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सिक्किम में धूमधाम से मनेगा मोदी का जन्मदिन

सुदूर सिक्किम में उनका जन्मदिन भविष्य की उम्मीदों के साथ मनाया जाएगा। सिक्किम के मुख्यमंत्री  प्रेम सिंह तामंग (गोले) ने प्रधानमंत्री के 75वें जन्मदिन के अवसर पर अनेक प्रकार के उत्सवों की तैयारी की है। सिक्किम के लिए यह सिर्फ उत्सव का अवसर नहीं है, बल्कि इस अवसर पर जन कल्याण की अनेक योजनाएं आरंभ होंगी।  प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 11 साल पूरे किए और इस पद पर लगातार इतने वर्षों तक रहने वाले दूसरे नेता बने।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 17 सितंबर को 75 वर्ष के हो रहे हैं। उनको जन्मदिन की बहुत बधाई। राजधानी दिल्ली से लेकर सुदूर सिक्किम तक उनका जन्मदिन पूरे उत्साह और भविष्य की उम्मीदों के साथ मनाया जाएगा। सिक्किम के मुख्यमंत्री  प्रेम सिंह तामंग (गोले) ने  प्रधानमंत्री के 75वें जन्मदिन के अवसर पर अनेक प्रकार के उत्सवों की तैयारी की है। सिक्किम के लिए यह सिर्फ उत्सव का अवसर नहीं है, बल्कि इस अवसर पर जन कल्याण की अनेक योजनाएं आरंभ होंगी।

प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 11 साल पूरे किए और इस पद पर लगातार इतने वर्षों तक रहने वाले दूसरे नेता बने। उससे पहले वे करीब 13 साल गुजरात के मुख्यमंत्री रहे। इस तरह सत्ता के शीर्ष पदों पर 24 साल की अनवरत यात्रा अभी जारी है। उससे पहले भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पदाधिकारी व प्रचारक के तौर पर भी वे दशकों तक जन सेवा से जुड़े रहे। वह भी बिना किसी पद की लालसा के। कई लेखकों ने अपनी किताबों में 1995 में भाजपा की गुजरात जीत का श्रेय नरेंद्र मोदी को दिया है और माना है कि उस समय वे चाहते तो मुख्यमंत्री बन सकते थे। परंतु उन्होंने पार्टी को जीत दिलाई और रमता जोगी की तरह आगे बढ़ गए। इससे प्रमाणित होता है कि राजनीति उनके लिए सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं रही। वे इसे सेवा का माध्यम मानते रहे। तभी प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपने को प्रधान सेवक कहा।

ध्यान रहे 11 साल पहले प्रधानमंत्री के रूप में उनको कांटों का ताज मिला था। भारत की पिछली सरकार चौतरफा भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी थी। सरकार और सिस्टम के ऊपर से लोगों का भरोसा टूट रहा था। प्रधानमंत्री कार्यालय से इतर संविधानेत्तर सत्ता के सरकार चलाने की धारणा बनी थी। सरकार के निर्णय करने में अक्षमता की वजह से कामकाज ठप्प था। महंगाई चरम पर थी। ऐसे समय में नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभाला और देश के लोगों को भरोसा दिलाया कि अच्छे दिन आएंगे। आज 11 साल के बाद देश में सिर्फ राजनीतिक स्थिरता नहीं है, बल्कि सरकार और व्यवस्था में लोगों का भरोसा मजबूत हुआ है। सरकार के प्रति विश्वास बढ़ा है। भारत आत्मनिर्भर हुआ है और 2047 तक विकसित बनने की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है और जल्दी ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थवस्था वाला देश बन जाएगा।

देश की अर्थव्यवस्था का आकार बढ़ने के साथ साथ आम लोगों के जीवन को बेहतर बनाने  में भी सरकार की भूमिका बढ़ी है। आज भारत सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराने वाला दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत की 64 फीसदी आबादी यानी करीब 94 करोड़ लोगों को किसी न किसी सामाजिक सुरक्षा की योजना का लाभ मिल रहा है। नागरिक अपने को असहाय नहीं समझ रहे हैं। सरकार उनको सशक्त बना रही है। रोजगार के नए अवसर बन रहे हैं। भारत निवेश के लिए एक आकर्षक गंतव्य के तौर पर उभर रहा है। वैश्विक व्यवस्था में भारत अब एक बड़े प्लेयर के तौर पर स्थापित हुआ है। इसके अनेक लाभ हैं तो कई नुकसान भी हैं, कई समस्याएं भी हैं लेकिन  प्रधानमंत्री   नरेंद्र मोदी अपने अनुभव और अपने ज्ञान से उन समस्याओं को सुलझाते हुए देश को आगे ले जा रहे हैं।

पिछले 11 वर्षों में भारत में हुई घटनाओं और अपने पड़ोस में हो रही घटनाओं का तुलनात्मक अध्ययन करें तो समझ में आता है कि भारत को कितना परिपक्व, लोकतांत्रिक और समावेशी नेता मिला है, जिसने हर मुश्किल से देश को बचाया और अपने नागरिकों की  रक्षा की। पाकिस्तान और अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश और  लंका से लेकर नेपाल तक का घटनाक्रम यह बताने के लिए पर्याप्त है दुनिया के तमाम विकासशील लोकतांत्रिक देश किस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। तख्तापलट, हिंसा, अराजकता, आर्थिक बिखराव सब कुछ इन देशों में देखने को मिला। बांग्लादेश तो एक समय आर्थिक विकास का मॉडल बन कर उभरा था लेकिन स्थितियां ऐसी बनीं कि वहां की प्रधानमंत्री को देश छोड़ कर भागना पड़ा।  लंका में महंगाई इतनी बढ़ गई और आवश्यक वस्तुओं की ऐसी किल्लत हुई कि लोग सड़कों पर उतर गए और राष्ट्रपति को पूरे परिवार के साथ भागना पड़ा। यही कहानी नेपाल में दोहराई गई, जहां अवसर की कमी और भविष्य की अनिश्चितता से जूझ रहे नौजवान सड़कों पर उतरे और सरकार के एक फैसले से ऐसी चिंगारी भड़की, जिसमें सब कुछ जल कर खाक हो गया।

अपने पड़ोस में हुई इन घटनाओं को जब भारत के संदर्भों से जोड़ कर देखते हैं तब समझ में आता है कि समय की कसौटी पर खरा उतरने वाला नेतृत्व कैसा होता है। पिछले 11 वर्षों में  प्रधानमंत्री और राष्ट्र के सामने कम चुनौतियां नहीं आईं। परंतु हर चुनौती को उन्होंने बड़े संयम और संतुलित फैसलों से सुलझाया। पहले की सरकारें तुष्टिकरण या भय  की वजह से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 समाप्त करने का निर्णय नहीं कर पाती थीं। यह भय और भ्रम फैलाया गया था कि खून की नदियां बह जाएंगी। परंतु  प्रधानमंत्री ने यह फैसला किया और खून की नदियां छोड़ दीजिए, पत्थरबाजी के लिए कुख्यात रहे जम्मू कश्मीर में एक पत्थर तक नहीं चला। ऐसे ही सहज रूप से अयोध्या में भगवान  राम का भव्य मंदिर बन गया और उसका उद्घाटन भी हो गया। ये दोनों दशकों तक चले संघर्ष के मुद्दे थे, जिन्हें सहज भाव से सुलझा दिया गया।

अगर चुनौतियों की बात करें तो नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए पर हुए विरोध प्रदर्शन से लेकर कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन और अभी मतदान में कथित गड़बड़ियों को लेकर पराजित और पस्त विपक्ष की ओर से चलाए जा रहे आंदोलन तक एक लंबी सूची बन जाएगी। ऐसे हर मौके पर  प्रधानमंत्री ने पहले से अधिक संयम दिखाया और एक भी ऐसा निर्णय नहीं किया, जिससे देश के अंदर या बाहर की भारत विरोधी शक्तियों को आग लगाने का अवसर मिले। कई बार ऐसे अवसर आए, जब राष्ट्रवादी और हिंदुवादी विचारकों या आम नागरिकों को भी लगा कि सरकार क्यों नहीं कोई सख्त कदम उठाती है। लेकिन अब बाद में यानी रेट्रोस्पेक्टिव दृष्टि से देखने पर समझ में आता है कि कोई सख्त कदम नहीं उठाने का निर्णय कितना दूरदर्शी था।

याद करें कैसे किसान आंदोलन के दौरान एक समय ऐसा आया था कि जिस समय देश गणतंत्र का उत्सव मना रहा था कि उसी समय हजारों की भीड़ राजधानी में घुस गई थी और लोग लाल किले पर चढ़ गए थे। अपने घरों में टेलीविजन पर इसकी तस्वीरें देख कर लोगों का खून खौल रहा था और लोग सोच रहे थे कि सरकार क्यों नहीं इस पर कार्रवाई कर रही। आज जब हम कोई कार्रवाई नहीं किए जाने के उस फैसले पर सोचते हैं तो समझ में आता है कि उस समय पुलिस की बंदूक से चली एक गोली कैसा उन्माद पैदा कर सकती थी! भीड़ लाल किले से संसद की ओर भी मुड़ सकती थी, जैसा हम लोगों ने अभी नेपाल में और कुछ समय पहले बांग्लादेश में देखा।

उससे पहले सीएए के सवाल पर देश के हर जिले में शाहीन बाग बनाने की तैयारी भी देश ने देखी और तब भी प्रधानमंत्री के धैर्य की परीक्षा थी। उस समय भी उन्होंने देश को एक बड़े संकट से बचाया। पिछले 11 वर्ष में ऐसे कई मौके आए, जब देश की अर्थव्यवस्था को ठप्प करने, सामाजिक ताने बाने को नुकसान पहुंचाने,  संस्थाओं की साख बिगाड़ने और वैश्विक स्तर पर भारत को बदनाम करने के प्रयास हुए। परंतु  प्रधानमंत्री ने ऐसे हर प्रयास को विफल बनाया और विकसित भारत की यात्रा जारी रखी। (लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तामंग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

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