केंद्रीय मंत्री और बिहार में बिना विधायक वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान ने अपने यहां होली का आयोजन किया तो उसमें कहा कि इससे बड़ी होली नवंबर में होगी, जब बिहार में ज्यादा बड़े बहुमत के साथ एनडीए की सरकार बनेगी। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सोच वाली सरकार बनेगी। इससे पहले बिहार के उप मुख्यमंत्री विजय सिन्हा ने अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के कार्यक्रमर में कहा था कि बिहार में भाजपा का अपना मुख्यमंत्री बनेगा तभी अटल जी का सपना साकार होगा। उससे पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इंडिया टुडे समूह के एजेंडा कार्यक्रम में कहा था कि बिहार में मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा। इन तीनों बातों का मतलब यह है कि अगर बिहार में एनडीए जीतता है तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे।
सोचें, इससे पहले नीतीश कुमार ने पार्टी बना कर जितने भी चुनाव लड़े सब मुख्यमंत्री के दावेदार के तौर पर लड़े। 1995 में जब उनकी समता पार्टी पहला चुनाव लड़ी थी तब भी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। यह अलग बात है कि तब उनकी पार्टी को सिर्फ पांच सीटें मिली थीं। उसके बाद बिहार में विधानसभा के छह चुनाव हुए और हर बार नीतीश सीएम के चेहरे के तौर पर ही लड़े। यह पहला मौका है, जब ऐसा लग रहा है कि उनके नेतृत्व में एनडीए चुनाव लड़ेगा लेकिन वे मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं होंगे। भाजपा के नेता बार बार कह रहे हैं कि नीतीश कुमार एनडीए का नेतृत्व करेंगे लेकिन मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा। असल में भाजपा नेताओं को इस बात का अफसोस लग रहा है कि अगर उन्होंने 2020 के चुनाव में नीतीश को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया होता तो चुनाव के बाद भाजपा पहली बार बिहार में अपना मुख्यमंत्री बना सकती थी क्योंकि 2020 में भाजपा ने 75 और जनता दल यू ने सिर्फ 43 सीटें जीतीं। हालांकि चुनाव से पहले नीतीश के पास 71 और भाजपा के पास 54 विधायक थे। इसलिए नीतीश बिना सीएम दावेदार बने लड़ने को तैयार होते या नहीं, यह अलग बात है।
बहरहाल, अब नीतीश कुमार की स्थिति बहुत कमजोर है। उनकी पार्टी तीसरे नंबर की पार्टी है और उनकी शारीरिक व मानसिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे भाजपा पर इस बात का दबाव डाल सकें कि उनको मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके ही चुनाव लड़ा जाए। पिछले साल राजद से तालमेल तोड़ कर भाजपा से गठबंधन बनाने के बाद नीतीश ने बहुत प्रयास किया कि समय से पहले चुनाव हो जाए। वे लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव कराने का प्रयास कर रहे थे। लेकिन भाजपा इसके लिए तैयार नहीं हुई। जैसे जैसे नीतीश की मानसिक स्थिति कमजोर होती गई वैसे वैसे उनकी पार्टी भाजपा के नियंत्रण में आती गई है। भाजपा को लग रहा है कि अगले छह महीने में नीतीश बहुत सक्रिय रूप से चुनाव का नेतृत्व करने में सक्षम नहीं होंगे और तब वह अपनी शर्तों पर सीटों का बंटवारा करेगी और अपने हिसाब से चुनाव लड़ेगी। अमित शाह ने भी साफ कर दिया है कि वे बिहार में डेरा डंडा डालने वाले हैं। भाजपा जदयू की सीटें कम करके दूसरी सहयोगी पार्टियों खास कर चिराग पासवान को एडजस्ट करेगी। उपेंद्र कुशवाला और जीतन राम मांझी भी भाजपा के प्रति ज्यादा निष्ठावान हैं। इसलिए एनडीए के जीतने पर नीतीश नहीं, बल्कि भाजपा का सीएम बनेगा। यह इतिहास होगा क्योंकि हिंदी पट्टी में बिहार एकमात्र राज्य है, जहां भाजपा का आज तक सीएम नहीं बना है। लेकिन नीतीश के बगैर एनडीए जीत जाए यह भी मुश्किल है।