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हिंदू को बांटो, लड़ाओ, खरीदो और बनाओ गंवार!

सोचें, भारत में सामाजिक (हिंदू) समरसता का कौन सा म़ॉडल प्रदेश है? मेरा मानना है मध्य प्रदेश! और वहां अभी क्या हल्ला हुआ? भाजपा ने ओबीसी आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ा कर 27 प्रतिशत करने के कमलनाथ सरकार के पुराने फैसले पर सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की है कि “कांग्रेस कई वर्षों तक सत्ता में रही लेकिन उसने किसी वर्ग के साथ न्याय नहीं किया। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और हमें न्यायपालिका पर भरोसा है। हमें उम्मीद है कि अदालत मध्यप्रदेश में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण को मंजूरी देगी”। अर्थात भाजपा/संघ परिवार/ मोहन यादव सरकार राज्य की ओबीसी (51 प्रतिशत), अनुसूचित जाति (एससी) 15.6 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति (एसटी) 21.1 प्रतिशत के तीनों वर्गों की राज्य में कथित 87 प्रतिशत आबादी के अनुपात में आगे आरक्षण का झुनझुना/रोडमैप सोचे हुए है।

और यह सब मोदी सरकार की 11 वर्षों की राजनीति का नतीजा है। जैसे भी हो सत्ता बनाए रखने की जिद्द् की इस राजनीति ने कांग्रेस और राहुल गांधी को यदि “जितनी आबादी, उतना हक़” के एजेंडे की ओर धकेला है तो सुप्रीम कोर्ट तथा जनगणना से भाजपा हिंदू समाज को आगे और बिखेरने वाली है।

कैसे? मोदी सरकार 2027 में जनगणना कराएगी। अंग्रेजों की कराई 1931 की जाति जनगणना के लगभग सौ साल बाद स्वतंत्र भारत की पहली बार फिर जाति जनगणना होगी। यह जनगणना जाति के साथ उपजाति, पिछ़ड़े, अतिपिछड़े जैसे अलग-अलग समूहों के खांचों में होगी। जैसे कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार लिंगायतों को बांटने, हिंदू धर्म से उन्हें अलग करने, लिंगायत के भीतर लिंगायत बनाम वीरशैव का झगड़ा बनाने की कोशिश में है वैसे ही अगली जनगणना में पिछड़ों में अति पिछड़ों का वर्गीकरण भी बनेगा। मतलब अति पिछड़ों के वर्गीकरण में यदि हिंदू जाट की उपजातियों जैसे बैंस, भुल्लर, अटवाल आदि की आर्थिक हैसियत के आगे पिछड़े, अति पिछड़े जाट के समूह बने तो आश्चर्य नहीं होगा! क्योंकि जाति जनगणना के पीछे एकमेव मंत्र 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले हिंदुओं को इतना और बांटना है कि मोदी नए वर्ण विभाजन के फार्मूलों में योजना, स्कीम बना कर लोगों के खाते में पैसे डालने के नए फैसले ले सकें, जिससे वोट पके। मतलब ताजा बिहार मॉडल की तरह 2029 में अखिल भारतीय स्तर पर बांटो, लडाओ (जातीय पहचान-हक-आरक्षण की भूख में) के साथ स्कीमों व आरक्षण के जरिए वोट पटाने का महाअभियान!

मतलब राहुल गांधी, कांग्रेस, तेजस्वी याकि जातीय-क्षेत्रिय राजनीति के धुरंधरों की पिछड़ा-दलित-आदिवासी राजनीति को जनगणना और उसके बाई प्रोडक्ट की योजनाओं-घोषणाओं-झांसों के महाप्रोपेगेंडा से खारिज करा देना।

भयावह सिनेरियो है। मगर अंग्रेजों ने जैसे 1905 में बंग-भंग से बीज बो कर 1947 में हिंदू-मुस्लिम विभाजन तय कराया वैसे नरेंद्र मोदी दिल्ली के वे आखिरी हिंदू शासक संभावी हैं, जिनकी जातीय जनगणना और जातीय आरक्षण की आग में हिंदू राष्ट्रवाद वैसे ही मिट्टी में मिलेगा देने जैसे पृथ्वीराज चौहान के आखिरी शासन की आखिरी हिंदू सत्ता थी! विदेशी गुलामी से पहले की!

सोचें, हिंदू मोदी राज में कैसा-क्या है? आरक्षण व्यवस्था लागू होने के 75 वर्ष बाद भारत का दलित चीफ जस्टिस, दलित आईपीएस एडीजीपी, एक दलित कांस्टेबल की हालिया प्रतिनिधि घटनाओं, व्यवहार, अनुभव से क्या यह नहीं मालूम होता कि आरक्षण व्यवस्था पूरी तरह फेल है! इसने हिंदू समाज में समानता की बजाय समरसता, परस्पर मान-सम्मान, सद्भावपूर्ण व्यवहार को न केवल और खराब किया है, बल्कि जातीय पूर्वाग्रहों, वैमनस्य, दुराव, नीचताओं की हद पार करा दी है।

सचमुच हर हिंदू को (“जितनी आबादी, उतना हक़” का सामाजिक न्याय चाहने वालों को अवश्य) हरियाणा के वरिष्ठ आईपीएस एडीजीपी पुरण कुमार के सुसाइड नोट तथा घटना के बाद उनकी पत्नी आईएएस अधिकारी अनमित कुमार की शिकायत-एफआईआर को पढ़ना चाहिए। समझ आएगा कि आरक्षण की व्यवस्था ने हिंदू समाज को मानसिक उत्पीडन की भट्ठी बना दिया है। पूरा समाज, पूरी आबादी जल रही है, खोखला गई है। जिसे आरक्षण मिला और जिसे नहीं मिला, सभी भूख, उत्पीडन, जलालत, भेदभाव की भट्ठी में जलते हुए है। सोचें, भारत के चीफ जस्टिस गवई पर! भारत राष्ट्र की सत्ता-व्यवस्था के एक स्तंभ न्यायपालिका के प्रमुख। वे आरक्षण से नहीं बने। पर आरक्षण से चिन्हित हुई जाति के वे पर्याय दलित हैं तो उन पर जूता फेंकना सोशल मीडिया में आज तर्कसंगत व प्रशंसनीय है या फिर हिंदू धर्म को गालियां हैं तो सत्य क्या जाहिर? पूरा समाज ही आरक्षण से मानसिक रोगी है। सोचें, तब भारत राष्ट्र-राज्य कैसा रोगी, खोखला, अशक्त और असहाय है!

इसे नई ऊंचाईयां मोदी राज से हैं। नरेंद्र मोदी से पहले तक कांग्रेस, भाजपा, लेफ्ट के राष्ट्रीय राजनीति के नैरेटिव में मंडल-कमंडल दोनों सीमाबद्ध थे। पर अब यदि राहुल गांधी का “जितनी आबादी, उतना हक़” का पागलपन है तो वजह मोदी-शाह द्वारा जात राजनीति, पिछड़ावाद से वोट प्रबंधन हैं। मोदी सरकार ने पूरी राजनीति को ही जब धर्म, जात, पैसे और लोगों को गंवार बनाने के प्रोपेगेंडा की फैक्टरी में कनवर्ट कर दिया है तो विपक्ष क्या करेगा? यह नोट रखें कि जो दिशा है उसमें मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण की सीमा 75-84 प्रतिशत (मतलब जितनी आबादी, उतना हक़) बढ़वा देगी। वही जातीय जनगणना के बाद फिर 2029 के चुनाव में प्राइवेट क्षेत्र में आरक्षण लागू कराने का वादा होगा! इसलिए क्योंकि चुनाव किसी भी सूरत में जीतना है। फिर यों भी भारत को आगे बुद्धि, काबलियत की जरूरत नहीं है। अमेरिकी कंपनियों की एआई (कृत्रिम बुद्धि-काबलियत) से ही भारत चलना है।सो मोदी-भाजपा-संघ की यह आखिरी देन तय है जो भारत हर तरह से गुलाम, अक्षम, नाकाबिल और पूरी तरह से जातियों-धर्म की जिद्द में लड़ता-झगड़ता-मनोरोगी होगा!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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