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आवारा कुत्तों की समस्या और सुप्रीम कोर्ट

इस 11 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या पर स्वत: संज्ञान लेते हुए यह आदेश जारी किया कि दिल्ली सरकार और स्थानीय निकायों को अगले छह से आठ सप्ताह के भीतर सभी आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय स्थलों में स्थानांतरित करें, उनकी नसबंदी करें और टीकाकरण सुनिश्चित करें। कोर्ट ने स्थिति को “बेहद गंभीर” बताते हुए कहा कि बच्चों और बुजुर्गों को आवारा कुत्तों के हमलों से बचाना अत्यंत आवश्यक है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, दिल्ली में इस साल जनवरी से जून तक 35,198 कुत्तों के काटने के मामले दर्ज किए गए, जिनमें 49 रेबीज के मामले भी शामिल हैं।

रेबीज, एक जानलेवा बीमारी है और भारत वैश्विक रेबीज मृत्यु दर का 36% हिस्सा लेता है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम में तत्काल प्रभाव से कुत्तों को पकड़ने, उनकी नसबंदी और टीकाकरण करने और उन्हें आश्रय स्थलों में रखने की प्रक्रिया शुरू की जाए। इसके साथ ही, कोर्ट ने एक हेल्पलाइन स्थापित करने और आश्रय स्थलों में सीसीटीवी निगरानी सुनिश्चित करने का भी आदेश दिया।

पशु प्रेमी, जो जानवरों के कल्याण के प्रति संवेदनशील होते हैं, उन्हें इस निर्णय को एक सकारात्मक कदम के रूप में देखना चाहिए। यह आदेश केवल कुत्तों को सड़कों से हटाने की बात नहीं करता, बल्कि उनके लिए एक सुरक्षित और मानवीय वातावरण प्रदान करने पर भी जोर देता है। नसबंदी और टीकाकरण जैसे कदम न केवल कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करेंगे, बल्कि उनके स्वास्थ्य को भी बेहतर बनाएंगे। सड़कों पर रहने वाले कुत्ते अक्सर भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाओं की कमी से जूझते हैं, जिसके कारण वे आक्रामक हो सकते हैं। आश्रय स्थलों में उन्हें नियमित भोजन, चिकित्सा देखभाल और सुरक्षित स्थान मिलेगा, जो उनके जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाएगा।

वहीं सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए सरकार को कई महत्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। यह न केवल दिल्ली-एनसीआर के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए एक मॉडल बन सकता है। कोर्ट ने शुरूआत में 5,000 कुत्तों के लिए आश्रय स्थलों के निर्माण का आदेश दिया है। दिल्ली में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्तों को देखते हुए, यह संख्या अपर्याप्त हो सकती है। सरकार को बड़े पैमाने पर आधुनिक आश्रय स्थल बनाने होंगे, जो स्वच्छता, भोजन और चिकित्सा सुविधाओं से सुसज्जित हों। इन आश्रय स्थलों में पशु चिकित्सकों और प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति आवश्यक है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 70% से अधिक कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण रेबीज को नियंत्रित करने में प्रभावी है। दिल्ली सरकार को एक त्वरित और व्यापक अभियान चलाना होगा, जिसमें गैर-सरकारी संगठनों और पशु कल्याण संगठनों का सहयोग लिया जाए। गोवा का “मिशन रेबीज” इस दिशा में एक सफल उदाहरण है, जिसने रेबीज को नियंत्रित करने में उल्लेखनीय सफलता हासिल की।

इसके अलावा कोर्ट ने एक हेल्पलाइन स्थापित करने का निर्देश भी दिया है, जो कुत्तों के काटने की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करे। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह हेल्पलाइन 24/7 सक्रिय रहे और शिकायत मिलने पर चार घंटे के भीतर कार्रवाई हो। रेबीज और कुत्तों के काटने से बचाव के लिए जनता को जागरूक करना आवश्यक है। सरकार को स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में जागरूकता अभियान चलाने चाहिए, जिसमें लोगों को बताया जाए कि रेबीज से बचने के लिए तुरंत चिकित्सा सहायता लेना कितना महत्वपूर्ण है। साथ ही, लोगों को सड़कों पर कुत्तों को भोजन न देने के लिए प्रेरित करना होगा, क्योंकि यह उनकी आबादी को बढ़ाने का कारण बनता है।

वर्तमान में, पशु जन्म नियंत्रण (ABC) नियम, 2023 के तहत नसबंदी के बाद कुत्तों को उसी स्थान पर छोड़ना अनिवार्य है। यह नियम कई बार प्रभावी नहीं होता, क्योंकि यह आक्रामक कुत्तों को नियंत्रित करने में बाधा बनता है। सरकार को इन नियमों में संशोधन करना चाहिए ताकि खतरनाक कुत्तों को आश्रय स्थलों में रखा जा सके। यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी होगी कि इस प्रक्रिया में कुत्तों के साथ कोई क्रूरता न हो। आश्रय स्थलों में कुत्तों को पर्याप्त भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाएं मिलनी चाहिए। पशु कल्याण संगठनों को इस प्रक्रिया में शामिल करना महत्वपूर्ण है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कुत्तों के साथ मानवीय व्यवहार किया जा रहा है।

सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या को हल करने और रेबीज को नियंत्रित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यदि इसे प्रभावी रूप से लागू किया जाए तो इस समस्या पर काफ़ी हद तक नियंत्रण किया जा सकेगा। उल्लेखनीय है कि दुनिया भर में केवल नीदरलैंड ही एक ऐसा देश है जहां पर आपको आवारा कुत्ते नहीं मिलेंगे। नीदरलैंड सरकार ने एक अनूठा नियम लागू किया।

किसी भी पालतू पशु की दुकान से ख़रीदे गये महेंगी नसल के कुत्तों पर वहाँ की सरकार भारी मात्रा में टैक्स लगती है। वहीं दूसरी ओर यदि कोई भी नागरिक इन बेघर पशुओं को गोद लेकर अपनाता है तो उसे आयकर में छूट मिलती है। इस नियम के लागू होते ही लोगों ने अधिक से अधिक बेघर कुत्तों को अपनाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे नीदरलैंड की सड़कों व मोहल्लों से आवारा कुत्तों की संख्या घटते-घटते बिलकुल शून्य हो गई। दुनिया भर के पशु प्रेमी संगठनों ने इस कार्यक्रम को सबसे सुरक्षित और असरदार माना है। इस कार्यक्रम से न सिर्फ़ आवारा कुत्तों की जनसंख्या पर रोक लगती है बल्कि आम नागरिकों को भी इस समस्या से निजाद मिलता है। हमारे देश ऐसा कब होगा यह तो आनेवाला समय ही बताएगा।

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By रजनीश कपूर

दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक। नयाइंडिया में नियमित कन्ट्रिब्यटर।

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