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19-07-2025 Vol 19

जगदीप को कभी कोई प्रलोभन आकर्षित नहीं कर पाया

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बरसों साथ में जीवन जीते हुए हमने जाने कितने अनौपचारिक संगत की लेकिन मैंने कभी किसी बारे में कोई विपरीत टिप्पणी करते हुए उसे नहीं सुना। ऐसा दुर्लभ गुण मैं अपने आप में भी नहीं पा सका। मैंने किसी और को भी जगदीप को लेकर कोई बिपरीत टिप्पणी या प्रतिक्रिया देते नहीं देखा।

जगदीप से कब और कैसे मुलाकात या जान पहचान हुई, मुझे याद नहीं लेकिन एक अरसे से वह मेरे परिवार और मेरी जिंदगी का हिस्सा जरूर रहा है। जगदीप की पीढ़ी के अधिकांश पत्रकार छोटे भाई की तरह मेरे मित्र रहे हैं लेकिन जगदीप मुझे एक पत्रकार के रूप में भी सबसे अलग लगता रहा। अखबार से न्यूज चैनल और फिर अखबार में काम करते हुए लगभग चार दशक तक उसने पत्रकारिता की। हर संस्थान में मुखिया के रूप में काम करते हुए उसने कभी अपने आपको प्रोजेक्ट करने का तनिक भी प्रयास नहीं किया। न कभी वह टीवी के स्क्रीन पर आया और न कभी अखबार में कालम लिखा। अलबत्ता संपादक के रूप में अपने सहयोगियों को लगातार बढ़ावा देता रहा।

आजकल किसी पत्रकार के लिये जरूरी गुण मान लिया गया है कि उसकी आमद रफ्त प्रभावशाली लोगों के इर्दगिर्द हो। लायजनिंग के इस गुण से जगदीप हमेशा अछूता रहा। उसे कोई प्रभावशाली व्यक्ति जाने या उससे निकटता हो, इस तरफ उसने कभी सोचा भी नहीं। लो प्रोफाइल रहकर भी पत्रकारिता में उसकी दमदार उपस्थिति हमेशा बनी रही। दिल जीतने की इमानदार नीयत के साथ जगदीप हर एक का चहेता बना रहा। बरसों साथ में जीवन जीते हुए हमने जाने कितने अनौपचारिक संगत की लेकिन मैंने कभी किसी बारे में कोई विपरीत टिप्पणी करते हुए उसे नहीं सुना। ऐसा दुर्लभ गुण मैं अपने आप में भी नहीं पा सका। अजातशत्रु जैसे मुहावरे से बचते हुए मैं कह सकता हूँ कि जगदीप इसी श्रेणी का पत्रकार था। मैंने किसी और को भी जगदीप को लेकर कोई बिपरीत टिप्पणी या प्रतिक्रिया देते नहीं देखा।

सत्ता और दलगत राजनीति से उसने हमेशा दूरी बनाये रखी जबकि उसकी राजनीतिक समझ बहुत परिपक्व थी। आम चुनाव में परिणामों को लेकर उसका आकलन मैंने बेहद सटीक पाया। एक लम्बा जीवन पत्रकारिता में गुजारते हुए किसी प्रलोभन ने उसे कभी आकर्षित नहीं किया। न उसमें कुछ पाने की चाह थी और न संग्रह की कोई प्रवृत्ति। वह बेहद अंर्तमुखी प्रकृति का था। यहां तक कि अपने दुख तकलीफों या तनावों की आहट भी किसी को होने नहीं देता था।

पत्नी के इलाज और छोटे भाई की अचानक मृत्यु में मैं उलझा हुआ था। लिहाजा उससे मिलने, बात करने का थोड़ा अंतराल बनने लगा था। इसी बीच उसकी तबियत खराब हुई। जांच में गंभीर बीमारी  डिटेक्ट हुई। इलाज के लिए वह दिल्ली चला गया, इलाज शुरू हो गया लेकिन मुझे उसने भनक भी नहीं लगने दी। एक दिन उसके संस्थान ’नया इंडिया’ के सहयोगी शर्मा जी कहीं मिल गये जिनसे पूर्व परिचय नहीं था। बात-बात में उन्होंने बताया कि जगदीप सर आराम कर रहे हैं, उन्हें कीमो लगा है। उनकी बातों पर यकीन करने का कोई कारण नहीं था। बाद में उन्होंने पूरा घटनाक्रम बताया तो आंखों के सामने अंधेरा छा गया। पत्नी मेरे साथ थी। मैंने उससे यह जानकारी छुपाना चाहता था। जगदीप उन्हें अम्मा कहता था और वह अम्मा का लाड़ला था। जानकारी छुपाना संभव नहीं था और पत्नी बैचेन हो गई।

जगदीप को मैंने फोन लगाया और बातकर उसके घर गया जहां जाने को हमेशा टालता  रहा था क्योंकि वह बहुत दूर था। कुछ समय पहले ही एक पूजा में उसके घर गया था और अब बीमार जगदीप को देखने आया था। जगदीप ने अपनी बीमारी की बात मुझसे इसलिये छिपाई थी कि मैं अम्मा (यानी पत्नी) की तबियत को लेकर पहले से परेशान था। यह जगदीप की संवेदनशीलता थी जो उसके व्यक्तित्व की खूबी थी।

उसका इलाज चल रहा था और वह सामान्य था। कुछ बीमारियाँ ऐसी होती हैं जो ठीक तो नहीं हो सकती लेकिन लगातार इलाज से उसे नियंत्रित किया जा सकता है। जगदीप इसी स्टेज में था और हम सबको यही उम्मीद थी कि उसे कुछ नहीं होगा। अचानक उसे कुछ तकलीफ हुई और इलाज के दौरान वह सबसे विदा हो गया। यह इतना अप्रत्याशित था कि अब भी यह मानने को मन तैयार नहीं कि जगदीप हमारे बीच नहीं है।

जगदीप काम व रिश्तों की इमानदारी का मिसाल था जिसने पूरी खामोशी के साथ अपनी ऐसी पहचान पत्रकारिता में छोड़ी है जिस पर गौर करना नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिये सीखने योग्य है। ‘नया इंडिया’ के प्रधान संपादक हरिशंकर व्यास तथा अखबार के उनके सहयोगी जगदीप की बीमारी के दौरान जिस तरह उसके साथ खड़े रहे, वह भी आज की पत्रकारिता में एक अप्रतिम उदाहरण है।

गिरिजा शंकर

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