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महाराष्ट्र की चुनावी चुनौती

महाराष्ट्र में चार महीने में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। उससे पहले लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भाजपा, शिव सेना और एनसीपी के गठबंधन यानी महायुति के लिए बड़ी परेशानी पैदा कर दी है।  मंगलवार को दिल्ली में महाराष्ट्र भाजपा की कोर कमेटी की बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री अजित पवार दोनों की पार्टियों की भूमिका को लेकर चर्चा हुई। चुनाव में दोनों के प्रदर्शन की समीक्षा हुई।  प्रदेश के भाजपा नेताओं की रिपोर्ट के मुताबिक अगर नासिक, मुंबई दक्षिण और रामटेक सीट पर भाजपा लड़ती तो वह जीत सकती थी। इसका मतलब है कि भाजपा ने अभी से दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि वह एकनाथ शिंदे की पार्टी को ज्यादा विधानसभा सीट नहीं देगी। 

दूसरी ओर शिंदे गुट के नेता एकीकृत शिव सेना को पिछले चुनाव में जितनी सीटें मिली थीं उतने की मांग कर रहे हैं। हालांकि वह फॉर्मूला नहीं चलने वाला है। पिछले चुनाव में 154 सीटों पर भाजपा और 124 सीटों पर एकीकृत शिव सेना लड़ी थी। इसमें से भाजपा ने 105 और शिव सेना ने 54 सीटों पर जीत हासिल की थी। साफ दिख रहा है कि भाजपा का स्ट्राइक रेट शिव सेना के मुकाबले बहुत बेहतर था। तभी भाजपा अभी से यह पोजिशनिंग कर रही है उसे सहयोगियों के लिए ज्यादा सीट नहीं छोड़नी पड़े।  बताया जा रहा है कि भाजपा इस बार 288 में से 180 या उससे ज्यादा सीट लड़े। एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी को एक सौ सीट में निपटाने की योजना है। 

उधऱ राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के विचारक रतन शारदा ने द ऑर्गेनाइजरमें एक लेख लिख कर एनसीपी के साथ तालमेल पर सवाल उठाया था। संघ और भाजपा दोनों के नेता मानते हैं कि शरद पवार की पार्टी में टूट फूट कराने और अजित पवार को उप मुख्यमंत्री बनाने का उलटा असर हुआ है। इससे शरद पवार ज्यादा मजबूत हो गए हैं। उनकी पार्टी 10 सीटों पर चुनाव लड़ी थी, जिसमें से नौ पर जीती। भाजपा को दोनों सहयोगियों खास कर अजित पवार की उपयोगिता समझ में नहीं आ रही है। लेकिन मुश्किल यह है कि उन्हें कैसे गठबंधन से निकालें। वे राज्य के उप मुख्यमंत्री हैं। लेकिन वे पश्चिमी महाराष्ट्र में भाजपा को कोई फायदा कराते नहीं दिख रहे हैं। तभी माना जा रहा है कि सीट बंटवारे की बात शुरू होने के बाद विवाद बढ़ेगा।

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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