राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

करूणामयी, शांत देवी महागौरी

पुराणों में माता महागौरी की महिमा का प्रचुर मात्रा में वर्णन किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। माता महागौरी को संगीत पसंद है। इनकी पूजा में नारियल, हलवा, पूड़ी का भोग लगाया जाता है। माता की पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए । माता की पूजा से समस्त रोगों से छुटकारा मिलता है। हर तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं। अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है।

30 सितंबर -शारदीय नवरात्र अष्टमी

नवरात्र के आठवें दिन माता भगवती दुर्गा के अष्टम स्वरूप महागौरी की पूजा का विधान है। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है और उनकी इस गौरता की उपमा शंख, चन्द्र और कून्द के फूल से की गयी है। माता को सफ़ेद रंग अत्यंत प्रिय है। इनके समस्त आभूषण, वस्त्र आदि भी श्वेत हैं। इसी कारण माता महागौरी को श्वेताम्बरधरा भी कहा गया है। इनका वाहन वृषभ है। ज्योतिष में इनका संबंध शुक्र ग्रह से माना जाता है। माता को संगीत से अत्यधिक प्रेम है। इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गयी है -अष्टवर्षा भवेद् गौरी।

महागौरी का दाहिना ऊपरी हाथ में अभय मुद्रा में और निचले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। बांये ऊपर वाले हाथ में डमरू और बांया नीचे वाला हाथ वर की शान्त मुद्रा में है। अपने इस चतुर्भुजा रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। इनके एक हाथ में त्रिशूल है, तो दूसरे हाथ में डमरू है, तो तीसरा हाथ वरमुद्रा में हैं और चौथा हाथ एक गृहस्थ महिला की शक्ति को दर्शाता हुआ है। महागौरी के पूजन का समय चैत्र अथवा आश्विन मास की शुक्ल पक्ष अष्टमी को प्रात: काल का उत्तम माना गया है।

पौराणिक मान्यता के अनुसार पार्वती रूप में इन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। नारद पांचरात्र के अनुसार भी इन्होंने प्रतिज्ञा की थी। गोस्वामी तुलसीदास कृत रामचरित मानस  के अनुसार भी इन्होंने शिव के वरण के लिए कठोर तपस्या का संकल्प लिया था। जिससे इनका शरीर काला पड़ गया था। इनकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब शिव ने इनके शरीर को पवित्र गंगाजल से मलकर धोया तब वह विद्युत के समान अत्यन्त कांतिमान गौर हो गया, तभी से इनका नाम गौरी पड़ा।

देवी महागौरी का ध्यान, स्रोत पाठ और कवच का पाठ करने से सोमचक्र जाग्रत होता है, जिससे संकट से मुक्ति मिलती है, और धन, सम्पत्ति और श्री की वृद्धि होती है। माता दुर्गा की आठवीं शक्ति महागौरी की शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं। भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं फटकते। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। इनके उपासना के लिए निम्न मंत्र उत्तम माना गया है-

श्वेते वृषे समारुढा श्वेताम्बरधरा शुचिः ।

महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा ।।

भगवती दुर्गा के अन्य स्वरूपों की भांति ही महागौरी स्वरूप के संबंध में भी अनेक पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार भगवती महागौरी ने देवी पार्वती रूप में भगवान शिव को पति-रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोलेनाथ के द्वारा पार्वती को देखकर कुछ कह देने से देवी का मन आहत होता है और पार्वती तपस्या में लीन हो जाती हैं। वषों तक कठोर तपस्या करने में लीन रहने के कारण पार्वती के नहीं आने पर भगवान शिव पार्वती को ढूंढते हुए उनके पास पहुँचते हैं। तपस्यारत पार्वती को देखकर शिव आश्चर्य चकित रह जाते हैं। पार्वती का रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत और कुन्द के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है। उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं।

शिवपुराण में अंकित एक अन्य कथा के अनुसार माता के मात्र आठ वर्ष की अवस्था में होने पर उन्हें अपने पूर्व जन्म की घटनाओं का आभास हो गया था और आठ वर्ष की उम्र में ही उन्होंने शिव को पति के रूप में पाने के लिए तपस्या करनी शुरू कर दी थी। माता की तपस्या इतनी कठोर थी की, इनका पूरा शरीर काला पड़ गया था। महागौरी की उपासना से भोलेनाथ अत्यधिक प्रसन्न हुए और देवी को पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तत्पश्चात शिव ने माता के शरीर को गंगाजल से धोया और तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो गयीं। तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी के स्वरूप में माता का यह रूप अत्यंत दिव्य है। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण थकते नहीं हैं-

सर्वमंगल मांगल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके।

शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।

महागौरी से संबंधित एक अन्य प्रचलित कथा के अनुसार एक अत्यंत भूखा सिंह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा, जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी, परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आती है। माता उसे अपना सवारी बना लेती हैं, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं। पौराणिक मान्यतानुसार अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी माता को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है। जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक माता की पूजा करने का विधान है, ठीक उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी प्रत्येक दिन की तरह देवी की पंचोपचार सहित पूजा करने का विधान है।

महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है। इसलिए भक्तों को सदैव इनका ध्यान करना चाहिए। इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है। मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए। महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं। इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए सर्वविध प्रयत्न करना चाहिए। पुराणों में माता महागौरी की महिमा का प्रचुर मात्रा में वर्णन किया गया है। ये मनुष्य की वृत्तियों को सत की ओर प्रेरित करके असत का विनाश करती हैं। माता महागौरी को संगीत पसंद है। इनकी पूजा में नारियल, हलवा, पूड़ी का भोग लगाया जाता है। माता की पूजा करते समय गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए । माता की पूजा से समस्त रोगों से छुटकारा मिलता है। हर तरह की बाधाएं दूर हो जाती हैं। अष्टमी के दिन कन्या पूजन करना श्रेष्ठ माना जाता है।

नवरात्रि के नौ दिनों तक कुंवारी कन्याओं को भोजन करवाने का विधान है, लेकिन अष्टमी के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन माता को चुनरी भेट करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है। विवाह संबंधी तमाम बाधाओं के निवारण में इनकी पूजा अचूक मानी गई है। सुंदर व सुशील वर की प्राप्ति हेतु कन्याओं को माता गौरी के मंदिर में जाकर पहले जल व फूल अर्पित कर कालरात्रि ध्यान मंत्र का जाप उत्तम माना गया है। नवरात्रि पर महागौरी की उपासना करने से कुंडली में विवाह संबंधी परेशानियां दूर होती हैं तथा मनोवांछित वर की प्राप्ति होती है। शीघ्र विवाह होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता गौरी की उपासना मुख्यत: मनचाहा वर प्राप्त करने के लिए की जाती है। रामायण में भी इस बात का उल्लेख मिलता है कि देवी सीता ने प्रभु श्रीराम को पति के रूप में पाने की कामना करते हुए माता गौरी की पूजा अर्चना की थी।

देवी गौरी के दूसरे रूप पार्वती ने भी शिव को पाने के लिए यह पूजा की थी। गौरी की पूजा करने से दांपत्य जीवन की सभी बाधाएं दूर होतीं और घर में धन धान्य बढ़ता है। मान्यतानुसार माता अपने इस रूप में आठ वर्ष की हैं, इसलिए नवरात्रि की अष्टमी को कन्या पूजन की परंपरा है। सुहागन स्त्रियों के द्वारा माता को लाल चुनरी चढ़ाने से माता प्रसन्न होती है और अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्रदान करती है। अष्टमी के दिन माता  को नारियल का भोग लगाकर नारियल को सिर से घुमाकर बहते हुए जल में प्रवाहित कर देने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

महागौरी की पूजा से मधुमेह तथा आंखों की प्रत्येक प्रकार की समस्या से छुटकारा मिलता है तथा समस्त बाधाएं दूर होती हैं। महागौरी को दूध से भरी कटोरी में रखकर चांदी का सिक्का अर्पित करने के बाद माता से धन के बने रहने की प्रार्थना करना चाहिए। सिक्के को धोकर हमेशा के लिए अपने पास रख लेना चाहिए। नवरात्र के आठवें  दिन आप पूजा में गुलाबी  रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। इस दिन को सूर्य से संबंधित  पूजा के लिए सर्वोत्तम माना गया है।

By अशोक 'प्रवृद्ध'

सनातन धर्मं और वैद-पुराण ग्रंथों के गंभीर अध्ययनकर्ता और लेखक। धर्मं-कर्म, तीज-त्यौहार, लोकपरंपराओं पर लिखने की धुन में नया इंडिया में लगातार बहुत लेखन।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *