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15-06-2025 Vol 19

राष्ट्र, धर्म और प्रगति की कसौटी वाला वर्ष…

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20 जनवरी 2024 को रामलला भव्य मंदिर में विराजमान हुए थे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भव्य राम मंदिर का उद्घाटन करके सनातनधर्मियों का गौरव बढ़ाया। इस अवसर पर अयोध्या से उठा जयघोष पूरे विश्व में गुंजायमान हुआ। यह सनातन धर्म के पांच हजार साल के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ गौरवशाली उपलब्धियों में से एक है। सहस्त्राब्दियों तक इस क्षण का स्मरण किया जाएगा और 2024 का वर्ष भी याद रखा जाएगा।

वर्ष 2024 का प्रारंभ जिस सकारात्मकता, राष्ट्र व धर्म की विशिष्ट उपलब्धि, राजनीतिक विजय और विकास की संभावनाओं के साथ हुआ था उसका समापन भी वैसी ही सकारात्मकता के साथ हुआ है। कहते हैं कि अंत भला तो सब भला! इस वर्ष का प्रारंभ भी भला था और अंत भी भला हुआ, जिससे अगले वर्ष और आगे के अनेक वर्षों के लिए राष्ट्र की उन्नति, धर्म की स्थापना और भौतिक विकास की संभावनाओं को सुनहरे पंख लगे हैं। वर्ष का आरंभ अयोध्या में भगवान श्री राम की जन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य श्री राममंदिर के उद्घाटन से हुआ था। याद करें कैसा अद्भुत समय था वह। सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के हर हिस्से में बसे सनातनधर्मियों के लिए गर्व की अनुभूति कराने का अवसर था। चहुंओर धर्मध्वजा लहरा थी। आखिर वह पांच सौ वर्षों की प्रतीक्षा का सुखद समापन था। सनातन धर्म को मानने वालों ने पांच सौ वर्षों तक उस घड़ी का इंतजार किया था और 20 जनवरी 2024 को रामलला भव्य मंदिर में विराजमान हुए थे। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भव्य राम मंदिर का उद्घाटन करके सनातनधर्मियों का गौरव बढ़ाया। इस अवसर पर अयोध्या से उठा जयघोष पूरे विश्व में गुंजायमान हुआ। यह सनातन धर्म के पांच हजार साल के इतिहास की सर्वश्रेष्ठ गौरवशाली उपलब्धियों में से एक है। सहस्त्राब्दियों तक इस क्षण का स्मरण किया जाएगा और 2024 का वर्ष भी याद रखा जाएगा।

इस वर्ष को हिंदू पुनर्जागरण के वर्ष के रूप में भी याद किया जा सकता है। अयोध्या में भव्य राम मंदिर के उद्घाटन के साथ ही काशी और मथुरा के अधूरे संकल्पों को पूरा करने की ओर भी ठोस कदम उठे हैं। वाराणसी की एक अदालत के आदेश पर एक फरवरी 2024 को ज्ञानवापी के ब्यास तहखाने में पूजा अर्चना शुरू हो गई। वाराणसी की अदालत ने 31 जनवरी को निर्णय सुनाया और अगले दिन यानी एक फरवरी को पूजा अर्चना शुरू हो गई। काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी श्री ओम प्रकाश मिश्र और अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त निकालने वाले श्री गणेश्वर द्रविड़ ने ब्यास जी के तहखाने में पूजा कराई। इसके साथ ही नियमित पूजा का अधिकार काशी विश्वनाथ ट्रस्ट को सौंप दिया गया। 31 साल के बाद ब्यास तहखाने में पूजा शुरू हुई और साथ ही शृंगार गौरी की भी नियमित पूजा आरंभ हो गई है। पिछले दो साल से ज्यादा समय से चल रहे सर्वेक्षणों से ज्ञानवापी में हिंदू मंदिर और देवी देवताओं की मूर्तियों के प्रमाण मिले हैं। न्यायालय के आदेश पर मथुरा में भी सर्वेक्षण का काम आरंभ हो गया है। अयोध्या के बाद इतिहास की दो विसंगतियां काशी और मथुरा की हैं, जिन्हें ठीक करने का संकल्प दशकों पहले भाजपा और दूसरे हिंदू संगठनों ने किया था और अब उस दिशा में प्रगति हो रही है। सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ की पीठ के एक निर्णय ने इतिहास की विसंगितयों को दूर करने का एक बड़ा काम कर दिया। ज्ञानवापी के सर्वेक्षण का मामला जब उनकी अदालत में पहुंचा था तब उन्होंने निर्णय किया था कि किसी धर्मस्थल की पहचान सुनिश्चित करने के लिए सर्वेक्षण करना धर्मस्थल कानून, 1991 का उल्लंघन नहीं है। इसका अर्थ है कि किसी भी विवादित धर्मस्थल की पहचान निश्चित रूप से सुनिश्चित की जानी चाहिए, यह सभ्यतागत न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। पहचान सुनिश्चित होने के बाद उस धर्मस्थल का नियंत्रण किसके हाथ में रहेगा, यह एक अलग पहलू है। लेकिन अगर धर्मस्थलों की पहचान सुनिश्चित नहीं होगी तो इतिहास में हुए अन्याय की वास्तविकता लोगों के सामने कैसे आएगी और उसका प्रतिकार कैसे होगा! यही दृष्टिकोण राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के मुखपत्र ‘ऑब्जर्वर’ ने प्रकट किया है।

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उनकी सरकार ने इतिहास की भूलों को सुधारने का जो प्रयास शुरू किया था उसकी एक कड़ी अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा थी तो दूसरी कड़ी ज्ञानवापी के ब्यास तहखाने में पूजा अर्चना का प्रारंभ होना है। इससे करीब पांच साल पहले प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने अनुच्छेद 370 समाप्त करके ऐसी ही एक बड़ी ऐतिहासिक भूल को ठीक किया था। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनके सामने अब भी इतिहास की कई विसंगतियां हैं, जिनमें उनको सुधार करना है। इसी लक्ष्य के साथ वे लगातार तीसरी बार जनादेश के लिए देश के नागरिकों के सामने पहुंचे थे और नागरिकों ने एक बार फिर उनके ऊपर भरोसा जताया। सनातन धर्म की पताका फहराने के बाद उन्होंने राजनीति और चुनाव में भी विजय पताका फहराई।

विघ्न संतोषी लोग कह सकते हैं कि इस बार श्री नरेंद्र मोदी की सरकार का बहुमत कम हो गया या भारतीय जनता पार्टी को अकेले दम पर पूर्ण बहुमत नहीं मिला या एनडीए के घटक दलों के समर्थन पर सरकार टिकी है। आंकड़ों की दृष्टि से ये बातें सही भी हैं। लेकिन आंकड़े हमेशा पूरा सत्य नहीं बताते हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की सरकार जिन पार्टियों के समर्थन पर बनी है उन सभी पार्टियों की जीत के पीछे भी 10 साल के कामकाज से बनी धारणा का योगदान है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद किसी भी प्रधानमंत्री को इस देश के मतदाताओं ने तीसरा अवसर नहीं दिया था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को तीसरा अवसर मिला है तो यह कितनी बड़ी उपलब्धि है इसका अनुमान लगाया जा सकता है। तीसरी बार में भी भाजपा को 240 सीटें मिलीं, जो कांग्रेस को पिछले तीन चुनावों में मिली कुल सीटों से ज्यादा है। भाजपा का बहुमत कम होने पर प्रश्न उठाने वालों को इस आंकड़े पर भी विचार करना चाहिए। कांग्रेस ने पिछले तीन चुनावों में 44, 52 और 99 सीटें जीती हैं यानी तीन चुनाव में उसे कुल 195 सीटें मिली हैं, जबकि भाजपा की सीटें कम हुईं तो 240 रहीं।

तभी इस बार के लोकसभा चुनाव को सीटों की संख्या के हिसाब से देखने की आवश्यकता नहीं है। देश के लोगों की भावना को समझने की आवश्यकता है। देश के लोगों ने राष्ट्र की उन्नति, धर्म की स्थापना और भौतिक प्रगति की अनवरत प्रक्रिया की निरंतरता बनाए रखने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को जनादेश दिया। भाजपा की सीटें जरूर थोड़ी कम हुईं लेकिन प्रधानमंत्री ने उसे जनता का आदेश मान कर स्वीकार किया और ज्यादा परिश्रम के साथ काम करने का संकल्प किया, जिसका परिणाम बाद में हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों में दिखा। लोकसभा चुनाव के बाद हुए राज्यों के विधानसभा चुनावों पर विचार करने से पहले लोकसभा के साथ हुए चार राज्यों के चुनाव नतीजों को भी देखना चाहिए। लोकसभा चुनाव के परिणामों की अपने हिसाब से व्याख्या करने वाले यह भूल जाते हैं कि उसके साथ ही चार राज्यों में विधानसभा चुनाव के चुनाव हुए थे और चारों राज्यों में एनडीए ने विजय पताका फहराई थी। भाजपा के सहयोगी दलों ने सिक्किम में लोकप्रिय जननेता श्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के नेतृत्व में संपूर्ण बहुमत के साथ जीत हासिल की, आंध्र प्रदेश में श्री नारा चंद्रबाबू नायडू, और अरुणाचल प्रदेश में भाजपा ने जीत हासिल की। ओडिशा में, जहां पांच साल पहले भाजपा पहली बार मुख्य विपक्षी पार्टी बनी थी वहां उसने श्री नवीन पटनायक की पार्टी को हरा कर उनके 24 साल के शासन का अंत किया।

इसके बाद चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने तमाम पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए हरियाणा और महाराष्ट्र में जीत हासिल की। इन दोनों राज्यों में भाजपा लगातार तीसरी बार चुनाव जीती। चुनावों से पहले यह आम धारणा थी कि दोनों राज्यों में कांग्रेस के नेतृत्व वाला विपक्षी इंडी गठबंधन चुनाव जीतेगा। सारे चुनाव पूर्व अनुमानों में यह कहा जा रहा था और मतदान के बाद आए एक्जिट पोल के ज्यादातर अनुमानों में भी यही कहा गया था। परंतु जम्मू कश्मीर में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन किया और उसकी सीटें 25 से बढ़ कर 29 हो गईं और उसने हरियाणा व महाराष्ट्र में सारे अनुमानों को गलत साबित करके पहले से बड़ा बहुमत हासिल किया। महाराष्ट्र में तो भाजपा ने अकेले दम पर 132 सीटें जीतीं। उसने सिर्फ 148 सीटों पर चुनाव लड़ा था और लगभग 90 प्रतिशत सीटें जीतीं। ऐसा लगा मानों महाराष्ट्र की जनता ने लोकसभा चुनाव में की गई गलती को सुधारने के संकल्प के साथ मतदान किया। हरियाणा में भी पिछली बार 40 सीटों पर जीती भाजपा ने इस बार 48 सीटें जीत लीं। ये नतीजे सकारात्मक और विकास की राजनीति के प्रति भरोसा बढ़ाने वाले थे। बिहार में एनडीए की सरकार के गठन के साथ वर्ष की शुरुआत हुई थी और महाराष्ट्र में भाजपा की मजबूत सरकार के गठन के साथ वर्ष का समापन हुआ है। केंद्र से लेकर ज्यादातर राज्यों में भाजपा की सरकारों की वापसी करा कर देश के नागरिकों ने विकास की निरंतरता पर मुहर लगाई है। उन्होंने यह संदेश दिया है कि देश आध्यात्मिक और भौतिक विकास की दिशा में ठीक तरीके से आगे बढ़ रहा है और वे इससे संतुष्ट हैं।

(लेखक दिल्ली में सिक्किम के मुख्यमंत्री प्रेम सिंह तमांग (गोले) के कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त विशेष कार्यवाहक अधिकारी हैं।)

एस. सुनील

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