nayaindia jammu kashmir lal singh congress लाल सिंह से कांग्रेस को जम्मू में

लाल सिंह से कांग्रेस को जम्मू में संजीवनी

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लाल सिंह की कांग्रेस में वापसी जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। चौधरी लाल सिंह की भाषण शैली, हाज़िरजवाबी, समाज के लगभग सभी वर्गों के साथ संपर्क भी उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी पर भारी साबित करती है। विशेषकर जम्मू संभाग में चौधरी लाल सिंह की पहचान एक जुझारू व जमीनी नेता के रूप में रही है। उल्लेखनीय है कि इस बार भी उधमपुर सीट पर चौधरी लाल सिंह का सामना दो बार के सांसद व केंद्र में मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह के साथ ही होगा। jammu kashmir lal singh congress

जिस कांग्रेस को पंद्रह दिन पहले तक जम्मू-कश्मीर में लोकसभा चुनाव से बाहर समझा जा रहा था वह अचानक से पूरी ताकत से भारतीय जनता पार्टी से लड़ने को तैयार दिखाई देने लगी है।यह बड़ा बदलाव पूर्व सांसद व दिग्गज नेता चौधरी लाल सिंह के कांग्रेस में वापसी करने से संभव हो सका है। कांग्रेस ने लंबे विचार-विमर्ष के बाद चौधरी लाल सिंह को पार्टी में शामिल करने और उन्हें उधमपुर से पार्टी उम्मीदवार बनाने का फैसला लेते समय जो मज़बूती और साहस दिखाया है उससे पूरे प्रदेश विशेषकर जम्मू संभाग में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा है।चौधरी लाल सिंह एक ऐसे समय में कांग्रेस में शामिल हुए हैं जब जम्मू-कश्मीर में पार्टी लगभग मरणासन्न अवस्था में पड़ी हुई थी। पार्टी के पास उधमपुर से चुनाव लड़ने के लिए कोई ताकतवर उम्मीदवार तक नही था। इन हालात में प्रदेश कांग्रेस के लिए चौधरी लाल सिंह का पार्टी में आना किसी संजीवनी से कम नही है। jammu kashmir lal singh congress

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उल्लेखनीय है कि चौधरी लाल सिंह की कांग्रेस में वापसी को लेकर लंबे समय से चर्चाएं चल रही थी। जनवरी 2023 को जब राहुल गांधी की चर्चित भारत जोड़ो यात्रा जम्मू-कश्मीर में दाखिल हुई थी तो चौधरी लाल सिंह की पार्टी ‘डोगरा स्वाभिमान संगठन’ ने यात्रा का भव्य स्वागत किया था। उस समय उनका कांग्रेस में शामिल होना लगभग तय माना जा रहा था। मगर ऐन मौके पर उनका कांग्रेस में शामिल होना रुक गया और फिर एक लंबी खामोशी दोनों तरफ से ओढ़ लीगई । jammu kashmir lal singh congress

भारत जोड़ो यात्रा के समय कुछ बुद्धिजीवियों और नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला सहित कुछ अन्य नेताओं के विरोध के कारण चौधरी लाल सिंह का कांग्रेस में शामिल होना टाल दिया था। दरअसल कांग्रेस उस समय भारत जोड़ो यात्रा के अंतिम चरण में किसी भी तरह का विवाद नही चाहती थी। हालांकि यह बात अलग है कि चौधरी लाल सिंह का विरोध करने वालों के पास मुखालफत करने का कोई ठोस आधार न तो तब था और न ही आज है।

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क्यों था विरोध ?

चौधरी लाल सिंह पर अक्सर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने 2018 में हुए कठुआ दुष्कर्म मामले में कथित तौर पर आंदोलनकारियों की मांग का समर्थन किया था। गौरतलब है कि आंदोलनकारी सारे मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे। इस मांग का जम्मू बार एसोसिएशन सहित जम्मू के लगभग सभी सामाजिक व व्यापारिक संगठन भी अपना समर्थन दे रहे थे। दरअसल उस समय चौधरी लाल सिंह भारतीय जनता पार्टी में थे और भाजपा-पीडीपी सरकार में केबिनेट मंत्री थे।

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चौधरी लाल सिंह और एक अन्य मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा को आंदोलनकारियों से बात करने के लिए भेजा गया था। दोनों ने बातचीत के बाद सीबीआई जांच की मांग का समर्थन किया। मामला बस इतना भर था, मगर सारे मामले को ऐसे पेश किया गया कि चौधरी लाल सिंह ने कथित रूप से दुष्कर्म में शामिल आरोपियों का बचाव किया है।

यह सर्वविदित है कि भाजपा-पीडीपी की गठबंधन सरकार में दोनों ही घटक दलों की दुष्कर्म मामले पर अलग-अलग राय थी। भारतीय जनता पार्टी सारे मामले की सीबीआई से जांच चाहती थी मगर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती सहित पूरी पीडीपी प्रदेश पुलिस की अपराध शाखा से ही मामले की जांच करवाने पर अड़ी हुई थी।सीबीआई मांग का समर्थन करने पर बाद में चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रसाद गंगा को महबूबा मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा देना पड़ा और भाजपा व पीडीपी में गहरे मतभेद उभर गए थे। jammu kashmir lal singh congress

दोनों दलों की खींचातानी के बीच दिल्ली के कुछ बुद्धिजीवियों व बहुचर्चित टीवी चैनलों ने एक ऐसा नैरेटिव गढ़ा की चौधरी लाल सिंह को सारे मामले का ‘खलनायक’ बना दिया गया। नैरेटिव के दुश्चक्र में लाल सिंह को ऐसा फंसाया गया कि भारतीय जनता पार्टी में भी लाल सिंह अलग-थलग पड़ गए और कुछ ही दिनों बाद उन्हें भाजपा छोड़नी पड़ी। हालांकि दूसरे मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा अभी भी भाजपा में ही हैं।यही नही आमतौर पर हिन्दू-मुस्लिम करने वाले चैनलों ने कभी भी यह सवाल नही उठाया कि महबूबा मुफ्ती आखिर क्यों सीबीआई से जांच करवाने के पक्ष में नही थीं?

सोशल मीडिया के इस दौर में बकायदा एक अभियान चलाकर किसी को बदनाम करना, चरित्र हनन करना, अपनी सुविधा अनुसार किसी को भी सांप्रदायिक, देशद्रोही साबित कर देना बेहद आसान हो गया है। चौधरी लाल सिंह के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया में चौधरी लाल सिंह के खिलाफ लगातार ऐसा अभियान चलाया गया कि चौधरी लाल सिंह आज तक सफाई देते फिर रहे हैं।

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इस सारे मामले की बेहद आश्चर्यजनक बात यह भी थी कि चौधरी लाल सिंह पर कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के भीतर से कुछ लोगों ने एक साथ हमले किए। दरअसल चौधरी लाल सिंह के साथ इसलिए भी खेल खेला गया क्योंकि वे भारतीय जनता पार्टी में ‘बाहरी’ समझे जाते थे और पार्टी के लिए उनकी कोई ज़रूरत शेष रह नही गई थी। दूसरी ओर कांग्रेस के अंदर उस समय का बेहद ताकतवर गुलाम नबी आज़ाद गुट लगातार चौधरी लाल सिंह पर निशाना साधे हुए था।

भारतीय जनता पार्टी में एक गुट उन्हें पार्टी से बाहर निकालने पर आमादा था। इस गुट को डर था कि देर-सवेर चौधरी लाल सिंह की लोकप्रियता उसके लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। इसी तरह से कांग्रेस में गुलाम नबी आज़ाद का गुट 2014 की हार को भूला नहीं था और उस हार के लिए चौधरी लाल सिंह को ही ज़िम्मेवार मानकर उन्हें झटका देना चाहता था। चौधरी लाल सिंह की परेशानी यह रही कि जिनको जीतवाने के लिए उन्होंने 2014 में भारतीय जनता पार्टी की मदद की उन्होंने भी नहीं अपनाया और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में हारने वाले गुलाम नबी आज़ाद भी उनके दुश्मन बन गए।

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भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में सक्रिय चौधरी लाल सिंह विरोधियों ने दिल्ली के टीवी चैनलों और कुछ पत्रकार व बुद्धिजीवियों के साथ अपने करीबी संबंधों की मदद से ऐसा नैरेटिव गढ़ा कि कठुआ प्रकरण के लिए आज तक चौधरी लाल सिंह को ही ‘दोषी’ ठहराया जाता है। जबकि कठुआ प्रकरण के तमाम आरोपियों को सजा तक मिल चुकी है, मगर दिल्ली के कुछ पत्रकार व बुद्धिजीवी अभी भी चौधरी लाल सिंह को लेकर सोशल मीडिया पर और शोर मचाए हुए हैं।

मज़ेदार बात यह है कि यह सभी पत्रकार व बुद्धिजीवी अपने आप को कांग्रेस का हितैषी मानते हैं और चाहते हैं कि कांग्रेस चुनाव में जीते। लेकिन लगता है उनकी शर्त यह है कि कांग्रेस उम्मीदवारों का चयन इन पत्रकारों व बुद्धिजीवियों की राय से ही किया जाए। ज़मीनी हकीकत क्या है इसे जानने व समझने की कोई कोशिश यह लोग करना नहीं चाहते। आम लोग कठुआ दुष्कर्म की घटना को एक बेहद दुखद हादसा समझ कर भुला चुके हैं। लेकिन कुछ पत्रकार व बुद्धिजीवी आज भी इस प्रकरण की आड़ में हिन्दू-मुसलमान किए जा रहे हैं।

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कांग्रेस छोड़कर गए थे भाजपा में

चौधरी लाल सिंह ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उस समय कांग्रेस को छोड़कर भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा था जब कांग्रेस ने उनकी जगह गुलाम नबी आज़ाद को उधमपुर से अपना उम्मीदवार बना दिया था। इस निर्णय का कांग्रेस को आज तक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।चौधरी लाल सिंह 2014 के लोकसभा चुनाव तक उधमपुर से कांग्रेस के सांसद थे। उन्होंने पहले 2004 और बाद में 2009 में पूर्व केंद्रीय मंत्री व जम्मू-कश्मीर भाजपा के दिग्गज नेता चमन लाल गुप्ता को हराया था। बावजूद इसके कांग्रेस ने उन्हें 2014 में टिकट न देकर गुलाम नबी आज़ाद को मैदान में उतार दिया। आज़ाद एक बेहद कमजोर उम्मीदवार साबित हुए और पहली बार चुनाव लड़ रहे डॉ जितेंद्र सिंह से हार गए।

अपनी लोकसभा टिकट के कटने से नाराज़ चौधरी लाल सिंह ने 2014 के लोकसभा चुनाव में ही कांग्रेस छोड़ दी थी और भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे। चुनाव में उन्होंने डॉ जितेंद्र सिंह की खूब मदद की और उनकी जीत में अहम भूमिका भी निभाई।बाद में चौधरी लाल सिंह ने अपनी एक अलग पार्टी ‘डोगरा स्वाभिमान संगठन’ के नाम से भी बनाई। इस पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने 2019 का लोकसभा चुनाव उधमपुर व जम्मू संसदीय सीट से लड़ा भी। मगर सफलता नही मिली ।

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आज़ाद थे खिलाफ

भारतीय जनता पार्टी से रिश्ते खराब होने के बाद से ही चौधरी लाल सिंह कांग्रेस में वापसी करना चाहते थे मगर गुलाम नबी आज़ाद के साथ मतभेदों के कारण  उनके लिए कांग्रेस के दरवाज़े खुल नही सके।लेकिन अगस्त 2022 में जब गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया तो राजनीतिक हलकों में यह सुगबुगाहट तेज़ होने लगी थी कि चौधरी लाल सिंह किसी भी समय कांग्रेस में वापसी कर सकते हैं। मगर आज़ाद द्वारा पार्टी छोड़ देने के बावजूद चौधरी लाल सिंह को कांग्रेस में वापसी करने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा। उनका यह इंतज़ार साफ तौर पर दर्शाता है कि कांग्रेस ने अभी भी अपनी गलतियों से कुछ नही सिखा है। कांग्रेस के भीतर आज भी एक ऐसा वर्ग सक्रिय है जो जमीनी नेताओं को महत्व नही देता।

दिलचस्प तथ्य यह है कि अब जब कि चौधरी लाल सिंह की कांग्रेस में बकायदा वापसी हो चुकी है तो भी गुलाम नबी आज़ाद और उनकी पार्टी ही सबसे अधिक परेशान है। आज़ाद की पार्टी के नेताओं ने सोशल मीडिया पर चौधरी लाल सिंह के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है और बार-बार कठुआ दुष्कर्म की आड़ में लाल सिंह पर निशाना साधा जा रहा है।

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चौधरी लाल सिंह की कांग्रेस में वापसी जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। चौधरी लाल सिंह की भाषण शैली, हाज़िरजवाबी, समाज के लगभग सभी वर्गों के साथ संपर्क भी उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी पर भारी साबित करती है। विशेषकर जम्मू संभाग में चौधरी लाल सिंह की पहचान एक जुझारू व जमीनी नेता के रूप में रही है। उल्लेखनीय है कि इस बार भी उधमपुर सीट पर चौधरी लाल सिंह का सामना दो बार के सांसद व केंद्र में मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह के साथ ही होगा।

By मनु श्रीवत्स

लगभग 33 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय।खेल भारती,स्पोर्ट्सवीक और स्पोर्ट्स वर्ल्ड, फिर जम्मू-कश्मीर के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार ‘कश्मीर टाईम्स’, और ‘जनसत्ता’ के लिए लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर को कवर किया।लगभग दस वर्षों तक जम्मू के सांध्य दैनिक ‘व्यूज़ टुडे’ का संपादन भी किया।आजकल ‘नया इंडिया’ सहित कुछ प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिख रहा हूँ।

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