nayaindia बिहार चुनाव 2024: गठबंधनों की रणनीति का मार्गदर्शन
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बिहार में कौन किसके भरोसे है?

ByNI Political,
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यह लाख टके का सवाल है कि बिहार में दोनों गठबंधनों में कौन किसके भरोसे लड़ रहा है? मीडिया में ऐसा माहौल बनाया गया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बार का लोकसभा चुनाव भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसे लड़ रहे हैं तो दूसरी ओर जनता दल यू के नेताओं का कहना है कि भाजपा को नैया पार लगाने के लिए नीतीश कुमार का ही भरोसा है। दूसरे गठबंधन में लालू प्रसाद की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को लग रहा है कि कांग्रेस उसके सहारे लड़ रही है लेकिन कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि इस बार मुस्लिम वोट उसकी वजह से राजद के पक्ष में जा रहा है। कांग्रेस के कई नेता यह कहते मिले हैं कि अगर कांग्रेस इस बार अकेले लड़ती तो राजद से बेहतर प्रदर्शन करती।

दो चरणों में नौ सीटों पर मतदान के बाद स्थिति और उलझ गई है। पहले चरण में भाजपा के दो उम्मीदवार थे, एक उम्मीदवार लोजपा के और एक हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के थे। भाजपा के लोगों का कहना है कि उसके दोनों उम्मीदवारों को कोईरी वोट नहीं मिला, जो नीतीश का वोट आधार है। जमुई में चिराग पासवान के बहनोई को भी कोईरी, कुर्मी वोट कम मिलने की चर्चा है। दूसरे चरण में पांचों सीटों पर नीतीश कुमार के उम्मीदवार थे और जदयू का कहना है कि लगभग हर जगह भाजपा और लोजपा का कोर वोट दूर रहा और पार्टी ने अपने दम पर चुनाव लड़ा।

प्रधानमंत्री भी सिर्फ एक दिन सभा करने के लिए गए थे। भाजपा का कैडर भी जदयू उम्मीदवारों की मदद के लिए नहीं निकला। तभी दो चरण के मतदान के बाद दोनों गठबंधनों के नेताओं की चिंता बढ़ी है। वे आगे के पांच चरण में होने वाली 31 सीटों के मतदान को लेकर नई रणनीति बना रहे हैं।

दूसरे चरण में पूर्णिया लोकसभा सीट पर मतदान हुआ, जहां निर्दलीय पप्पू यादव को कांग्रेस का परोक्ष समर्थन था क्योंकि उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस में किया था लेकिन लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव की जिद के चलते उनको कांग्रेस टिकट नहीं दे पाई थी। वहां मुस्लिम और यादव पप्पू यादव के साथ गए हैं और लालू, तेजस्वी की उम्मीदवार बीमा भारती जमानत बचाने के लिए लड़ीं। पूर्णिया के अलावा कटिहार में भी कांग्रेस का कहना है कि राजद के लोगों ने कांग्रेस उम्मीदवार तारिक अनवर का विरोध किया। इसी तरह का आरोप भागलपुर में भी कांग्रेस ने लगाया है और कहा है कि उसके सवर्ण उम्मीदवार को अपनी जाति का वोट मिला और मुसलमानों का वोट मिला लेकिन यादव वोट टूट गया।

किशनगंज इकलौती सीट है, जो पिछली बार गठबंधन को मिली थी और इस बार भी कांग्रेस वहां अपने ही दम से लड़ी है। सो, कांग्रेस कोटे की नौ में से तीन सीटों पर मतदान हुआ है और कांग्रेस का दावा है कि वह अपने दम पर लड़ी। असल में बिहार की दोनों बड़ी पार्टियों भाजपा और राजद की ओर से अपने सहयोगियों को कमजोर बताने का रणनीतिक प्रचार चल रहा है। जनता दल यू और कांग्रेस दोनों अपने हिसाब से इसका जवाब दे रहे हैं।

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