव बेरोजगारी और महंगाई पर होगा

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राहुल ने राजनीतिक बात कही थी। मोदी जी उसे धार्मिक बना रहे हैं।वैसे ही जैसे कर्नाटक चुनाव मेंनरेंद्र मोदी ने बजरंग दल को बजरंग बली के रुप में पेश किया था।नारे लगाए। कहा जय बजरंग बली कहकर वोट डालने जाना। जनता ने जयबजरंग बली बोला और बीजेपी के खिलाफ वोट डाल आई।मोदीजी ने कर्नाटक चुनाव परिणामों सेकोई सबक नहीं लिया।..इस बार लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ मोदी जी ने राहुल के एक शब्द को पकडॉ शक्ति का पहला मुद्दा  बनाया। इसका मतलब क्या दस साल सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्रीमोदी के पास अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ नहीं हैं? Lok sabha Election

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शक्ति तो थोड़ा एब्स्टर्ड (अमूर्त) है। कर्नाटक चुनाव में तो मोदी जीबजरंग बली को ले आए थे। क्या हुआ?इस बार भी वे चुनाव के बीच में शक्ति को ले आए। कर्नाटक चुनाव परिणामों सेकोई सबक नहीं लिया। ताकत का जब गरूर होता है तो ऐसा ही होता है। यहां हमजानबूझकर शक्ति नहीं लिख रहे ताकत लिख रहे हैं। राजनीति जब शब्दों कोपकड़ने लगे तो समझ लीजिए कि वह बहुत घबराई हुई है। और पेनिक रिएक्शन (घबराहट में की प्रतिक्रिया ) में कुछ भी कर सकती है। Lok sabha Election

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कर्नाटक में कांग्रेस ने बजरंग दल की बात की थी। मोदी जी उसे बजरंग बलीबताने लगे। नारे लगाए। कहा जय बजरंग बली कहकर वोट डालने जाना। जनता ने जयबजरंग बली बोला और बीजेपी के खिलाफ वोट डाल आई।

दरअसल राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी पर बहुत बड़ा वार कर दिया।उन्हें मुखौटा कहकर। अटल बिहारी वाजपेयी भी यह सह नहीं पाए थे। जबकिउन्हें तो उनकी पार्टी के ही नेता गोविन्दाचार्य ने कहा था। मगर वाजपेयीने इतना किया कि बात को घुमाया नहीं सीधा अपने आप को मुखौटा कहने परविरोध किया। लेकिन मोदी जी उसे धार्मिक शक्ति पर ले आए। वैसे ही जैसेबजरंग दल को बजरंग बली के रुप में पेश किया था।

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क्या जनता बेवकूफ है? वह डरी हुई हो सकती है। भोली भी। मगर बेवकूफ नहीं।भारत की जनता में कामन सेंस की कमी नहीं है।

लोकसभा चुनाव की घोषणा के साथ मोदी जी ने जो पहला मुद्दा उठाया वह यहीशक्ति का है। इसका मतलब क्या दस साल सरकार चलाने के बाद प्रधानमंत्रीमोदी के पास अपनी उपलब्धियां बताने के लिए कुछ नहीं हैं? वे राहुल ने यहकहा, नेहरू ने वह कहा, कांग्रेस ने यह किया वह नहीं किया से आगे बढ़ हीनहीं पा रहे हैं। भाजपा जब विपक्ष में होती है तो जनता यह बातें सुन लेतीहै।

वैसे ही जैसे जब घर का लड़का कहता हो कि पिताजी ने यह नहीं किया वह नहींकिया तो मां चुपचाप सुन लेती है। मगर जब वही लड़का बड़ा हो जाता और फिरवैसी ही बातें करता है तो मां कहती है ठीक है उन्होंने नहीं किया मगर अबतुम कर लो! परिवार में भी कोई स्वीकार नहीं करता कि करो धरो कुछ नहीं औरचार पीढ़ी पहले वालों तक के बारे में सवाल उठाते रहो।

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इस चुनाव में सीधे सीधे दो मुद्दे बन गए हैं। चुनाव उन्हीं पर होगा।बेरोजगारी और महंगाई। सरकार इन पर बात करना नहीं चाहती। वह घुमाएगी। वहमोदी जी को सामने रखेगी। उन्हीं के नाम पर पूरा चुनाव लड़ेगी। धार्मिकइश्यू, भावनात्मक बातें, राहुल और विपक्ष पर आरोप और नफरती माहौल!

उसका अजेंडा यही होगा। अब यह विपक्ष खासतौर से कांग्रेस को करना है कि वहइनमें न फंसे। राहुल ने शक्ति पर जवाब दे दिया। बहुत अच्छा दिया। कहा किजिस शक्ति का मैंने जिक्र किया वह कोई धार्मिक शक्ति नहीं है। वह तोअधर्म की शक्ति है। असत्य और भ्रष्टाचार की। जिसने देश की सभी संस्थाओंचुनाव आयोग, मीडिया, ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स, उद्योग जगत और संवैधानिकढांचे को भी अपने कब्जे में ले लिया है। Lok sabha Election

सही है राहुल ने राजनीतिक बात कही थी। मोदी जी उसे धार्मिक बना रहे हैं।मगर वह चली नहीं। चल भी नहीं सकती। देश में आजादी के बाद की सबसे भयंकरबेरोजगारी है। और मोदी सरकार के काम करने का तरीका यही है कि इसी समय देशमें सबसे ज्यादा सरकारी पद खाली पड़े हुए हैं। भर्तियां पूरी तरह बंदहैं। नई नौकरियों के सृजन का तो सवाल ही नहीं है। अभी राहुल ने बताया कि30 लाख सरकारी पद रिक्त हैं। और साथ ही वादा भी किया कि सरकार बनते ही इनपर नियुक्तियां दी जाएंगी।

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शहर से लेकर गांवों तक हर जगह शिक्षित, उच्च शिक्षित बेरोजगार युवाओं की भीड़ है। इनकी संख्या करोड़ों में है। मगर सरकार की प्राथमिकता में यहकहीं नहीं हैं। ऐसे ही महंगाई की समस्या है। जो गरीब से लेकर मध्यम वर्गसबकी कमर तोड़ चुकी है।

चुनाव इन्हीं दो मुद्दों पर होगा। और मोदी जी डाइवर्ट करने की पूरी कोशिशकरेंगे। वे धर्म का मुद्दा लाएंगे। जिस की दम पर वे पिछले चुनाव जीततेरहे हैं। मगर वह समय और था। जिस कांग्रेस पर वह इतने आरोप लगाते हैं किउसने कुछ नहीं किया उसने मनरेगा से लेकर सेना, अर्धसैनिक बलों, पुलिस,अन्य सरकारी नौकरियों आशा, आंगनवाड़ी वर्करों, के जरिए लोगों को काम देरखा था। पेट भरे थे।लेकिन अब जेब खाली है। इसलिए धर्म का कार्ड अब नहीं चल रहा। भूखे भजन न होई गोपाला!

लेकिन बस यह कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को ख्याल रखना चाहिए कि वह मोदीजी के अजेंडे में नहीं फंसे। उस तरफ देखे भी नहीं। मीडिया धकेलेगा।कांग्रेस के कई नेताओं को बड़ा शौक है गोदी मीडिया से गलबहियां करने का।लेकिन अगर इस बार अपना इकतरफा प्यार उधर लूटाया तो यह होगा आत्मघाती कदम।सेल्फ गोल। जिसका मीडिया रोज बखान करती है। राहुल पर इसे जबर्दस्ती मढ़तीहै। राहुल ने किया! राहुल ने किया सेल्फ गोल !

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राहुल इस बार विपक्ष की अच्छी टीम के साथ हैं। कांग्रेसी जैसे हैं, वैसेहैं। वे नहीं सुधरने वाले। हर आदमी को जिसे संगठन में कोई पोस्ट मिल गईवह तुरर्म खां बन जाता है। कार्यकर्ता की तरफ देखता भी नहीं है। दस सालविपक्ष में रहने अभी छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान में हारने के बादभी कांग्रेस नेताओं का यही हाल है। हां मगर जैसे ही गोदी मीडिया के कैमरेपर नजर पड़ी भागता है उनकी तरफ। गालियां भी खाता है और हें हें भी करताहै।

खैर इन लाइलाज कांग्रेसियों पर बात करने से कोई फायदा नहीं। बात यह कहरहे थे कि इस बार राहुल को विपक्षी नेताओं की अच्छी टीम मिल गई है।तेजस्वी, उद्धव ठाकरे, स्टालिन, हेमंत सोरेन मजबूत लोग हैं। और विश्वसनीयभी। अखिलेश, केजरीवाल, शरद पवार जैसे अपने क्षेत्रों के बड़े नेता भी साथहैं। यह विनिंग काम्बिनेशन है। Lok sabha Election

कांग्रेस में ऐसे कितने नेता हैं जो इस तरह साथ खड़े हों? कौन कब चला जाएउसकी पत्नी/ पति को भी मालूम नहीं होता। बीजेपी के प्रचार और मीडियाद्वारा हवा बनाए जाने के बाद सब कांग्रेसी नेताओं ने राहुल को साफ्ट टारगेट बना लिया है। राहुल की वजह से जा रहे हैं। राहुल कुछ नहीं करसकते। दूसरी तरफ विपक्ष के नेताओं को सबसे ज्यादा विश्वास राहुल पर है।

राहुल विपक्ष के लिए मेन स्ट्राइकर हैं। लेकिन वही राहुल इन अवसरवादी औरसमझौतापरस्त कांग्रेसियों के लिए बोझ। असमान मैदान पर राहुल इतनी मेहनत कर रहे हैं। इतना माहौल बना दिया। सोचिएअगर लेवल प्लेइंग फील्ड होती तो राहुल क्या करते। उनकी छवि आज कहां होती। Lok sabha Election

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कभी सुना है हजारों करोड़ रुपया एक आदमी की छवि खराब करने पर लगा दिया।और भाजपा तो कर ही रही थी। मीडिया साथ था। मगर कांग्रेसी भी इस काम मेंलगे हुए थे। और किस लेवल के कांग्रेसी? संगठन और सरकार ( यूपीए के समय)में किस उच्च स्तर पर नियुक्त लोग। टाप के। सोनिया गांधी के ठीक बाद वाले पायदान के। सोचिए इतनी विपरित परिस्थितियां किसी आदमी ने झेली हों। और आजभी लड़ रहा हो तो उसे आप क्या कहेंगे? Lok sabha Election

कुछ भी कहिए न कहिए उस शख्स में एक और खूबी है जो विरल है। किसी आलोचना,विरोध से कोई फर्क नहीं पड़ना। अपने काम में लगे रहना।तो इसलिए इतने मजबूत आदमी को हिलाने के लिए फिर एक नान-इश्यू बनाया जा रहाहै। मोदी जी इसे शक्ति कह रहे हैं। मगर राम की शक्ति पूजा जिसने पढ़ी होउसे मालूम होगा कि निराला इसमें लिखते हैं “ अन्याय जिधर है उधर शक्ति !“और यह राम के मुंह से कहलवा रहे हैं।

राहुल यही कह रहे है कि जिस शक्ति से हम लड़ रहे हैं उस शक्ति का मुखौटामोदी जी हैं।तो इस चुनाव में यह सारे इश्यू बनाने की कोशिश की जाएगी। देखना यह है किकांग्रेस इससे बच कर किस तरह असली इश्यू बेरोजगारी और मंहगाई पर चुनाव रखपाती है।

By शकील अख़्तर

स्वतंत्र पत्रकार। नया इंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर। नवभारत टाइम्स के पूर्व राजनीतिक संपादक और ब्यूरो चीफ। कोई 45 वर्षों का पत्रकारिता अनुभव। सन् 1990 से 2000 के कश्मीर के मुश्किल भरे दस वर्षों में कश्मीर के रहते हुए घाटी को कवर किया।

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