भारतीय जनता पार्टी तो एक सुनियोजित सिद्धांत के तहत मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारती है। हालांकि इस बार केरल में उसने एक मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है। लेकिन विपक्षी पार्टियां, जिन पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगता रहा है उन्होंने भी इस बार दूरी बनाई है। कांग्रेस और ज्यादातर विपक्षी पार्टियों ने बहुत कम संख्या में मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इससे मुस्लिम मतदाताओं में नाराजगी है लेकिन उनके सामने मजबूरी है कि आमने सामने के चुनाव में वे भाजपा को वोट नहीं कर सकते हैं। महाराष्ट्र की सभी सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद राज्य में विवाद छिड़ा है।
महाविकास अघाड़ी यानी उद्धव ठाकरे की शिव सेना, शरद पवार की एनसीपी और कांग्रेस पार्टी ने राज्य की 48 में से एक भी सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा है, जबकि राज्य में मुस्लिम आबादी अच्छी खासी संख्या में है। इसका फायदा असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी उठा सकती है।
इसी तरह बिहार में राजद, कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन ने सिर्फ चार मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि पिछली बार सात उम्मीदवार थे। लालू प्रसाद की पार्टी राजद मुस्लिम और यादव यानी एमवाई समीकरण की राजनीति करती है लेकिन लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव ने अपने कोटे की 23 सीटों में से सिर्फ दो सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार दिया, जबकि 10 सीटों पर यादव उम्मीदवार दिया है। बिहार में मुस्लिम आबादी 18 फीसदी है। पिछली बार राजद ने जहां मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे उनमें से शिवहर, सिवान और बेगूसराय में इस बार मुसलमानों की टिकट कट गई। ऐसे ही झारखंड की 14 सीटों में से कांग्रेस या उसकी सहयोगी जेएमएम व राजद में से किसी ने मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारा।
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