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17-07-2025 Vol 19

एससीओ में भारत

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विदेश मंत्रियों की बैठक का मकसद 30 अगस्त से 1 सितंबर तक होने वाली एससीओ शिखर बैठक के एजेंडे एवं संयुक्त विज्ञप्ति को अंतिम रूप देना था। इसमें क्या प्रगति हुई, इस बारे में सार्वजनिक जानकारी नहीं दी गई है।

चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक में भारत ने आतंकवाद को इस संगठन के एजेंडे में केंद्रित स्थल पर लाने की वकालत की। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ध्यान दिलाया कि एससीओ का गठन आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ का मुकाबला करने के लिए हुआ था। उन्होंने पहलगाम में आतंकवादी हमले का जिक्र किया। कहा कि एससीओ को आतंकवाद के मसले पर समझौताविहीन रुख अपनाना चाहिए। चूंकि विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद साझा विज्ञप्ति जारी नहीं होनी थी, इसलिए पिछले महीने एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक के समय जैसी कड़वाहट पैदा हुई थी, वैसा कुछ इस बार नहीं हुआ। विदेश मंत्रियों की बैठक का मकसद 30 अगस्त से 1 सितंबर तक होने वाली एससीओ शिखर बैठक के एजेंडे एवं संयुक्त विज्ञप्ति को अंतिम रूप देना था।

इसमें क्या प्रगति हुई, इस बारे में सार्वजनिक जानकारी नहीं दी गई है। मगर बाकी देशों की तरफ से जो कहा गया, वह इस बात का संकेत है कि इस मंच पर भारत का ठीक तालमेल नहीं बन पा रहा है। बेशक एससीओ जब बना, आतंकवाद, अलगाववाद और चरमपंथ का मुकाबला उसका प्रमुख मकसद था। लेकिन 2010 आते-आते आपसी आर्थिक सहयोग और इन्फ्रास्ट्रक्चर कनेक्टिविटी को बढ़ावा इसके एजेंडे में प्रमुखता पा गए। पिछले दशक के मध्य में एससीओ ने एक दृष्टि पत्र स्वीकार कर लिया, जिसमें विकास और जुड़ाव को सुरक्षा का अभिन्न पहलू माना गया। 2023 में भारत के एतराज को नजरअंदाज कर बाकी सभी सदस्य देशों ने चीन की परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के प्रति समर्थन जता दिया।

2024 में शिखर सम्मेलन के दौरान 2035 तक की एससीओ विकास रणनीति को मंजूरी दी गई, जिसमें विकास, कनेक्टिविटी और पर्यावरण संरक्षण के प्रति वचनबद्धता जताई गई। हालांकि विदेश मंत्री ने कहा कि “सामूहिक कल्याण” से जुड़े क्षेत्रों में भारत योगदान जारी रखेगा, लेकिन उन्होंने आतंकवाद को अपने भाषण का केंद्रीय बिंदु बनाया। इसका कितना असर सदस्य देशों पर हुआ? यह जानने के लिए हमें शिखर सम्मेलन का इंतजार करना होगा। तब साझा घोषणापत्र में भारत की चिंताओं को पर्याप्त जगह मिलती है या नहीं, यह देखने की बात होगी।

NI Editorial

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