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तुर्किए खुल कर पाक समर्थक

तुर्किए खुल कर पाकिस्तान का साथ दे रहा है। वह पाकिस्तान को लड़ने के लिए हथियार के साथ साथ नाटो में समर्थन का वादा कर रहा है। ध्यान रहे तुर्किए नाटो का सदस्य देश है। बांग्लादेश के अंतरिम शासन प्रमुख मोहम्मद यूनुस चीन जाकर भारत के चिकन नेक की बात कर चुके हैं और कह चुके हैं कि चीन के लिए समुद्र का रास्ता सिर्फ बांग्लादेश की ओर से खुलता है। म्यांमार में चीन समर्थित जुंटा की सरकार है तो नेपाल और मालदीव में चीन समर्थक नेताओं की सरकार है। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चीन का दौरा कर आए हैं लेकिन अभी तक भारत का दौरा नहीं किया है। पहले नेपाल का हर प्रधानमंत्री पहली विदेश यात्रा भारत की करता था। मालदीव और नेपाल दोनों ने इस परंपरा को

तोड़ा है।

जहां तक अमेरिका की बात है तो डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह की बातें कर रहे हैं और जिस तरह के काम कर रहे हैं उसे देखते हुए उनको दोस्त तो नहीं कहा जा सकता है। उन्होंने 12 बार कहा है कि व्यापार और टैरिफ की धमकी देकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध रुकवाया। उन्होंने स्टील और अल्यूमिनयिम पर टैरिफ दोगुना कर दिया है, जिससे भारत को बड़ा नुकसान है। उन्होंने एपल को धमकाया है कि भारत में फैक्टरी लगाई तो खैर नहीं है। वे भारतीय छात्रों का वीजा रद्द कर रहे हैं और अवैध प्रवासियों में चेन से बांध कर सैनिक विमान से भारत भेज रहे हैं। ट्रंप ने प्रवासी भारतीयों के अपने घर पैसा भेजने पर साढ़े तीन फीसदी का टैक्स लगा दिया है।

सोचें, यह सब मोदी के 11 साल के निर्बाध शासन के बाद हो रहा है! इन 11 सालों में उन्होंने 60 से ज्यादा देशों की यात्रा की है। सैकड़ों नेताओं से गले मिले हैं और उनको अपना दोस्त बताया है। जी 20 की मेजबानी की है। ग्लोबल साउथ का लीडर होने का दावा किया है। और आज मौजूद हकीकत क्या है? एक भी देश खुल कर भारत के समर्थन में नहीं है। उलटे सब पाकिस्तान की मदद में लगे हैं, जिसे अलग थलग करना भारत की विदेश नीति का एकमात्र लक्ष्य रहा है! ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के नेता या उनके राजदूत इसके लिए बहुत मेहनत कर रहे हैं। पाकिस्तान ने अपनी पोजिशनिंग ऐसे की है, जिसका उसको फायदा मिल रहा है। वह चीन के लिए उपयोगी है तो अमेरिका और रूस के लिए भी उपयोगी बना है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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