भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में सीटों का एक लक्ष्य तय करती है, जो आमतौर पर अव्यावहारिक होता है। एकाध अपवादों को छोड़ दें तो भाजपा ने शायद ही कभी अपना तय किया हुआ लक्ष्य हासिल किया होगा, खास कर सीटों की संख्या के नजरिए से। जैसे पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने चार सौ सीटों का लक्ष्य रखा था। चार जून को इसलिए वोटों की गिनती रखी गई ताकि पूरे चुनाव यह नारा लगाया जा सके कि चार जून चार सौ सीट। लेकिन असल नतीजे में भाजपा पहले से 63 सीटें नीचे आ गई। हर राज्य में भाजपा ऐसे ही लक्ष्य तय करती है। जैसे बिहार में भाजपा और जनता दल यू की ओर से 225 सीटों का लक्ष्य तय किया गया था। दोनों पार्टियों के बड़े नेताओं ने बार बार कहा कि इस बार 2010 का रिकॉर्ड तोड़ना है। गौरतलब है कि 2010 में भाजपा और जनता दल यू ने मिल कर 206 सीटें जीती थीं। उस समय लोक जनशक्ति पार्टी ने राजद के साथ मिल कर चुनाव लड़ा था और कांग्रेस अकेले लड़ी थी। इस बार लोक जनशक्ति पार्टी भी एनडीए में है और बाद में बनी दो और पार्टियां जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा भी एनडीए में हैं।
तभी एनडीए की ओर से 243 में से 225 सीट का लक्ष्य तय किया गया तो इसे अव्यावहारिक तो माना गया लेकिन अनेक लोग यह मानने वाले थे कि पांचों पार्टियों का गठबंधन 2010 का रिकॉर्ड तोड़ सकता है या वहां तक जा सकता है। इस बीच भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 18 सितंबर को बिहार के दौरे पर गए और खबर आई कि उन्होंने पार्टी नेताओं की बैठक में तीन तिहाई सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। क्या पता वे दो तिहाई कहना चाह रहे हों क्योंकि तीन तिहाई का मतलब है सारी सीटें जीतना चाहते हैं। दो तिहाई का मतलब है वही 160 सीटें हैं। यही बात उन्होंने शनिवार, 27 सितंबर को सीमांचल के फारबिसगंज में दोहराई। उन्होंने कहा कि एनडीए 160 से ज्यादा सीटें जीत कर सरकार बनाएगा।
अब सवाल है कि 225 के लक्ष्य में क्यों संशोधन किया गया? भाजपा के एक जानकार नेता ने कहा कि 225 की बात जनता दल यू के नेता कर रहे हैं क्योंकि उनको नीतीश कुमार का अंतिम चुनाव बता कर एक भावनात्मक मुद्दे पर लड़ना है और उनको लग रहा है कि इतना बड़ा लक्ष्य बताएंगे तो फिर नीतीश कुमार के ही मुख्यमंत्री बनने की गारंटी होगी। भाजपा के नेता यह भी याद दिला रहे हैं कि जनता दल यू के नेता ‘2025 फिर से नीतीश’ का नारा भी दे रहे हैं लेकिन भाजपा का उससे भी लेना देना नहीं है। सवाल है कि जब दोनों पार्टियां एक साथ लड़ रही हैं तो फिर नारे और लक्ष्य अलग अलग क्यों है? बहरहाल, भाजपा का 225 या तीन चौथाई की बजाय दो तिहाई सीटों के लक्ष्य पर आना अपने आप में इस बात का संकेत है कि भाजपा को बिहार की मुश्किल लड़ाई का संकेत मिल रहा है। गौरतलब है कि सरकार के पास अभी 131 विधायक हैं इसका मतलब है कि इसे बचाते हुए ज्यादा से ज्यादा 30 और सीट जीतने का लक्ष्य है। अच्छी बात यह है कि यह एक व्यावहारिक लक्ष्य है। यह इस आंकड़े पर आधारित है कि चिराग पासवान के गठबंधन में लौटने से पांच फीसदी के आसपास वोट का इजाफा होगा, जिससे 30 सीटें बढ़ सकती हैं। सर्वे करने वाली एजेंसियों का मानना है कि अगर चिराग 2020 में साथ रहे होते तो एनडीए को 169 सीटें मिलतीं।