यह बहुत हैरान करने वाली बात है और इससे भाजपा के बहुत तैयारी करके या मंथन करके उम्मीदवार घोषित करने के दावे की भी पोल खुलती है कि भाजपा ने पश्चिम बंगाल की आसनसोल सीट से भोजपुरी गायक और कलाकार पवन सिंह को उम्मीदवार बना दिया। Pawan Singh Returns Ticket
अगर भाजपा बहुत रिसर्च कराती है या जमीनी फीडबैक लेती है या बहुत ठोक-बजा कर टिकट देती है तो उसने कैसे आसनसोल सीट पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के खिलाफ पवन सिंह को उम्मीदवार बनाया? यह सही है कि आसनसोल में प्रवासी बिहारियों की संख्या बहुत ज्यादा है और भोजपुरी बोलने वाली आबादी भी है। लेकिन भाजपा ने क्यों पवन सिंह की बैकग्राउंड चेक नहीं की?
ध्यान रहे भोजपुरी के टॉप फोर में से तीन- मनोज तिवारी, रवि किशन और दिनेश लाल यादव पहले से भाजपा के सांसद हैं। अब पवन सिंह की बारी थी। पहले उनके नाम की चर्चा आरा लोकसभा सीट से थी। कहा जा रहा था कि केंद्रीय मंत्री आरके सिंह की टिकट काट कर भाजपा उनको लड़ा सकती है।
इसका मतलब है कि उनका रेपुटेशन जानने के बावजूद भाजपा के नेता उनको उम्मीदवार बनाने को तैयार थे। भाजपा को लग रहा था कि उन्हीं की तरह की रेपुटेशन मनोज तिवारी, रवि किशन और दिनेश लाल यादव की है, फिर भी लोगों ने उनको जीता दिया इसलिए पवन सिंह भी जीत जाएंगे। लेकिन गलती यह हुई कि उनको बंगाल भेज दिया गया, जहां बंगाली महिलाओं को लेकर गाए उनके गानों की वजह से तत्काल विरोध शुरू हो गया और उनको पीछे हटना पड़ा।
अब डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा भोजपुरी की गायिका अक्षरा सिंह को उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही है, जिनके साथ पवन सिंह का विवाद चल रहा है। इससे जाहिर है कि भाजपा ने इस सीट पर गंभीरता से विचार नहीं किया है और जीतने के भरोसे में नहीं है।
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