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नरेंद्र मोदी का झोला !

यों नरेंद्र मोदी इन दिनों भगवान होने के इलहाम में है। इसलिए पता नहीं प्रधानमंत्री निवास में उनका वह कथित झोला है या नहीं जिसके हवाले वे पहले कहते थे, उनका क्या जी, वे तो झोला उठा कर चल देंगे। पर समय की लीला देखिए कि तमाम तरह के श्रंगारों, हुंकारों, आडंबरों तथा अंहकार के बाद समय ने उनके झोले को झोली बना दिया है। वह झोली जो चंद्रबाबू, नीतिश कुमार, मांझी आदि न जाने किन-किनके आगे बहुमत के जुगाड़ में फैली हुई है। यों कुछ नहीं बदला है फिर भी सब बदल गया है। यदि नरेंद्र मोदी तीन सौ या चार सौ पार की सीटे ले आते तो क्या पुराना केबिनेट, पुराने चेहरे रीपिट होते? लोगों को त्रिशंकु लोकसभा में अब जस का तस जो समझ आ रहा है वह इसलिए है क्योंकि नरेंद्र मोदी यदि राजनाथसिंह या नीतिन गड़करी या अमित शाह, जेपी नड्डा आदि किसी को भी आहत करें तो उनके लिए सहयोगी पार्टियों, संसद, केबिनेट और राजनीति में मददगार कौन होगा? 

सो नरेंद्र मोदी का तीसरा कार्यकाल और गठित हुई सरकार का सबसे बड़ा अर्थ है कि प्रचार के दौरान अपने आपको भगवान बता देने के बावजूद नरेंद्र मोदी यथास्थिति को मजबूर है। वे अब हर दिन उन सुर्खियों, उन खबरों के बीच में है जिससे पुराना नैरेटिव बदला हुआ है। शुक्रवार की सुबह योग दिवस और श्रीनगर में मोदी के योग का हल्ला नहीं था बल्कि नीट, बिहार के आरक्षण, नकली शराब और अरविंद केजरीवाल की जमानत जैसी खबरें लिए हुए थी। 

सो झोले में चिंताएं है और झोली फैली हुई है। पहले यदि नरेंद्र मोदी चार घंटे सौते थे तो पता नहीं इन दिनों वे कितना सो रहे होंगे। उन्हे नए तरीके का अभिनय करना होता है। वे सहयोगी की बैठक में होते है तो हाव भाव और हंसने की वह भाव-भंगिमा बनानी पड़ती है जिससे लगे मानों चंद्रबाबू और नीतिश से जन्म-जन्म का साथ!  यह नया अभिनय मुश्किल भरा है। ऐसे ही संसद का सामना भी मुश्किल भरा होगा। 

पर ये छोटी बाते है। असल बात इसी साल होने वाले पांच विधानसभा चुनावों की है। साथ में योगी आदित्यनाथ की भी है। अभी तक के संकेतों से लगता है नरेंद्र मोदी स्पीकर और भाजपा अध्यक्ष अपना मनमाना बनाएंगे। अमित शाह वापिस ओम बिड़ला को स्पीकर बनवा लेंगे। ऐसे ही वे योगी के एंटीडोट सुनील बंसल को पार्टी अध्यक्ष बनवा सकते है। संभव नहीं कि मोहन भागवत, दत्तात्रेय एंड पार्टी अपने छोटे-छोटे मैसेजों से नरेंद्र मोदी के मनचाहे पर वीटो करें और अमित शाह मोदी से तनिक भी छिंटके। यों अमित शाह भी इन दिनों शांत दिख रहे है लेकिन उनके दिल-दिमाग में बहुत कुछ बदला हुआ होगा। उनके लिए भी आगे के विधानसभा चुनाव निर्णायक है। तभी धेर्य रखें, आने वाले महिनों में इन चेहरों के ग्राफ में बहुत उतार-चढ़ाव होना है।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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