नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 60 करोड़ से अधिक लोग पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि जल संकट की जड़ें कहाँ हैं और इसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं। भारत में जल संकट कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह और गहरा गया है।
भारत में प्राचीन काल से नदियों को पूजा जाता रहा है। जल को अमृत माना गया है। यह भी कहा जाता है कि जल ही जीवन है। परंतु आज देश भर में गंभीर जल संकट स्थिति बनी हुई है। बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन ने देश के जल संसाधनों पर अभूतपूर्व दबाव डाला है। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 60 करोड़ से अधिक लोग पानी की गंभीर कमी का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यह समझना जरूरी है कि जल संकट की जड़ें कहाँ हैं और इसे दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।
भारत में जल संकट कोई नई समस्या नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह और गहरा गया है। देश के कई हिस्सों में भूजल स्तर तेज़ी से गिर रहा है। पंजाब, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्य, जो कृषि के लिए जाने जाते हैं, अब पानी की कमी से जूझ रहे हैं। चेन्नई, बेंगलुरु और दिल्ली जैसे बड़े शहरों में गर्मियों के दौरान पानी के लिए हाहाकार मच जाता है। नदियाँ, जो कभी जीवनदायिनी मानी जाती थीं, अब प्रदूषण और अतिक्रमण की शिकार हो रही हैं। गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियाँ भी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। सरकारें आती-जाती रहीं पर नदियों की किसी ने नहीं सोची।
जलवायु परिवर्तन ने इस संकट को और बढ़ाया है। अनियमित मानसून, सूखा और बाढ़ की घटनाएँ अब आम हो गई हैं। भारत में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1951 में 5,177 क्यूबिक मीटर थी, जो अब घटकर 1,545 क्यूबिक मीटर रह गई है। यह आँकड़ा देश को “जल तनाव” की श्रेणी में खड़ा कर देता है। यदि यही स्थिति रही, तो आने वाले दशकों में भारत “जल संकटग्रस्त” देश बन सकता है।
जल संकट के पीछे कई कारण हैं। पहला और सबसे बड़ा कारण है जल का अंधाधुंध दोहन होना। खेती के लिए भूजल का ट्यूबवेल और बोरवेल के जरिए, ने प्राकृतिक भूजल के स्तर को खतरनाक रूप से कम कर दिया है। दूसरा कारण है जल संसाधनों का प्रदूषण। औद्योगिक कचरा, सीवेज और रासायनिक खाद नदियों और झीलों को जहरीला बना रहे हैं।
दिन प्रतिदिन बढ़ता हुआ शहरीकरण भी इस संकट को और बढ़ा रहा है। कंक्रीट के जंगल बनने से वर्षा का जल जमीन में नहीं रिस पाता, जिससे भूजल पुनर्भरण प्रभावित होता है। इसके अलावा, जल प्रबंधन में कमी और नीतियों का ठीक से लागू न होना भी एक बड़ी समस्या है। लोग पानी को मुफ्त संसाधन समझकर उसकी बर्बादी करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सिंचाई के लिए पुरानी और अकुशल तकनीकों का इस्तेमाल अभी भी जारी है।
जल संकट का असर हर क्षेत्र पर पड़ रहा है। कृषि, जो भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, पानी की कमी से प्रभावित हो रही है। किसानों को फसल नुकसान और कर्ज के बोझ का सामना करना पड़ रहा है। शहरों में पानी की किल्लत से लोग टैंकर माफिया पर निर्भर हो गए हैं। स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है, क्योंकि प्रदूषित पानी से बीमारियाँ फैल रही हैं।
सामाजिक स्तर पर जल संकट तनाव और संघर्ष को जन्म दे रहा है। नदियों के पानी को लेकर राज्यों के बीच कावेरी और यमुना जल बंटवारे का विवाद, इसका एक बड़ा उदाहरण है। यदि समय रहते इस समस्या का समाधान न हुआ, तो यह देश की शांति और विकास के लिए खतरा भी बन सकता है।
जल संकट से निपटने के लिए ठोस और त्वरित कदम उठाने की जरूरत है। सबसे पहले, जल संरक्षण को जन आंदोलन बनाना होगा। वर्षा जल संचयन (रेनवाटर हार्वेस्टिंग) को हर घर, स्कूल और ऑफिस में अनिवार्य करना चाहिए। सरकार ने “जल शक्ति अभियान” शुरू अवश्य किया है, लेकिन इसे और अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत है। ज़रूरत है पारंपरिक जलस्रोतों को संरक्षित कर उनका जीर्णोद्धार करना। पौराणिक कुंडों को साफ़ सुथरा कर वर्षा के जल संचय का एक बड़ा स्रोत बनाया जा सकता है। इससे भूजल का स्तर भी सुधरेगा।
कृषि में पानी की बचत के लिए ड्रिप इरिगेशन और स्प्रिंकलर जैसी आधुनिक तकनीकों को बढ़ावा देना होगा। साथ ही, फसलों के चयन में बदलाव लाकर कम पानी वाली फसलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उद्योगों को अपशिष्ट जल को शोधन करके दोबारा इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
नदियों और जलाशयों को प्रदूषण से बचाने के लिए सख्त कानून और उनकी निगरानी जरूरी है। लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए स्कूलों में जल संरक्षण कायक्रम का हिस्सा बनाया जा सकता है।
सरकार को जल प्रबंधन के लिए दीर्घकालिक नीतियाँ बनानी होंगी। नदियों को जोड़ने की परियोजना, यदि ठीक से लागू हो, तो पानी के असमान वितरण को कम कर सकती है। साथ ही, भूजल के उपयोग पर नियंत्रण के लिए कानून बनाना भी जरूरी है। लेकिन यह सब तभी संभव होगा जब समाज भी अपनी जिम्मेदारी समझे और उसे निष्ठा से निभाए। हर नागरिक को पानी की एक-एक बूँद बचाने का संकल्प लेना होगा।
जल संकट भारत जैसे हर देश के सामने एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह असाध्य नहीं है। यदि हम आज से ही संरक्षण और प्रबंधन पर ध्यान दें, तो आने वाली पीढ़ियों के लिए जल की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। भारत की संस्कृति में जल को देवता माना गया है, और अब समय आ गया है कि हम इसे सिर्फ पूजा तक सीमित न रखें, बल्कि इसके संरक्षण को जीवन का हिस्सा बनाएँ। यह संकट एक अवसर भी है, अवसर एकजुट होने का, नवाचार करने का और एक बेहतर भविष्य बनाने का। इसलिए इस दिशा में कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है जिससे कि नागरिक और सरकार दोनों मिलकर भारत को जल संकट से मुक्त करा सकें।