डीजीसीए के ‘एयर सेफ़्टी डिपार्टमेंट’, ‘फ्लाइट स्टेण्डर्ड्स डिपार्टमेंट’, ‘एयरक्राफ्ट इंजीनियरिंग’ व ‘एयरवर्थिनेस डिपार्टमेंट’ जैसे विभागों को विमानों की जाँच के हर पहलू को कड़ाई से लागू करने को गम्भीरता से लेना होगा। ऐसा करने से एक ओर हवाई यात्रा करने वाले यात्री अपने को सुरक्षित महसूस करेंगे।
जब भी कभी कोई विमान हादसा होता है या होते-होते टल जाता है तो भारत का नागर विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए और एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इन्वेस्टीगेशन ब्यूरो ऐसी घटना की जाँच करते है। ऐसे मामलों में जाँच पूरी होने तक डीजीसीए उस विमान के पायलट व क्रू को ‘ग्राउंड’ कर देता है यानी उड़ान भरने पर रोक लगा देता है। सवाल है कि क्या डीजीसीए का सिर्फ़ इतना ही फ़र्ज़ है?
सवाल ये भी है कि क्या ऐसी दुर्घटनाओं के बाद की जाने वाली ऐसी जाँच में केवल एयरलाइन के स्टाफ़ की ही गलती क्यों सामने आती है? क्या डीजीसीए के अधिकारियों को हवाई जहाज़ की नियमित जाँच और रख-रखाव की ऑडिट नहीं करनी चाहिए, जो उनका फ़र्ज़ है? यदि डीजीसीए द्वारा ऐसे निरीक्षण समय-समय पर होते रहें तो ऐसे हादसे टाले जा सकते हैं।
हाल ही में भारत के एविएशन इतिहास में सबसे बड़ा हादसा अहमदाबाद में हुआ। उसके बाद से ही तमाम जानकारियाँ सामने आने लगी कि एयर इंडिया के इस विमान हादसे में किसकी गलती हो सकती है? क्या पायलट दोषी हैं? क्या विमान बनाने वाली कंपनी दोषी है? क्या एयर इंडिया के विमान की राख-रखाव करने वाली एजेंसी दोषी है? इन सभी सवालों पर फिलहाल अटकलें ही लगाई जा रही हैं क्योंकि विमान हादसे की जाँच अभी चल रही है। लेकिन कहीं पर भी आपको यह सुनने को नहीं मिलेगा कि क्या भारत का नागर विमानन महानिदेशालय यानी डीजीसीए अपना काम ज़िम्मेदारी से कर रहा था? यदि हाँ तो फिर ऐसा हादसा कैसे हो गया? यदि नहीं तो क्यों नहीं?
एयर इंडिया के बोइंग विमानों में अचानक एक के बाद एक हादसों का होना एक गंभीर मुद्दा अवश्य है। लेकिन जिस तरह इन हादसों के बाद डीजीसीए अचानक हरकत में आया है वह कई सवाल उठाता है। क्या डीजीसीए द्वारा नियमित रूप से की जाने वाली ऑडिट में कहीं चूक हुई थी? गौरतलब है कि हर विमान, चाहे वो किसी भी एयरलाइन का क्यों ना हो, उसकी नियमित जांच व रख-रखाव करना अनिवार्य होता है। हर उड़ान से पहले विमान का पूरा निरीक्षण किया जाता है।
ऐसे निरीक्षण को पहले टेक्नीशियन और उसके बाद इंजीनियर द्वारा किया जाता है। विमान जो भी कमी पाई जाती है उसे विमान की लॉगबुक में दर्ज किया जाता है। इसके साथ ही विमान में पाई गई कमी को दुरुस्त करने की एंट्री भी इसी लॉगबुक में की जाती है जिसे विमान से संबंधित सभी लोग साइन भी करते हैं। इसमें पायलट, टेक्नीशियन और इंजीनियर शामिल हैं। इतना ही नहीं इस सबके ऊपर इन लॉगबुक्स का डीजीसीए द्वारा नियमित रूप से ऑडिट भी किया जाता है। यदि इसमें कोई कमी होती है तो डीजीसीए द्वारा संबंधित एयरलाइन को नोटिस दिया जाता है।
वहीं यदि किन्हीं कारणों से डीजीसीए द्वारा ऑडिट को केवल औपचारिकता के लिए किया जाए तो अनदेखी के चलते विमान हादसा कभी भी हो सकता है। ऐसा देखा गया है कि जब भी कभी कोई बड़ा विमान हादसा होता है तो डीजीसीए तुरंत हरकत में आकर कड़े ऑडिट करने शुरू कर देता है। इन ऑडिटों में डीजीसीए यह दिखाने की कोशिश करता है कि वह किसी भी तरह की लापरवाही के प्रति शून्य सहनशीलता (ज़ीरो टॉलरेंस) रखता है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा सोचना सही है? यदि डीजीसीए के अधिकारी एयरलाइन की न सुनकर, क़ानून के हिसाब से हर एयरलाइन का नियमित व विस्तृत ऑडिट करते रहें तो डीजीसीए पर उँगलियाँ नहीं उठेंगी। पर पता नहीं किस लालच या दबाव में ये जाँच नहीं होती।
एविएशन के जानकारों के अनुसार विमान के इंजन में होने वाली कोई ख़राबी का कारण नियमित रख-रखाव का न होना है। इसके अलावा विमान के स्पेयर पार्ट की गुणवत्ता और पायलट की उचित ट्रेनिंग का न होना भी है। इन घटनाओं के पीछे डीजीसीए के अधिकारियों द्वारा ऐसी कमियों को अनदेखा करना भी एक प्रमुख कारण है। यदि डीजीसीए के अधिकारी केवल इस बात पर ज़ोर न दें कि यात्रियों की सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा तो शायद ऐसी घटनाएँ न हों।
पिछले दिनों संसद में एक प्रश्न का उत्तर देते हुए नागरिक उड्डयन मंत्री ने यह बताया कि डीजीसीए के स्वीकृत 1644 पदों में से 823 रिक्त हैं। यानी 50% से अधिक पद रिक्त हैं। इनमें से अधिकतर पद तकनीकी हैं। यह वही तकनीकी पद हैं जो विमानों की तकनीकी जांच करने में सक्षम होने चाहिए। परंतु डीजीसीए के पास यदि टेक्निकल मैनपावर की कमी है तो वो टेक्निकल ऑडिट किस हद तक कर पाएगा इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है।
फ्यूल एयरलाइन (प्राइवेट चार्टर कंपनी) हों, के साथ ‘अच्छे संबंध’ बनाए रखता है। ऐसे ‘संबंधों’ का यह नतीजा होता है कि यदि ‘अच्छे संबंधों’ वाली एयरलाइन बड़ी से बड़ी गलती क्यों न करे उसे केवल एक चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता है और किसी को कानों कान भी ख़बर नहीं होती। वहीं किसी अन्य एयरलाइन द्वारा कोई मामूली सी गलती भी हो जाए तो उसके ख़िलाफ़ कड़े से कड़े नियमों के तहत कार्यवाही की जाती है। क्या डीजीसीए बताएगा कि ऐसे दोहरे मापदंड क्यों अपनाए जाते हैं?
एक अनुमान के तहत आनेवाले दो दशकों में भारत का नागर विमानन ट्रैफ़िक 5 गुना बढ़ने की संभावना है। यदि कनाडा और न्यूज़ीलैंड की तरह हमें भी एविएशन के क्षेत्र में एक अच्छी पहचान बनानी है तो डीजीसीए के अधिकारियों को अपने स्वार्थों को दरकिनार करते हुए यात्रियों की सुरक्षा और एयरलाइन कम्पनी के विमानों की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी होगी।
डीजीसीए के ‘एयर सेफ़्टी डिपार्टमेंट’, ‘फ्लाइट स्टेण्डर्ड्स डिपार्टमेंट’, ‘एयरक्राफ्ट इंजीनियरिंग’ व ‘एयरवर्थिनेस डिपार्टमेंट’ जैसे विभागों को विमानों की जाँच के हर पहलू को कड़ाई से लागू करने को गम्भीरता से लेना होगा। ऐसा करने से एक ओर हवाई यात्रा करने वाले यात्री अपने को सुरक्षित महसूस करेंगे। वहीं दूसरी ओर एयरलाइन कम्पनियों को भी इस बात का ख़ौफ़ बना रहेगा कि छोटी सी भूल के चलते उनके ख़िलाफ़ कड़ी कार्यवाही भी हो सकती है।