बिहार में ऐसा लग रहा है कि सत्तारूढ़ गठबंधन एनडीए में नीतीश कुमार के नाम पर सहमति बन रही है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक भाषण से जो कंफ्यूजन बना है वह काफी हद तक दूर हो गया दिख रहा है। असल में शाह ने एक मीडिया समूह के कार्यक्रम में कह दिया था कि बिहार में मुख्यमंत्री का फैसला चुनाव के बाद होगा। उसके बाद से बिहार भाजपा के कई नेताओं ने इससे मिलते जुलते बयान दिए।
दूसरी ओर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर भी खबरें आ रही थीं और वीडियो में दिख रहा था कि वे चीजें भूलने लगे हैं। तभी कहा जा रहा था कि बिहार में एनडीए बिना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए ही चुनाव लड़ेगा। नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ने की बात बार बार कही जा रही थी लेकिन उनको सीएम का दावेदार नहीं घोषित किया जा रहा था। माना जा रहा था कि नीतीश कुमार का चेहरा अब वोट नहीं दिलाएगा, उलटे उससे नुकसान होगा।
हालांकि नीतीश कुमार की अपनी पार्टी जनता दल यू बार बार कह रही थी कि नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे। उसने ‘25 से 30 फिर से नीतीश’ का नारा दिया था। अब भाजपा और दूसरे घटक दलों के सुर भी बदलने लगे हैं। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े नेता और राज्य के उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी ने कहा है कि बिहार में मुख्यमंत्री पद की वैकेंसी नहीं है।
बिहार में नीतीश पर फिर सहमति बनती
इसका मतलब है कि नीतीश ही मुख्यमंत्री होंगे। बिल्कुल यही वाक्य लोक जनशक्ति पार्टी के नेता चिराग पासवान ने भी दोहराया है। उन्होंने चुनाव के बाद नीतीश कुमार का नेतृत्व कायम रहने की बात कहते हुए कहा कि बिहार में सीएम पद की वैकेंसी नहीं है। ध्यान रहे यह बात भाजपा अभी तक केंद्र में नरेंद्र मोदी के लिए कहती रही है कि पीएम पद की कोई वैकेंसी नहीं है।
पहली बार है, जब बिहार में भाजपा ने नीतीश के लिए यह बात कही है। पिछले दिनों एक और घटक दल के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी। उनके साथ भी नीतीश कुमार का अच्छा सद्भाव है।
अब सवाल है कि ऐसा क्या हुआ, जो भाजपा और एनडीए के दूसरे घटक दलों का रवैया बदल गया और नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने की बात होने लगी? कैसे वे अचानक लायबिलिटी से असेट में तब्दील हो गए? जानकार सूत्रों का कहना है कि भाजपा को जमीनी स्तर से फीडबैक मिली है और कुछ सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी बताया गया है कि नीतीश के बगैर एनडीए का गुजारा नहीं है। बताया जा रहा है कि बिहार की ताजा सर्वेक्षणों में राजनीतिक हकीकत यह बताई जा रही है कि अगर नीतीश कुमार का चेहरा घोषित नहीं होता है और एनडीए बिना किसी चेहरे के चुनाव में जाती है तो इसका फायदा तेजस्वी यादव को हो सकता है।
नीतीश का चेहरा नहीं होने पर पिछड़ी जातियां लालू प्रसाद और तेजस्वी की ओर मुड़ेंगे और इसका कारण यह होगा कि भाजपा ने कई प्रयोग किए लेकिन कोई एक चेहरा बड़ी मजबूती से जनता के सामने नहीं रखा। एक फीडबैक यह भी है कि एनडीए बिना चेहरा घोषित किए चुनाव में गया तो विधानसभा त्रिशंकु हो जाएगी। किसी भी गठबंधन को बहुमत नहीं मिलेगा।
भाजपा की अपनी सीटें भी कम होंगी और प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी का भी प्रदर्शन अच्छा हो सकता है। तभी कहा जा रहा है कि मजबूरी में भाजपा और दूसरे घटक दलों को नीतीश पर दांव लगाना पड़ रहा है। 29 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पटना पहुंच रहे हैं। वे रात में वहीं रूकेंगे और 30 भी कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। इस दौरान वे नीतीश कुमार के नाम का इशारा किसी न किसी रूप में कर सकते हैं।
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