nayaindia free revadi or welfare schemes रेवड़ियों और कल्याणकारी योजनाओं

रेवड़ियों और कल्याणकारी योजनाओं का अजब रिश्ता

pm narendra Modi
pm narendra Modi

देखा यह गया है कि रेवड़ियां बांटते बांटते कई योजनाएं कल्याणकारी योजना बन गईं, जिन पर केंद्र और राज्य सरकार बजट द्वारा नियमित धान आवंटित करते हैं। एक और पहलू है, जब पंजाब प्रांत में अकाली दल ने किसानों के लिए मुफ्त बिजली का प्रावधान करने की बात कही, तो अन्य दलों ने इसे अस्वीकार किया लेकिन एक दशक बाद, कांग्रेस पार्टी ने आंध्र प्रदेश में इसी तर्ज पर वादा कर डाला। अब इसे देश के कई राज्यों में लागू किया गया है। free revadi or welfare schemes

केवी प्रसाद

अगले कुछ ही दिन में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज जाएगा। तब से लेकर चुनाव संपन्न होने तक पूरे देश में और अलग अलग राज्यों में भी, राजनीतिक दल जनता को अपनी ओर आकर्षित करने के लिया लोक लुभावन वादे करेंगे। कई दशकों से यह देखा गया कि चुनाव का प्रचार करते समय, पार्टियां बड़े-बड़े वादे करती हैं और फिर चुनाव जीतने के बाद कुछ तो कागज पर ही रह जाती हैं। अन्य योजनाओं को कार्यान्वित करते समय सरकारों को कठिनाई का सामना करना पड़ता है। इसमें सबसे प्रमुख कारण है, आर्थिक परिस्थिति खास तौर पर जब राज्य सरकार की गुल्लक खाली होती है या आय से कहीं अधिक मात्रा में व्यय की स्थिति का सामना करना पड़ता है।

अब ऐसे में, पिछले सप्ताह मुख्य चुनाव आयोग राजीव कुमार का एक वक्तव्य ध्यान आकर्षित करता है। चेन्नई में दौरे पर गए राजीव कुमार ने कहा की राजनीतिक दलों को चुनावी घोषणा पत्रों में वादे करने का हक है लेकिन जनता को भी यह अधिकार है कि वह यह जाने की योजनाओं को पूर्ण करने के लिया क्या सरकार आर्थिक तौर से समर्थ है। यह भी कहा कि, आयोग ने तो एक प्रोफॉर्मा बनाया है, जिसमे राजनीतिक दलों को अपने वादों को सपष्ट करना होगा। लेकिन यह मुकदमा न्यायालय में विचाराधीन है। free revadi or welfare schemes

केजरीवाल को अब समन पर जाना होगा

इधर पिछले कुछ महीनों से ‘रेवड़ी’ बाटने के विरुद्ध स्वर उठ रहे हैं। राज्यों में विधानसभा  के चुनाव से पहले, कहीं साइकिल तो कहीं कंप्यूटर मुफ्त देने की बात होती है, तो कहीं वॉशिंग मशीन तो कहीं ग्राइंडर-मिक्सर देने की बात रखी जाती है। देखा गया है अब इसका दायरा बढ़ता जा रहा है। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, सार्वजनिक बसों में कुछ वर्गों के लिए बिना टिकट यात्रा या बेरोजगार युवाओं के लिया भत्ते भी शामिल हो गए हैं। कई राज्यों में तो इसका प्रभाव चुनावी नतीजों पर पड़ा है।

ऐसे मैं यह सवाल उठता है कि अगर देश में एक वर्ग आयकर भर अपने परिश्रम का हिस्सा देश की उन्नति के लिया चुका रहा है, तो राजनीतिक दल लोक लुभावने वादे करने की बजाय इस धन का इस्तेमाल रचनात्मक कार्यों या बुनयादी ढांचे के विकास पर क्यों नहीं करती है? लेकिन यह वर्ग, जिसमें माध्यम वर्ग का स्वर प्रबल है, उसका देश में मात्र दो या ढाई प्रतिशत आबादी ही आय कर देता है। वे इस बात पर कम ध्यान देते हैं कि आज के युग में हर वर्ग देश में कर अदा कर रहा है। पहले बिक्री कर के माध्यम से भारी भरकम कर अदा करते थे तो अब वस्तु और सेवा कर यानी जीएसटी भर रहे हैं।

राज्यसभा में सौ से पीछे रह गई भाजपा

बहरहाल, यह एक बड़ा सवाल है कि देश में क्या एक स्वस्थ राजनीतिक प्रयोग नहीं किया जा सकता है, जिसमें कोई भी दल ऐसा कोई भी वादा न करे, जिससे राजनीतिक वातावरण दूषित हो? लेकिन इसी के साथ पहलू है कि, चूंकि भारत एक कल्याणकारी राष्ट्र है, तो देश के हर वर्ग को खास कर आर्थिक तौर से पिछड़े लोगों के लिए ऐसी नीति बनाने की भी जरुरत है ताकि वह लोग भी देश की मुख्यधारा से जुड़ सकें! दिलचस्प बात यह है भारतीय राजनीतिक इतिहास को देखें तो आज देश में कई कल्याणकारी योजनाएं राज्य या केंद्र सरकारें चला रही हैं, उनकी नींव ऐसे ही वादों पर खड़ी है। free revadi or welfare schemes

मिसाल के तौर पर जब 1956 में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के कामराज ने तमिलनाडु के स्कूली बच्चों के लिए दोपहर के भोजन का कानून बनाया और बाद में द्रमुक नेता सी अन्नादुरैई ने चुनावी वादा किया, तो शायद ही सोचा होगा की तीन दशक बाद यह एक राष्ट्रीय नीति का रूप धारण कर लेगी। उनके सामने एक ही लक्ष्य था, गरीब बच्चों को, कम से कम एक समय, पौष्टिक आहार मिले और साथ ही साथ वो साक्षर भी हो जाएं। तीन दशक बाद यह राष्ट्रीय कार्यक्रम बन गया और शिक्षा के साथ बच्चों में कुपोषण को खत्म कर एक स्वस्थ समाज की नींव भी रखी जा रही है।

राहुल क्या वायनाड से लड़ेंगे?

ठीक इसी तरह, जब 1982-83 में, अविभाजित आंध्र प्रदेश में चुनावी दंगल में पहले बार अपनी पार्टी तेलुगू देशम की और से नंदमुरी तारक रामाराव ने, मात्र दो रुपए में एक किलो चावल देने का वादा किया, तो सब ने कहा यह हो नहीं सकता। तत्कालीन कांग्रेस के मुख्यमंत्री विजय भास्कर रेड्डी ने इस पर अतिशीघ्र अमल किया।

यह अलग बात है कि वे विधानसभा चुनाव हार गए और आज गरीब कल्याण योजना में तो मुफ्त में गेहूं और अनाज का प्रावधान है। दूसरी ओर, एक राज्य में बालिका छात्रों को साइकिल दिया गया, तो यह पाया गया की स्कूल में इनकी उपस्थिति बढ़ गई तो मोबाइल फोन और टैबलेट जैसे उपकरणों का लाभ वर्चुअल शिक्षा काल में पाया गया। free revadi or welfare schemes

दुनिया और भारत के किसान आंदोलन का फर्क

देखा यह गया है कि रेवड़ियां बांटते बांटते कई योजनाएं कल्याणकारी योजना बन गईं, जिन पर केंद्र और राज्य सरकार बजट द्वारा नियमित धान आवंटित करते हैं। एक और पहलू है, जब पंजाब प्रांत में अकाली दल ने किसानों के लिए मुफ्त बिजली का प्रावधान करने की बात कही, तो अन्य दलों ने इसे अस्वीकार किया लेकिन एक दशक बाद, कांग्रेस पार्टी ने आंध्र प्रदेश में इसी तर्ज पर वादा कर डाला। अब इसे देश के कई राज्यों में लागू किया गया है। सो, इस बार के चुनाव में भी रेवड़ियां बनाम कल्याणकारी योजना के मुद्दे पर गरमा-गरम भाषण होंगे औपर बहस चलेगी।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

सिंघवी क्या झारखंड से राज्यसभा जाएंगे?

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें