इस फिल्म में फातिमा सना शेख और माधवन की जोड़ी पहली बार स्क्रीन पर साथ आई है। दोनों ही मंझे हुए कलाकार हैं। पहली झलक में फ़िल्म माधवन की बेहद सफल ‘तनु वेड्स मनु‘ की याद भी दिलाती है। ..करण जौहर के बैनर की ताजातरीन फिल्म ‘आप जैसा कोई‘ बराबरी वाला प्यार, जिसमें ‘जितने तुम उतनी मैं‘ की वकालत करती प्रेम कहानी है जो समाज में पसरी पितृसत्तात्मक सोच पर करारा तमाचा है।
सिने -सोहबत
इन दिनों हिंदी फिल्मों को रिलीज़ की दृष्टि से दो वर्गों में बांटा जाता है। एक जो पहले सिनेमाघरों में आती हैं उन्हें थिएट्रिकल कहते हैं। कुछ समय सिनेमा हॉल में चलने के बाद ये ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और किसी चैनल पर भी आ जाती हैं। फ़िल्म की डिजिटल (ओटीटी) और सेटेलाइट (टीवी चैनल) की बिक्री की कीमत इस बात से तय होती है कि उसका प्रदर्शन थिएटर में कैसा रहा है। वहीँ फ़िल्म रिलीज़ की दूसरी कैटेगरी है ‘डायरेक्ट टू डिजिटल’, जिसका सीधा सा मतलब ये है कि ये फ़िल्म थिएटर में नहीं आएगी और सीधे सीधे किसी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर ही स्ट्रीम होगी।
ये बात सही है कि ‘डायरेक्ट टू डिजिटल’ में सिनेमाघर वाला जो ‘कम्युनिटी वॉचिंग’ का अनुभव है वो नहीं मिल पाता है लेकिन इसके कई दूसरे फ़ायदे हैं। इसमें फिल्मकार और उसकी मेहनत का नतीजा उतनी बेरहमी से जज नहीं हो पाता, जितना कि थिएटर की फुटफॉल्स और लाइव ऑडियंस रेस्पॉन्स में। साथ ही कई अच्छे और नए कलाकारों और फ़िल्मकारों को भी मौक़ा मिल पाता है क्योंकि फ़िल्म ने अपने हिस्से का बाज़ार का दबाव पहले बिक कर ही सॉर्ट कर लिया है। ये एक बढ़िया ट्रेंड है, जिससे ज़्यादा कहानियों, कलाकारों और फिल्ममेकर्स को मौके मिल रहे हैं। हालांकि, ‘डायरेक्ट टू डिजिटल’ पर दूसरे क़िस्म के दबाव ज़रूर हैं, जैसे फ़िल्म की पैकेजिंग कैसी है, सेटअप कैसा है, कलाकार नए भी हों तो कोई इंफ्लुएंसर ही मिल जाए आदि इत्यादि।
आज के सिने-सोहबत में चर्चा का विषय ओटीटी पर आई एक ‘डायरेक्ट टू डिजिटल’ ताज़ातरीन फ़िल्म ‘आप जैसा कोई’ जिसका निर्देशन किया है विवेक सोनी ने और निर्माता है ‘धर्मैटिक्स’। ‘आप जैसा कोई’ में कुछ बेहद प्रासंगिक मुद्दों को उठाने का प्रयास किया गया है। सराहनीय है।
इस फिल्म में फातिमा सना शेख और माधवन की जोड़ी पहली बार स्क्रीन पर साथ आई है। दोनों ही मंझे हुए कलाकार हैं। पहली झलक में फ़िल्म माधवन की बेहद सफल ‘तनु वेड्स मनु’ की याद भी दिलाती है।
‘आप जैसा कोई’ की कहानी जमशेदपुर के श्रीरेणु त्रिपाठी (आर माधवन) की है, जो 42 की उम्र में भी कुंवारे हैं। संस्कृत के अध्यापक श्रीरेणु के जीवन में प्रेम की दृष्टि से किसी भी कन्या का प्रवेश हो ही नहीं पा रहा। किसी लड़की को उनका नाम पसंद नहीं आता, तो किसी को उनका काम। ऐसे में, बचपन का दोस्त दीपक (नमित दास) उनकी मुलाकात डेटिंग ऐप ‘आप जैसा कोई’ से करवा देता है। इस ऐप के जरिए श्रीरेणु एक महिला से मीठी-मीठी बातें करते हैं, जिससे उनके उदासी भरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। मगर असली जादू तो तब होता है, जब कोलकाता की हसीन-जहीन मधु बोस (फातिमा सना शेख) उनकी जिंदगी में टहलती हुई चली आती है।
इधर, श्रीरेणु की शादी होने वाली है। उसे खुद यकीन नहीं होता कि पियानो बजाने वाली, फ्रेंच पढ़ाने वाली मधु से उनका विवाह होगा। हालांकि, दोनों के परिवारों के बीच रहन-सहन और सोच में काफी अंतर है। श्रीरेणु का भाई बेहद फ्यूडल है और अपनी बीवी और बेटी के सपनों को कुछ भी नहीं समझता, वहीं मधु के परिवार में औरतों के लिए काफ़ी खुलापन है। दोनों किरदारों की परवरिश बेहद अलग अलग मूल्यों के बीच हुई है, ज़ाहिर है उनके नज़रिए में भी फ़र्क़ होगा। सोच का यही फ़र्क श्रीरेणु और मधु के रिश्ते में भी दरार की बड़ी वजह बनता है।
श्रीरेणु को जब पता चलता है कि उससे डेटिंग ऐप पर रोमांटिक बातें करने वाली लड़की कोई और नहीं, बल्कि मधु ही थी, तो उसके भीतर का मर्दवादी और संकीर्ण सोच वाला इंसान यह बरदाश्त नहीं कर पाता। वह इस अहसास से ही हिल जाता है कि उसकी होने वाली बीवी किसी डेटिंग ऐप पर गैर मर्दों से रूमानी बातें करती रही है। उसका मन इस बात को बेहद सहूलियत से नज़रअंदाज़ कर देता है कि वो ख़ुद भी उसी ऐप पर था। बाद में ये किरदार कहानी में आगे अपना बहुत बड़ा दिल करके अपनी मंगेतर मधु को ‘माफ’ भी कर देता है, यह कह कर कि वह उसे सब कुछ ‘अलाऊ’ करेगा, पर ‘लिमिट’ में!
इसी पॉइंट पर जब मधु पलटकर उससे पूछ यह लेती है कि ‘तुम क्यों तय करोगे मेरी लिमिट’? तो नायक को अपनी मधु की मिठास किसी करेले की कड़वाहट जैसी लगने लगती है। साथ ही कहानी में विचारों की टकराहट। आगे का रायता कैसे कैसे फैलता है और उसे कहानीकार और फिल्मकार की कोशिशें कैसे कैसे और कितना समेट पाते हैं यह जानने के लिए आपको ये फिल्म देखनी होगी।
बहरहाल, फिल्म में चरित्र भूमिकाओं में मंझे हुए कलाकार हैं, जो इस कहानी को विश्वनीयता प्रदान करने में अहम भूमिका निभाते हैं। नमित दास बीच-बीच में हास्य का तड़का लगाते हैं। पितृसत्तामक सोच को मनीष चौधरी ने बेहद सहजता से आत्मसात किया है। आयशा रजा अपनी भूमिका में पूरी तरह से प्रभावी हैं।
करण जौहर के बैनर की ताजातरीन फिल्म ‘आप जैसा कोई’ बराबरी वाला प्यार, जिसमें ‘जितने तुम उतनी मैं’ की वकालत करती प्रेम कहानी है जो समाज में पसरी पितृसत्तात्मक सोच पर करारा तमाचा है।
निर्देशक विवेक सोनी ने पिछली फिल्म ‘मीनाक्षी सुंदरेश्वर’ के बाद फिर प्रेम कहानी के बहाने स्त्री-पुरुष समानता की बात कहने की सुंदर कोशिश की है। राधिका आनंद और जेहान हांडा की जोड़ी की लिखी फिल्म हलके फुल्के ढंग से पितृसत्ता और लिंगभेद वाले समाज की हक़ीक़त पर प्रश्नवाचक चिन्ह बखूबी खड़ी करती है।
कोलकाता की खूबसूरत गलियों में परवान चढ़ती श्रीरेणु और मधु की प्रेम कहानी आकर्षक भी लगती है, वहीं श्रीरेणु की भाभी आयशा रज़ा वाला ट्रैक दिलचस्प है और इस प्रेम कहानी को एक ज़रूरी सहारा देता है।
हालांकि, पटकथा के स्तर पर फिल्म महज़ किश्तों में छाप छोड़ती है। क्लाइमैक्स समेत कई सीन्स और दमदार हो सकते थे। कई बार ये फ़िल्म करण जौहर की ही फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ की भी याद दिलाती है। बस, वहां लड़का पंजाबी था, यहां जमशेदपुर का, नायिका दोनों में ही बंगाली है। इस लिहाज से एक दोहराव भी लगता है।
एक्टिंग की बात की जाए तो फातिमा सना शेख और आर माधवन दोनों ने अपने किरदारों में सहज और ईमानदार रंग भरे हैं। दोनों की केमिस्ट्री भी अच्छी लगती है। मनीष चौधरी, नमित दास और आयशा रज़ा ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं से पूरा न्याय करते हैं।
तकनीकी पक्ष में देबोजीत रे के कैमरे ने कोलकाता के बेहतरीन नज़ारे दिखाए हैं। रोचक कोहली और जस्टिन प्रभाकरन के संगीत हमारे समय के बेहद सफल और सार्थक गीतकार राज शेखर के गीत के साथ किसी धीमी आंच में पके स्वादिष्ट डिश की तरह अपना काम बेहद सफ़ाई से कर जाते हैं।
एक थॉट प्रोवोकिंग, रोमांटिक फ़िल्म, ‘आप जैसा कोई’ नेटफ़्लिक्स पर है। देख लीजिएगा। (पंकज दुबे मशहूर बाइलिंग्वल उपन्यासकार और चर्चित यूट्यूब चैट शो, “स्मॉल टाउन्स बिग स्टोरिज़” के होस्ट हैं।)