भारतीय जनता पार्टी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर नहीं पेश किया है लेकिन यह जरूर कहा है कि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा। लेकिन ऐसा लग रहा है कि वह नीतीश को अपने एजेंडे से भी बाहर करती जा रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के दो दिन के बिहार दौरे में तय किया गया कि भाजपा महिला, मोदी और मंदिर के मुद्दे पर चुनाव लड़ेगी। सवाल है कि इसमें नीतीश कुमार कहां हैं? उनका कामकाज कहा हैं? क्या भाजपा समझ रही है कि महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री रोजगार योजना के मद में 10-10 हजार रुपए मोदी ने ट्रांसफर किए हैं और महिलाओं से मोदी ने बात की है इसलिए महिलाएं मोदी के नाम पर वोट करेंगी और भाजपा को नीतीश के चेहरे की जरुरत नहीं है? देश में सबसे पहले महिला वोट बैंक नीतीश ने बनाया था और उनका ही चेहरा भाजपा को भी महिला वोट दिला सकता है।
सोचें, जब भाजपा को लोकसभा चुनाव जीतने के लिए नीतीश के चेहरे की जरुरत पड़ी तो विधानसभा चुनाव में ऐसा कौन सा आलादीन का चिराग हाथ लग गया कि वह नीतीश को केंद्र में रखे बगैर लड़ने की तैयारी कर रही है? यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि बिहार में कोई भी मंदिर का मुद्दा नहीं चलेगा। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने के प्रयास भाजपा पहले भी करके विफल हो चुकी है। इसलिए मंदिर या मोदी की बजाय महिला और नीतीश का एजेंडा भाजपा के लिए ज्यादा फायदेमंद है। मोदी का चेहरा ज्यादा दिखाने से भी यह मैसेज बनेगा कि भाजपा नीतीश को किनारे कर रही है तो इसका भी नुकसान होगा। इसका लाभ तेजस्वी यादव को मिल सकता है। बहरहाल, बिहार में भाजपा ने महिला, मोदी और मंदिर का मुद्दा उठाया उसके दो दिन बाद सोमवार, 29 सितंबर को दिल्ली के अंग्रेजी अखबारों में बिहार सरकार का पूरे पन्ने का विज्ञापन छपा, जिसमें सड़कों का जाल बिछाने का प्रचार किया गया है और तस्वीर अकेले नीतीश कुमार की है। लंबे समय के बाद बिहार का ऐसा विज्ञापन दिखा, जिसमें न तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं और न बिहार के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी हैं।